देश में आईएएस और पीसीएस को समाज एक विशेष स्थान देता है। इस पद की प्रतिष्ठा ही है कि हर मां-बाप अपने बच्चे को अधिकारी बनाने का सपना जरूर देखता है। कोई थोड़ी भी ईमानदारी से पढ़ाई करता है तो पहले नंबर पर अफसर बनने की ही सोचता है, लेकिन वही शख्स अधिकारी की कुर्सी संभालने पर घूस लेने लगे या अपने काम में ही लापरवाह हो जाए, जिस काम की सैलरी पाता हो उसे ही भूल जाए तो आप क्या कहेंगे?
कुछ साल पहले तक क्लास-वन या टॉप पोस्ट को ‘फिकर नॉट’ टाइप माना जाता था। मतलब नौकरी मिल गई तो बस ऐश ही ऐश है। अब ऐसा नहीं चलता। अतिक्रमण और अवैध निर्माण पर ही नहीं, अफसरशाही पर भी अब बुलडोजर चलने लगा है। लाल बत्ती हटाकर अपने देश में जो स्टेटस सिंबल खत्म करने की कोशिश की गई, उस दिशा में आगे बढ़ते हुए अब भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारियों पर नकेल कसी जाने लगी है।
पिछले 24 घंटों में दिल्ली से लेकर यूपी, झारखंड, असम, तमिलनाडु तक ऐसे अकर्मण्य 27 अधिकारियों पर सरकारी बुलडोजर चला है। आइए जानते हैं कि ये अधिकारी कौन हैं और उन्होंने कैसे पूरी अफसर जमात को बदनाम किया है।
UP के DGP
गांव में ग्राम विकास अधिकारी, थाने में SHO, ब्लॉक में बीडीओ, एसडीएम, डीएम तक लापरवाही समझ में आती है लेकिन जिस शख्स के पास किसी देश के बराबर क्षेत्र वाले प्रदेश की जिम्मेदारी हो, ऐसे डीजीपी लापरवाही में नपेंगे तो क्या संदेश जाएगा। जी हां, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल बुधवार को सरकारी काम में लापरवाही के आरोप में पद से हटा दिए गए। नए पुलिस महानिदेशक चुने जाने तक अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार को कार्यभार संभालने को कहा गया है। गोयल को पुलिस महानिदेशक (डीजी) नागरिक सुरक्षा के पद पर भेजा गया है। सरकारी बयान में बताया गया है कि ‘पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल को शासकीय कार्यों की अवहेलना करने, विभागीय कार्यों में रुचि न लेने और अकर्मण्यता के चलते डीजीपी के पद से हटा दिया गया है।’
इस मामले में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सख्त फैसले की भी तारीफ हो रही है। जनता में यही संदेश गया है कि कोई कितनी भी बड़ी पोस्ट पर हो, अगर काम नहीं करेगा तो हटा दिया जाएगा।
1987 बैच के आईपीएस अधिकारी गोयल को पिछले साल जून में प्रदेश का पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया गया था। उत्तर प्रदेश का डीजीपी बनने से पहले वह सीमा सुरक्षा बल में अपर पुलिस महानिदेशक के पद पर तैनात थे। मुजफ्फरनगर में जन्मे गोयल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की डिग्री हासिल कर चुके हैं।
‘रुपयों के बिस्तर’ पर सोने वाली पूजा सिंघल, 5% चलता था कमीशन
जैसे हम बेड पर बिस्तर बिछाते हैं उसी तरह से नोटों की गड्डियां बिछी थीं। वो तस्वीर जिसने भी देखी, हैरान रह गया। अधिकारी बनने पर ऐसी मनमर्जियां! जांच बढ़ी, पूछताछ हुई और कल झारखंड की खनन सचिव पूजा सिंघल को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनरेगा फंड के कथित गबन और अन्य संदिग्ध वित्तीय लेन देन के मामले में गिरफ्तार कर लिया। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की 2000 बैच की अधिकारी को पीएमएलए के तहत ईडी ने दो दिन की पूछताछ के बाद हिरासत में लिया।
सिंघल जवाब देने में टालमटोल कर रही थीं। उनके कारोबारी पति अभिषेक झा का बयान भी मामले में दर्ज किया गया है। दंपति से कथित तौर पर जुड़े चार्टर्ड अकाउंटेंट और वित्तीय सलाहकार सुमन कुमार के बाद यह इस मामले में हुई दूसरी गिरफ्तारी है।
मामले में एक के बाद एक खुलासे शुरू हो गए। सिंघल और अन्य के खिलाफ ईडी की जांच मनी लॉन्ड्रिंग के उस मामले से संबंधित है जिसमें झारखंड सरकार में पूर्व कनिष्ठ अभियंता राम बिनोद प्रसाद सिन्हा को एजेंसी ने 17 जून 2020 को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया था।एजेंसी ने सिन्हा को 2012 में पीएमएलए के तहत दर्ज मामले का अध्ययन करने के बाद गिरफ्तार किया था।
सिन्हा के खिलाफ जनता के धन की हेराफेरी करने के आरोप में धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार में मामला दर्ज किया गया था। सिन्हा ने इस धनराशि को एक अप्रैल 2008 से 21 मार्च 2011 तक कनिष्ठ अभियंता के रूप में काम करते हुए अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर निवेश किया था। जबकि उस धनराशि को खूंटी जिले में मनरेगा के तहत सरकारी योजनाओं के लिए रखा गया था।
