आखिर जेनाभाई ठक्कर का बेटा कैसे बन गया मोहम्मद अली जिन्ना?

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मोहम्मद अली जेनाभाई ने लंदन जाने के बाद अपना नाम मोहम्मद अली जिन्ना कर लिया था

16 साल की उम्र में ही मीठीबाई ने अपने बेटे की शादी पानेली मोटी गाँव की ही 11 साल की एमीबाई से करवा दी थी

हालांकि शादी के बाद भी एमीबाई को जिन्ना कभी देख नहीं सके

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हैं और पाकिस्तान के क़ायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना. महात्मा गांधी गुजराती और मोहम्मद अली जिन्ना के माता-पिता भी गुजराती. महात्मा गांधी का जन्म स्थान गुजरात में काठियावाड़ इलाक़े का पोरबंदर है और जिन्ना के माता-पिता का घर भी काठियावाड़ इलाक़े में राजकोट ज़िले का पानेली मोटी गाँव.

दोनों के बीच की दूरी क़रीब 95 किलोमीटर है. मोहन दास करमचंद गांधी की शादी माता-पिता ने विदेश जाने से पहले 13 साल की उम्र में करा दी थी और जिन्ना के माता-पिता ने भी बेटे की शादी 16 साल में इंग्लैंड जाने से पहले पानेली मोटी गाँव की ही 11 साल की लड़की से करा दी थी.

कहा जाता है कि दोनों के माता-पिता के मन में डर था कि कहीं विदेश में ही शादी ना कर लें इसलिए शादी के बाद विदेश जाने की अनुमति दी.

पोरबंदर में गांधी का घर आज की तारीख़ में म्यूज़ियम बना दिया गया है. लेकिन जिन्ना के दादा और उनके पिता के घर का क्या हुआ?

भारत के पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अपनी किताब ‘जिन्ना: इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस’ में लिखा है कि जिन्ना के दादा पूंजाभाई ठक्कर अपने तीन बेटों वलजीभाई, नथुभाई, जेनाभाई और एक बेटी मानबाई के साथ हमेशा पानेली गाँव में रहे.

जसवंत सिंह ने लिखा है, ”यह परिवार खोजा मुस्लिम था. खोजा वोहरा मुस्लिम की तरह शांतिप्रिय व्यापारी होते हैं. ये दूसरी संस्कृति और भाषा को बहुत जल्दी अपना लेते हैं. पूंजाभाई हैंडलूम के काम से परिवार का ख़र्च चलाते थे. लेकिन पूंजाभाई के सबसे छोटे बेटे जेनाभाई ने पानेली छोड़ने का जोखिम उठाया और पास के गोंदल में चले गए. यह पानेली गाँव छोड़ने का पहला क़दम था.” पानेली मोटी गाँव राजकोट ज़िले के उपलेटा तहसील में है. यह यूपी-बिहार के गाँवों से बिल्कुल अलग है. इस गाँव में शहरों की तरह दुकानें हैं, बैंक है और गाँव के भीतर बड़े ट्रक भी आराम से आवाजाही कर लेते हैं.
पानेली मोटी के उपसरपंच जतिनभाई के मुताबिक़ गाँव की आबादी 13 हज़ार हैं और यहाँ अब भी पाँच-छह घर खोजा मुस्लिम परिवार हैं.

इस गाँव की पहचान जिन्ना के गाँव के रूप में है. आपको गाँव का बच्चा भी उस घर तक पहुँचा देता है, जिसे मोहम्मद अली जिन्ना के परिवार का बताया जाता है.

क़रीब 110 साल पुराना यह घर दो मंज़िला है. एक रसोई घर के साथ दो कमरा नीचे और दूसरे रसोई के साथ दो कमरा ऊपर.

गुजरात में इस तरह के घर ख़ूब मिलते हैं. घर के प्रवेश द्वार को खटखटया, तो भीतर से एक व्यक्ति ने बिना दरवाज़ा खोले ही पूछा कौन है?

