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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बेहद खतरनाक शुरूआत कर दी। पूराने राष्ट्रपति ( सरकार) के फैसलों को हम क्यों मानें?
ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ हुई दुनिया भर में वायरल बातचीत, जो आखिरी दौर में बातचीत कम हम भारतीयों के हिसाब से सास बहु के झगड़े की तरह कहा कि हमारे एक मूर्ख राष्ट्रपति ( जो बाइडन) ने आपको रूस से लड़ने के लिए 350 अरब डालर दे दिए।
संभवत: यह पहली बार है जब अन्तरराष्ट्रीय मामलों में इस तरह कैमरों के सामने कटु विवाद हो और एक बड़े देश का राष्ट्रपति अपने पूर्व राष्ट्रपति को मूर्ख कहे उसके अन्तरराष्ट्रीय फैसलों को मानने से इनकार करे।
बाबा भारती की कहानी याद आती है कि फिर कौन यकीन करेगा? सुदर्शन की मशहूर कहानी हार की जीत में बाबा भारती कहते हैं कि अगर इस तरह धोखे हुए तो फिर कौन बात का यकीन करेगा?
हालांकि अपने पूर्ववर्तियों को कुछ नहीं बताने का सिलसिला हमारे वाले पहले ही शुरू कर चुके हैं। ट्रंप ने तो अपने पूर्ववर्ती के लिए जो कुछ कहा अपने देश में ही कहा हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी इससे बहुत बड़ी बात विदेश में कह आए थे कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात थी।
प्रधानमंत्री बनते ही 2015 में दक्षिण कोरिया में मोदी जी ने यह कहा था। और उसके बाद तो उनके भक्तों ने यह बताना शुरू कर दिया था कि भारत आजाद ही 2014 में हुआ। यह कहने वाली फिल्म एक्ट्रेस कंगना रनौत को फिर ईनाम के तौर बीजेपी का लोकसभा टिकट दे दिया गया। और वे सांसद बन गईं। प्रसंग आया है तो यह और बता दें कि सांसद बनने के बाद अभी उन्हें कोर्ट में प्रसिद्ध लेखक जावेद अख्तर से माफी मांगना पड़ी। हालांकि यह शीर्षक किसी अख़बार या टीवी चैनल में नहीं दिखा कि भाजपा सांसद कंगना रनौत ने माफी मांगी! खबर को दबा कर दिया गया कि मामला निपटा। और अगर किसी कांग्रेस के या विपक्ष के किसी सांसद ने माफी मांगी होती तो यह गोदी मीडिया किस तरह खुश होकर शोर मचाता?
खैर 2014 में भारत आजाद हुआ कहने वाली कंगना को सांसदी का पुरस्कार मिल गया अब उनके बाद दूसरे जिसने कहा कि 1947 की आजादी दरअसल 99 साल के पट्टे पर मिली थी उसे मिलना शेष है। यह बात संघ और भाजपा अपने लोगों को आपसी बातचीत में बताते रहते हैं। मगर इसे सार्वजनिक रूप से जिसने कहा उसे अभी पुरस्कार नहीं मिला है। मिलेगा! शायद तय हो रहा है कि कितना बड़ा पुरस्कार देना है।
तो ट्रंप ने दुनिया को यह मैसेज दे दिया कि उनके शासनकाल में किसी भी देश से जो भी एग्रीमेंट होगा। अन्तरराष्ट्रीय संधि होगी वह केवल तब तक ही लागू रहेगी जब तक वे कुर्सी पर हैं। बाद वाला उसे इसी तरह करने वाले को मूर्ख कहकर नकार सकता है जैसा मैं यूक्रेन के मामले में कर रहा हूं। यूक्रेन को रूस से लड़ाया किसने?
