संसदीय समिति ने कहा, तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों का नाम हिंदी में होना असंवैधानिक नहीं

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अनुच्छेद 348 को लेकर छिड़ी बहस

भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति ने संविधान के अनुच्छेद 348 को संज्ञान में लिया। दरअसल, अनुच्छेद 348 के अनुसार शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट के साथ-साथ अधिनियमों, विधेयकों और अन्य कानूनी दस्तावेजों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अंग्रेजी भाषा होनी चाहिए।

प्रस्तावित कानूनों को दिए गए नाम…

राज्यसभा में समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया कि ‘समिति ने संहिता शब्द को अंग्रेजी में भी पाया, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है। समिति गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट है। साथ ही बात से सहमत है कि प्रस्तावित कानूनों को दिए गए नाम अनुच्छेद 348 का उल्लंघन नहीं हैं।’

कानूनों में बदलाव की पहल

बता दें कि सरकार ने ब्रिटिश हुकूमत के दौर में बने कानून- भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य कानून में बदलाव की पहल की है। बीते अगस्त में संसद के मॉनसून सत्र के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (IPC), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Cr.PC) और भारतीय साक्ष्य विधेयक (Indian Evidence Act) पेश किया था। उन्होंने सभापति से विधेयकों में बदलाव की विस्तृत जांच के लिए इसे स्थायी समिति के पास भेजने का आग्रह किया था।

इन लोगों ने किया था विरोध

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने विधेयकों को हिंदी नाम देने पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था, ‘मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विधेयकों को हिंदी नाम नहीं दिया जा सकता है। लेकिन जब अंग्रेजी को इस्तेमाल किया जाता है तो इनके नाम अंग्रेजी में दिए जाने चाहिए। अगर हिंदी का इस्तेमाल किया जाता तो हिंदी नाम दे सकते थे। हालांकि, जब कानूनों का मसौदा तैयार किया जाता है तो यह अंग्रजी में तैयार किया जाता है।

तमिलनाडु की सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने भी प्रस्तावित आपराधिक कानूनों के लिए हिंदी नामों के उपयोग के खिलाफ कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके अलावा मद्रास बार एसोसिएशन ने तीनों विधेयकों का नाम हिंदी में रखने के केंद्र के कदम को संविधान के खिलाफ बताया है। एसोसिएशन ने इस संबंध में एक प्रस्ताव भी पारित किया है।

Compiled: up18 News