अपना परिचय दिया तो उन्होंने बहुत अनमने ढंग से दरवाज़ा खोला. अंदर जाने पर उन्होंने बैठने के लिए भी नहीं कहा. मैंने उनसे नाम पूछा तो उन्होंने अनचाहे तरीक़े से अधूरा नाम प्रवीण बताया. कुछ देर बात करने के बाद उन्होंने अपना पूरा नाम बताया- प्रवीण भाई पोपट भाई पोकिया. प्रवीण भाई पटेल जाति से ताल्लुक रखते हैं.
जब उनसे बात कर रहा था, तो साथ में 70 साल की उनकी माँ नंदू बेन भी थीं.

प्रवीण भाई इस बात से बहुत नाराज़ रहते हैं कि उनके घर में कभी भी कोई भी आ जाता है और पूछताछ करने लगता है.

प्रवीण भाई ने बताया, ”जब आपने दरवाज़ा खटखटाया तो मैं सो रहा था. अभी खेत में काम पर जाना है. मेरा सोने का टाइम भी ख़राब हुआ और खेत पर जाने में भी देर होगी. ये केवल आज की बात नहीं है. आए दिन ऐसा होता रहता है. कभी पत्रकार तो कभी ज़िला अधिकारी, कभी नेता तो कभी कोई. सच कहिए तो मैं इस घर से परेशान हो गया हूँ. 2005 में विदेशी मीडिया भी इस घर को देखने आ गया था.”

आडवाणी के पाकिस्तान दौरे पर पानेली मोटी और सुर्ख़ियों में आया।2005 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी पाकिस्तान गए थे. आडवाणी कराची में जिन्ना के मज़ार पर गए थे और उन्हें श्रद्धांजलि दी थी. आडवाणी ने जिन्ना को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें सेक्युलर और हिन्दू-मुस्लिम एकता का राजदूत बताया था.

आडवाणी ने जिन्ना की तारीफ़ में वहाँ के रजिस्टर पर लिखा था, ”ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है. लेकिन बहुत कम लोग हैं, जिन्होंने इतिहास बनाया है. क़ायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना उन कम लोगों में से एक हैं.”

आडवाणी के इस बयान को लेकर बीजेपी में काफ़ी विवाद हुआ था. बीजेपी ने आडवाणी के बयान से दूरी बना ली थी. कहा जाता है कि बीजेपी में आडवाणी का कद इस बयान के बाद छोटा होता गया. आडवाणी के बयान से उपजा विवाद पानेली मोटी गाँव भी पहुँच गया था.

प्रवीण भाई पोकिया के बड़े भाई चमन भाई पोकिया बताते हैं, ”सबसे ज़्यादा हम आडवाणी के पाकिस्तान दौरे में परेशान हुए. हर कोई इस घर में आकर जिन्ना को खोज रहा था. सच कहिए तो हम ये घर अब बेचना चाहते हैं. हम कोई नया घर ख़रीद लेंगे. कोई ख़रीदार है तो बताइए हम उसे दे देंगे. वो चाहे तो इसे जिन्ना से जुड़ा म्यूज़ियम बना ले.”

प्रवीण की माँ नंदू बेन बताती हैं कि इस घर में कुछ भी नहीं बदला है. वह याद करते हुए बताती हैं, ”मेरी ज़िंदगी तो इसी घर में कट गई. अब आख़िरी वक़्त है. मेरे बेटे जिन्ना के घर होने से परेशान होते हैं लेकिन मुझे कोई दिक़्क़त नहीं हुई. जब मैं इस घर में शादी करके आई थी तब भी ये ऐसा ही था. बस बिजली आई तो तार और बल्ब लगे. कहीं-कहीं प्लास्टर भी कराया गया है. बाक़ी पूरी संरचना वैसी ही है.”