पूछताछ में सिन्हा ने ईडी से बताया कि उन्होंने फ्रॉड करके जो पैसे कमाए उसमें से 5 प्रतिशत कमीशन जिला प्रशासन को दिया गया था। पूजा सिंघल के खिलाफ अनियमितता के मामले उस समय के हैं जब वह 2007 और 2013 के बीच चतरा, खूंटी और पलामू के उपायुक्त/जिला मजिस्ट्रेट थीं। एजेंसी ने इस मामले में सीए सुमन कुमार को 6 मई को उसके परिसर से 17 करोड़ रुपये से ज्यादा नकदी जब्त करने के बाद गिरफ्तार किया था। अधिकारियों ने कहा कि सभी ठिकानों से कुल 19.31 करोड़ रुपये की बरामदगी की गई थी।
रेलवे ने 19 अधिकारियों को भेजा घर
डिपार्टमेंट कोई भी हो, लोगों के जेहन में इतनी आरामतलबी आ गई है कि सोचते हैं अफसर बन गए अब काम करने की क्या जरूरत है। रेलवे ने बुधवार को ऐसे ही अपने 19 अधिकारियों को घर भेज दिया। जी हां, इन्हें नौकरी से जबरन रिटायर कर दिया गया है।
रेलवे ने उस नियम को लागू किया है कि किसी सरकारी कर्मी को न्यूनतम तीन महीने का नोटिस देकर या इस अवधि का वेतन देकर सेवानिवृत्त के लिए बाध्य किया जा सकता है। उम्मीद की जा रही है कि शायद इस डर से ही सही, बाकी बचे अकर्मण्य लोग कुछ काम कर लें।
यह लिस्ट इतनी छोटी भी नहीं है। 19 अधिकारियों के अलावा पिछले 11 महीने में 75 अन्य अधिकारियों को VRS (स्वैच्छिक सेवानिवृति) लेने के लिए बाध्य किया गया जिनमें महाप्रबंधक और सचिव जैसे वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। यह कदम ठीक से काम नहीं करने वालों से निजात पाने के केंद्र सरकार के प्रयासों के तहत उठाया गया है। जिन 19 लोगों को रिटायर किया गया है उनमें इलेक्ट्रिकल एवं सिग्नल सेवाओं के चार-चार अधिकारी, मेडिकल एवं सिविल से तीन-तीन अधिकारी, कार्मिक से दो, स्टोर, यातायात एवं मेकेनिकल से एक-एक अधिकारी शामिल हैं। ये सभी पश्चिम रेलवे, मध्य रेलवे, पूर्व रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, उत्तर रेलवे, सैंडकोच फैक्टरी कपूरथला, माडर्न कोच फैक्टरी, रायबरेली आदि से हैं।
गृह मंत्रालय के 6 अधिकारियों को लगी हथकड़ी
CBI ने 40 जगहों पर छापेमारी कर गृह मंत्रालय के छह अधिकारियों सहित 14 लोगों को गिरफ्तार किया है। उनके पास से कई आपत्तिजनक दस्तावेज और मोबाइल फोन मिले हैं। ये छापेमारी दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, असम और मणिपुर में की गई है। CBI ने कथित तौर पर एफसीआरए नियमों का उल्लंघन करते हुए विदेशी चंदों को मंजूरी दिलाने के मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों, गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों और बिचौलियों के खिलाफ अभियान चलाया। इस कार्रवाई में 3.21 करोड़ रुपये नकद बरामद किए गए। एजेंसी ने मंत्रालय की शिकायत पर 10 मई को 36 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इन लोगों में गृह मंत्रालय के एफसीआरए डिवीजन के सात अधिकारी भी शामिल हैं।
मंत्रालय ने पाया कि कम से कम तीन नेटवर्क सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे थे जो गैर सरकारी संगठनों को विदेशी चंदा (विनियमन) कानून (FCRA) संबंधी मंजूरी में तेजी लाने के लिए उनसे पैसे ले रहे थे ताकि उन्हें विदेशी चंदा मिल सके। जब यह मामला गृह मंत्री अमित शाह के संज्ञान में लाया गया तो उन्होंने इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया। कुछ अधिकारी एफसीआरए के तहत पंजीकरण और पंजीकरण के नवीनीकरण और एफसीआरए से संबंधित अन्य कार्यों के लिए गैर सरकारी संगठनों से कथित तौर पर रिश्वत ले रहे थे। जांच के दौरान दो आरोपियों को गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ लेखाकार की ओर से चार लाख रुपये की रिश्वत लेते और देते हुए पकड़ा गया।
अफसरों को याद रखना चाहिए…
ये मामले यह बताने के लिए काफी हैं कि भ्रष्टाचार किस तरह हमारे सिस्टम की नसों में दौड़ रहा है। गांव में घपला होता है तो उससे निपटने के लिए कई अधिकारी और तंत्र है लेकिन अगर जिलाधिकारी स्तर पर अफसर करोड़ों डकारने लगे तो व्यवस्था का क्या होगा। कैसे भ्रष्टाचार मुक्त देश बन पाएगा। ऐसे मामले पूरे IAS समुदाय, अधिकारियों के समूह को भी प्रदूषित करते हैं।
जनता हर अधिकारी को घूसखोर की नजरों से देखने लगती है। अगर ऐसा ही रहा तो पद की गरिमा भी नहीं बचेगी। अफसरों के लिए यह ‘लिटमस टेस्ट’ होगा। जरा पिछले दिनों टीचर या कर्मचारी के रिटायरमेंट-ट्रांसफर की उन तस्वीरों को याद कर लीजिए जब पूरा स्कूल या डिपार्टमेंट रोता दिखा था। हमारे अफसर अपने रिटायरमेंट के बाद खुद को कैसे याद कराना चाहते हैं?
-एजेंसियां
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