महंगाई की मार से जनता बेजार, क्यों चुप है इसपर मोदी सरकार !

Cover Story अन्तर्द्वन्द

पांच राज्यों में चुनाव के बाद जनता का शोषण शुरू, पेट्रोल, डीज़ल, ईंधन गैस सीएनजी के दाम आसमान पर

बेहतर दिनों की आस वाले, हुयें निराश
आवश्यक वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ें

सुरसा की मुहं की तरह बढ़ती महंगाई अब वाकई डराने लगी है। जब से विधानसभा चुनावों के नतीजे आए हैं, तब से हर दिन किसी न किसी चीज़ के दाम में बढ़ोतरी का ऐलान हो ही रहा है। पेट्रोल और डीजल रोजाना 80 पैसे की दर से बढ़ते हुए अब 10 से 12 रुपए तक महंगे हो चुके हैं और अभी इनकी कीमतें कम होने के कोई आसार नहीं हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जंग तो खत्म नहीं हो रही है, और सरकार के पास एक अच्छा बहाना तैयार है, जिसका इस्तेमाल वो कर रही है। तेल के साथ-साथ गैस के दाम भी बढ़ रहे हैं, सीएनजी की कीमतें दो दिन में पांच रुपए और सात दिनों में 9 रुपए से अधिक बढ़ चुकी हैं। गैस सिलेंडर और पाइप गैस लाइन की कीमत भी बढ़ चुकी है। महंगे ईधन का खर्च उठाने की क्षमता जब जनता में नहीं रहेगी तो वह फिर से चूल्हे की ओर लौटेगी। विकास का पहिया उल्टा घूमते देखना भी अब मुमकिन हो ही रहा है।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, सपा जैसे तमाम दल महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं। अभी बजट सत्र के दूसरे हिस्से में भी विपक्ष के सांसदों की मांग थी कि सरकार संसद में महंगाई पर चर्चा और सवालों के जवाब दे। यहां जो कुछ मोदी सरकार के नुमांइदे कहते, वह सब आधिकारिक तौर पर दर्ज होता, ताकि किसी को अकारण आरोप लगाने का मौका नहीं मिलता। मगर सरकार इस मौके से चूक गई या ये कहना चाहिए कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों से फिर बचती नजर आई। संसद में विपक्ष लगातार महंगाई पर चर्चा की बात कर रहा है, लेकिन संसद सत्र समय से पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। संसद के दोनों सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने को लेकर कांग्रेस ने अपनी नाराजगी भी जताई है।

कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस वार्ता में राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है, जिस पर हमने संसद में सवाल उठाए। पांच राज्यों में चुनाव के बाद सरकार ने लोगों का शोषण शुरू किया है। हम पेट्रोल, डीज़ल, घरेलू गैस और सीएनजी आदि की महंगाई पर चर्चा चाह रहे थे, लेकिन इस पर बात करने नहीं दी गई। कुछ ऐसे ही आरोप टीएमसी की ओर से भी लगे। लोकसभा में टीएमसी के नेता सुदीप बंधोपाध्याय ने कहा कि पेट्रोल डीजल और घरेलू गैस के भाव जिस तरह से बढ़ रहे हैं। उसको लगाम देना चाहिए। संसद में इस विषय पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। इससे दुख की बात क्या हो सकता है। हम लोगों ने कई बार कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा कराई जाए, लेकिन वह तैयार नहीं हुए। वहीं काग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि सरकार महंगाई से भाग रही थी। कल अचानक निर्णय ले लिया गया सदन स्थगित करने का। कई विधेयक नहीं लाए गए। अरुण जेटली हाउस में बैठा करते थे। लेकिन अब तो लीडर ऑफ़ हाउस पीयूष गोयल कहां रहते हैं, पता ही नहीं। प्रधानमंत्री के तो दर्शन ही नहीं होते।

सरकार पर लग रहे ये आरोप गंभीर हैं। क्योंकि संसद के दोनों सदनों में अपने बहुमत के बूते कई विधेयक पारित करवाने वाली भाजपा अगर महंगाई पर चर्चा से भाग रही है, तो उसका साफ़ मतलब यही है कि उसके पास विपक्ष के आरोपों के बचाव में कोई दलीलें हैं ही नहीं। जवाब न देने की स्थिति में भागने का फैसला भाजपा ने लिया है। क्या इसे देश के उन मतदाताओं के भरोसे का अपमान समझा जाए, जिन्होंने अपने बेहतर दिनों की आस में भाजपा को वोट दिया था। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया है कि इस सत्र में एक सौ 77 घंटे 50 मिनट काम हुआ। 17 दिनों में इस सत्र में सदन में 129 प्रतिशत काम हुआ है। संसदीय लोकतंत्र के लिए यह बड़ी सफलता है कि सदन बार-बार हंगामे की भेंट नहीं चढ़ा और कामकाज अच्छे से हुआ।

इस सफलता के पीछे केवल सरकार का बहुमत नहीं है, बल्कि विपक्ष को भी इसका श्रेय जाता है, क्योंकि उसने संसद चलाने में सहयोग किया। ऐसे में क्या सत्तारुढ़ दल की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह विपक्ष के उठाए उन मुद्दों पर चर्चा के लिए सदन में जवाब दे, जो सीधे जनता से जुड़ते हैं। अगर प्रधानमंत्री मोदी 17 दिनों में महज दो दिन ही संसद में उपस्थित रहें तो फिर जिम्मेदारी निभाने की अपेक्षा किससे रखी जाए। अगर प्रधानमंत्री 18 घंटे काम करने का दावा करते हैं, तो उन्हें देश को यह बताना चाहिए कि आखिर इन 18 घंटों में कितने घंटे वे महंगाई जैसी विकराल होती समस्या के लिए दे रहे हैं और जब संसद सत्र चल रहा था, तो आखिर ऐसे कौन से काम में मोदीजी व्यस्त थे, जो वे सदन तक आने का कष्ट नहीं उठा पाए।

पेट्रोल-डीजल खरीदना तो आम आदमी की पहुंच से बाहर हो रहा है, दूध और सब्जियों की कीमतें भी बेकाबू हो रही हैं। मार्च में दूध के दामों में बढ़ोतरी के बाद अब फिर से दाम बढ़ाए जाने की ख़बर है। जो नींबू 20-25 रुपए पाव मिला करता था, अब वो 70-80 रुपए पाव हो गया है। दूध औऱ सब्जियां तो आयात करने की नौबत अभी देश में नहीं आई है, फिर क्यों इनके दाम स्थिर नहीं हो पा रहे हैं। सरकार कंगाल हो चुके श्रीलंका की मदद कर रही है, ये अच्छी बात है। लेकिन उसके अपने देश में हालात क्या हैं, इस पर न तो सरकार की नज़र है और न वो इन पर चर्चा करना चाहती है। देखना होगा कि ये जनविरोधी रवैया लोकतंत्र में कब तक बर्दाश्त किया जाता है।

-शीतल सिंह माया