50 साल के प्रवीण भाई पोकिया बताते हैं, ”जब मैं स्कूल में पढ़ता था तब भी लोग कहते थे कि मेरा घर जिन्ना का घर है. मेरे दादा भी बताते थे कि यह घर मोहम्मद अली जिन्ना के पिता का था. गाँव में मेरी पहचान इस बात से भी है, इस घर में जिन्ना के दादा और पिता रहे हैं. पहले अच्छा लगता था लेकिन अब कई बार परेशानी होती है. लोग घर में कभी भी आ जाते हैं. आपके माध्यम से कह रहा हूँ कि ये घर मुझे बेचना है.”

गाँव के लोग क्या कहते हैं?

पानेली मोटी गाँव के ही 70 साल के किरण भिमाज्यानी जिन्ना से जुड़ी पहचान की जानकारी एक स्वर में दे देते हैं. वह कहते हैं, ”ये लोहाना ठक्कर जाति के थे. इन लोगों ने बाद में इस्लाम स्वीकार कर लिया. मेरे दादाजी बताते थे कि पूंजाभाई ने मछली का व्यापार शुरू कर दिया था इसलिए लोहाना-ठक्कर जाति के लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया था. बहिष्कार के बाद इस परिवार ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था. यह परिवार खोजा मुसलमान बना था. मेरा घर भी बगल में ही है. मेरा गाँव तो बहुत फेमस है. हर्षद मेहता भी इसी गाँव के ही थे. ”

पानेली के उपसरपंच जतिनभाई कहते हैं, ”जिन्ना की वजह से हमारे गाँव का नाम भी है और भारत का विभाजन किया इसलिए बदनाम भी है. जिन्ना भारत की आज़ादी की लड़ाई में शामिल थे, इस पर गर्व है लेकिन उन्होंने पाकिस्तान बनाया इसलिए बुरा भी लगता है.”

चिमनभाई पटेल इंस्टिट्यूट के निदेशक डॉ हरि देसाई की पहचान आधुनिक भारत के सामाजिक और राजनीति इतिहास के विशेषज्ञ के तौर पर है.

जिन्ना के परिवार को लेकर वह कहते हैं, ”पूंजाभाई ठक्कर के बेटे जेनाभाई ठक्कर थे. जेनाभाई के बेटे हुए मैमद यानी मोहम्मद अली जिन्ना. यह परिवार हिन्दू था. पूंजाभाई मछली का व्यापार करते थे. लोहाना जाति रूढ़िवादी होती थी. ऐसे में मछली के व्यापार को लेकर बहुत विरोध हुआ. इस विरोध के बाद पूंजाभाई ने इस्लाम स्वीकार किया.”

डॉ हरि देसाई कहते हैं, ”बाद में पूंजाभाई हिन्दू बनना भी चाहते थे लेकिन लोगों ने स्वीकार नहीं किया. जेनाभाई व्यवसाय के लिए कराची गए. मोहम्मद अली जेनाभाई ने बाद में अपने नाम का अंग्रेज़ीकरण करते हुए जिन्ना कर लिया था. जिन्ना लंदन पढ़ाई करने नहीं बल्कि बिज़नेस के लिए गए थे. बाद में उन्होंने वहाँ बैरिस्ट्री की पढ़ाई शुरू कर दी थी. जिन्ना की जिस लड़की से शादी हुई उसका नाम एमीबाई था. जिन्ना की माँ चाहती थीं कि विदेश जाने से पहले शादी हो जाए ताकि लंदन में किसी गोरी लड़की से शादी ना कर ले. जिन्ना ने बाद में एक पारसी लड़की से शादी की थी.”

पाकिस्तान के जाने-माने इतिहासकार मुबारक अली से पूछा कि क्या जिन्ना के दादा क्या हिन्दू से मुस्लिम बने थे?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ”बड़ी संख्या में हिन्दू भी खोजा मुसलमान बने थे. जिन्ना के दादा और पिता का नाम जिस तरह का था, उससे तो यही लगता है कि यह परिवार हिन्दू से मुस्लिम बना था.”

जेनाभाई से जिन्ना बनने की कहानी

जसवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि जिन्ना के पिता जेनाभाई ठक्कर 1875 में बिज़नेस के सिलसिले में अविभाजित भारत के कराची शहर चले गए. बॉम्बे की तरह कराची में भी अंग्रेज़ शासकों ने ट्रेडिंग पोस्ट बनाए थे.