अमेरिका ने! और आज उसके राष्ट्रपति ट्रंप कह रहे हैं समझौता कर लो। वह यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की सुन ही नहीं रहे कि उससे शांति होगी। हमारे उपर बाद में हमला न होने की गारंटी होगी। क्या होगा? कुछ नहीं। हमने कहा मान लो।
डिप्लोमेसी का सबसे बड़ा मैसेज। कि यहां कोई किसी पर विश्वास नहीं करे। अपने स्वार्थ, नए बन रहे संबंध, दूसरे की कम हो रही उपयोगिता इन सब आधारों पर कोई भी किसी को छोड़ सकता है। और एकदम मंझधार में! जैसा यूक्रेन को छोड़ा। कहीं का नहीं रहा वह। रूस अब अपनी शर्तों पर समझौता करेगा।
सबसे ज्यादा झंडा उसी का बुलंद रहा। अमेरिका ने माना कि तुम दो हफ्ते नहीं लड़ सकते थे उससे। जिस अमेरिका की दम पर वह रूस को सबक सीखाने की बात कर रहा था उसी अमेरिका ने अब उसे सबक सिखा दिया कि कोई किसी का नहीं होता।
हम यह बात पहले से जानते थे। नेहरू का नान अलायंस मुवमेंट ( गुट निरपेक्ष आंदोलन) आज सबको याद आ रहा होगा। नेहरू न रूस के साथ न अमेरिका के। मगर उनके साथ दुनिया के 120 देश।
ट्रंप इसी बातचीत में जेलेंस्की से कह रहे हैं कि तुम दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ धकेलना चाहते हो। उस समय जब अमेरिका और रूस में भयानक शीत युद्ध चल रहा था तो यह 120 गुटनिरपेक्ष देशों का संगठन ही था जिसने दोनों महाशक्तियों को रोक कर रखा था।
आज हम खुद ही खुद को विश्व गुरु कहने लगे। और हमारे प्रधानमंत्री को ही सामने बिठाकर ट्रंप ऐसे ही खूब खरी खोटी सुना रहा था। वायलेटर कह रहा था। टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे रहा था। ब्रिक्स जिसका भारत सदस्य है उसे खत्म करने की बात कह रहा था। जो मुंह में आया कह रहा था। और हमारे प्रधानमंत्री मुस्कराते हुए सब चुपचाप सुन रहे थे। फ्रांस के राष्ट्रपति मेक्रों ने हाथ पकड़ कर ट्रंप को रोक दिया। और अपने देश का यूरोप का पक्ष रखा। ऐसे ही युक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने तो यहां तक कह दिया कि यह युद्ध आपकी धरती पर भी आ सकता है। सबने तुर्की ब तुर्की जवाब दिए।
यहां हमारे वाले तो केवल अपनी तीखी जबान का उपयोग नेहरू इन्दिरा को कोसने के लिए करते हैं।
पता नहीं उन्हें कोई बताने वाला है या नहीं। हमारी विदेश सेवा में तो एक से एक काबिल अफसर हैं, खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर रहे हैं आईएफएस। विदेश सेवा में सबसे उच्च पद विदेश सचिव तक रहे। उन्हें तो मालूम होगा कि 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन से इसी व्हाइट हाउस में इन्दिरा गांधी ने कितने तीखे अंदाज में बात की थी।
अमेरिका की विदेश नीति के बारे में सवाल पूछे थे। वे इसके कुछ साल बाद ही जब विदेश सेवा में आए तो उस समय इन्दिरा गांधी की अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में दृढ़ता और भारतीय हित सर्वोपरी रखने की बात साउथ ब्लाक ( विदेश मंत्रालय) में सब जगह एक गर्व का साथ कही जाती थी।
प्रसिद्ध लेखिका कैथरीन फ्रेंक ने लिखा है कि भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने इस अंदाज में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन से बात की थी जैसे एक प्रोफेसर अपने किसी पढ़ाई में दिल नहीं लगाने वाले स्टूडेंट से करता है।
इन्दिरा गांधी की दृढ़ता ने तो अमेरिका के सातवें बेड़े को वापस लौटा दिया था। जो पाकिस्तान की मदद करने के लिए आ रहा था।
और यहां मोदी के जाने के बाद दो और वायुसेना के जहाजों में भारतीयों को हथकड़ी बेड़ियों के साथ लाया गया। उनके जाने से पहले एक जहाज आ चुका था। हथकड़ी बेड़ियों से बंधे भारतीयों को लेकर। लेकिन मोदी के अमेरिका जाने से लगा कि वे इस बारे में ट्रंप से विरोध करेंगे। जैसा कि संसद में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था।
मगर उनके जाने के बाद अमेरिका ने दो जहाजों में और ऐसे ही बांधकर भारतीयों को भेजा।
ट्रंप से नहीं कह पाए। इसीलिए लोग इन्दिरा गांधी की याद कर रहे हैं कि अगर वे होतीं तो जैसा निक्सन का हाल किया था वैसा ट्रंप का कर देतीं। इन्हीं की पार्टी के वाजपेयी ने ही तो कहा था वे दुर्गा थीं।
-साभार सहित- श्री शकील अख्तर जी के फेसबुक पेज से