जसवंत सिंह ने लिखा है, ”कराची में जेनाभाई की मुलाक़ात सर फ्रेडरिक ली क्रॉफ़्ट से हुई. वह कराची में शीर्ष की मैनेजिंग एजेंसी डगलस ग्राहम एंड कंपनी के महाप्रबंधक थे. फ़्रेडरिक से संपर्क जेनाभाई के जीवन में अहम मोड़ साबित हुआ. जेनाभाई का कारोबार ख़ूब फला फूला और काफ़ी आर्थिक फ़ायदा हुआ. कराची में ही जेनाभाई की पत्नी मीठीबाई ने 25 अक्तूबर 1876 (जन्मतिथि को लेकर अब भी अनिर्णय की स्थिति है) को एक बेटे को जन्म दिया. पूंजाभाई के घर में सभी पुरुष सदस्यों का नाम हिन्दुओं की तरह था. लेकिन कराची बिल्कुल अलग था.”

जसवंत सिंह ने लिखा है, ”कराची में मुस्लिमों की बड़ी आबादी थी और आसपास के बच्चों के नाम बिल्कुल वैसे ही थे, जैसे मुसलमान रखते हैं. जेनाभाई को लगा कि वह अपने नवजात का नाम कुछ ऐसा ना रखें, जिससे नुक़सान हो. जेनाभाई ने अपने बेटे का नाम मोहम्मद अली जेनाभाई रखा. हालाँकि उन्होंने नाम के आख़िर में काठियावाड़ इलाक़े में पिता के नाम जोड़ने की परंपरा नहीं छोड़ी.”

उन्होंने आगे लिखा है, ”जेनभाई और मीठीबाई अपने बेटे मोहम्मद अली को ‘अक़िक़ाह’ अनुष्ठान के लिए हसन पीर की दरगाह पर लाए. यह दरगाह गनोद में पानेली गाँव से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है. यहीं पर मोहम्मद अली का मुंडन हुआ. मीठीबाई ऐसा अपने बेटे की सलामती के लिए करवा रही थीं. मोहम्मद अली जिन्ना की प्राथमिक शिक्षा औपचारिक रूप से नहीं हुई थी.

मीठीबाई और जेनाभाई ने पानेली मोटी से ही गुजराती पढ़ाने के लिए एक शिक्षक बुलाया था. नौ साल की उम्र में उन्हें प्राथमिक स्कूल भेजा गया और बाद में सिंध-मदरसा-तुल-इस्लाम में शिफ़्ट किया गया. यहाँ पर उन्होंने साढ़े तीन सालों तक पढ़ाई की. मदरसे के बाद मोहम्मद अली को कराची के चर्च मिशन स्कूल में भेजा गया.”

1892 में नवंबर महीने के पहले हफ़्ते में जिन्ना फ्रेडरिक की सलाह पर कारोबार सीखने के लिए लंदन गए और यहीं उन्होंने अपने नाम में जेनाभाई से भाई हटाकर जिन्ना कर लिया.

जिन्ना के परिवार की जड़ों को लेकर दूसरा तर्क भी

अमेरिका के जाने-माने इतिहासकार स्टैनली वॉलपोर्ट ने जिन्ना पर एक किताब लिखी है- जिन्ना ऑफ़ पाकिस्तान. इसमें उन्होंने जिन्ना के परिवार की जड़ों को ईरान से जोड़ा है.

उन्होंने अपनी किताब में जिन्ना के परिवार के बारे में लिखा है, ”जिन्ना का जन्म शिया मुस्लिम खोजा परिवार में हुआ था. ये इस्माइली आग़ा खां के अनुयायी होते हैं. 10वीं से 16वीं सदी के बीच हज़ारों खोजा परिवारों को ईरान में अत्याचार से परेशान होकर पश्चिमी भारत समेत कई इलाक़ों में भागना पड़ा था. जिन्ना के पूर्वज कब भागकर आए, इसकी सही तारीख़ पता नहीं है. लेकिन खोजा तो खुद इस्लाम के भीतर भी अल्पसंख्यक हैं और भारत में इस्लाम मानने वाले भी अल्पसंख्यक हैं.”

स्टैनली वॉलपोर्ट ने लिखा है, ”खोजा बिज़नेस करने वाला समुदाय है और दुनिया भर में कारोबार के लिए ये यात्राएँ करते हैं. ये लोगों के साथ तेज़ी से घुल-मिल जाते हैं और दूसरी भाषाएँ भी सीख लेते हैं. ये बहुत तेज़ तर्रार होते हैं और सुखी संपन्न भी. महात्मा गांधी हिन्दुओं में बनिया जाति से थे और जिन्ना के परिवार से उनका घर मुश्किल से 95 किलोमीटर की दूरी पर था. भारत और पाकिस्तान दोनों के राष्ट्रपिता की मातृभाषा गुजराती ही थी.”

इस्लामिक स्कॉलर और ब्रिटेन में पाकिस्तान ने उच्चायुक्त रहे अकबर एस अहमद भी जिन्ना के पूवर्जों की जड़ें ईरान से जोड़ते हैं.

उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे एक आर्टिकल में कहा था, ”जिन्ना के दादा, पिता, माँ और भाई-बहन के नाम हिन्दुओं की तरह थे. हालांकि इस तरह की चीज़ें मुस्लिम समाज में ग़ैर-भारतीय मूल की पहचान को कम करने के लिए होती हैं. ख़ास करके वैसे समाज में जहाँ लोग परिवार के नाम से भी हैसियत हासिल करते हैं. हालांकि अन्य स्रोतों की मानें तो जिन्ना के पूर्वजों का संबंध ईरान से नहीं था. एक पाकिस्तानी लेखक के अनुसार जिन्ना के पैतृक पूर्वज पंजाब में साहिवाल के राजपूत थे और उनकी शादी काठियावाड़ में इस्माइली खोजा महिला से हुई थी.”

स्टैनली वॉलपोर्ट ने भी लिखा है कि जिन्ना के लंदन जाने को लेकर जेनाभाई और मीठीभाई डरे हुए थे. इसी डर के कारण उन्होंने पानेली मोटी गाँव की एक खोजा लड़की एमीबाई से शादी करा दी.

स्टैनली ने जिन्ना की बहन फ़ातिमा के हवाले से लिखा है, ”जिन्ना शादी के दौरान मुश्किल से 16 साल के थे और जिस लड़की से उनकी शादी हुई उसे कभी नहीं देख पाए. शादी के दौरान एमीबाई ऊपर से नीचे तक कपड़ों से ढँकी थीं. शादी के बाद जिन्ना लंदन चले गए और वापस आए तो एमीबाई की मौत हो चुकी थी.”

पानेली मोटी गाँव में एमीबाई के बारे में कोई जानता तक नहीं है और न ही उनके परिवार के बारे में.

इसी साल मार्च महीने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की ओर से अहमदाबाद में आयोजित एक प्रदर्शनी में 200 वैसी शख़्सियतों का फोटो फीचर पेश किया गया था, जिनकी जड़ें गुजरात से हैं.

इसमें मोहम्मद अली जिन्ना को भी शामिल किया था. इसमें जिन्ना के अलावा भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई, अज़ीम प्रेमजी, क्रिकेटर वीनू मांकड, जाने-माने अभिनेता हरिभाई जरीवाला यानी संजीव कुमार और डिंपल कापड़िया को भी शामिल किया गया था.

हालाँकि बाद में मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर सवाल उठने लगे, तो आरएसएस ने इस प्रदर्शनी से जिन्ना की तस्वीर हटा दी थी.

आरएसएस ने भले जिन्ना की तस्वीर हटा दी थी, लेकिन प्रवीण भाई पोकिया अपने घर की पहचान जिन्ना से अलग नहीं कर पा रहे हैं.

Compiled: up18 News