अंग्रेजों की बर्बरता का जीता-जागता सबूत है मानगढ़ धाम

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मानगढ़, राजस्थान में बांसवाड़ा जिले का एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहां मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमाएं भी लगती हैं। यह सारा क्षेत्र आदिवासी बहुल है। मुख्यतः यहां भील आदिवासी रहते हैं। स्थानीय सामन्त, रजवाड़े तथा अंग्रेज इनकी अशिक्षा, सरलता तथा गरीबी का लाभ उठाकर इनका शोषण करते थे। इनमें फैली कुरीतियों तथा अंध परम्पराओं को मिटाने के लिए गोविन्द गुरु के नेतृत्व में एक बड़ा सामाजिक एवं आध्यात्मिक आंदोलन हुआ जिसे ‘भगत आन्दोलन’ कहते हैं।

गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगती इस पहाड़ी पर एक धूणी है। यहां गोविंद गुरु की प्रतिमा लगी हुई है। साथ ही मानगढ़ से संबंधित जानकारी पत्थरों पर लिखी हुई हैं जिसके अनुसार गोविंद गुरु का जन्म 20 दिसम्बर 1858 में डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव के बंजारा परिवार में हुआ था। 1903 में गोविंद गुरु ने संप सभा बनाई, जिसका उद्देश्य विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार था। उन दिनों पूरा देश अंग्रेजों के जुल्म से परेशान था। इस दौरान गोविंद गुरु ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। सबसे पहले उन्होंने लोगों में शिक्षा की अलख जगाने और धर्म से जोड़ने का काम शुरू कर दिया।

बांसवाड़ा से डॉ. सुशील सिंह चौहान बताते हैं कि गोविंद गुरु के आंदोलन से काफी आदिवासी जुड़े हुए थे। 17 नवम्बर 1913 के दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गोविंद गुरु का जन्म दिन मनाने के लिए आदिवासी भक्तों की टोलियां मानगढ़ धाम के पहाड़ पर जुटी थीं। इसी दिन खेरवाड़ा से ब्रिटिश बटालियन और गुजरात के दाहोद से अंग्रेजी सेना को बुलाया गया था। फ़ौज ने पहाड़ी का नक्शा बनाया था। कब और कैसे आदिवासियों को मार गिराना है, इसका पूरा प्लान बनाया गया था।

ऐसे किया अंग्रेजों ने हमला

अंग्रेजों ने मानगढ़ धाम की सड़क के पार समांतर पहाड़ पर खच्चरों से मशीन गन और तोप पहुंचाए थे। मेजर हैमिल्टन और उनके तीन अफसरों ने हथियारबंद फौज के साथ मानगढ़ पहाड़ी को तीन ओर से घेर लिया था। खेरवाड़ा से आई अंग्रेजी सेना ने रात में पूरा सफर तय कर पहाड़ियों पर हथियार जमा दिए थे। अगली सुबह अंग्रेजी फौज के कर्नल शटन का आदेश मिलते ही सेना ने गोलीबारी करना शुरू कर दिया। आदिवासियों पर तोप और तत्कालीन मशीन गनों से हमला बोल दिया गया। इस हमले में 1500 आदिवासियों की मौत हो गई थी।

10 साल अंग्रेजों की कैद में रहे गोविंद गुरु

हमले के दौरान अंग्रेजों ने गोविंद गुरु और उनके एक साथी को पकड़कर जंजीरों से जकड़ दिया था। इसके बाद अहमदाबाद और संतरामपुर की जेलों में रखा गया था। इतिहासकारों की मानें तो अंग्रेजी हुकूमत ने गोविंद गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में 10 साल की कैद में बदला गया था। 12 जुलाई 1923 को संतरामपुर जेल से इस शर्त पर रिहा किया गया कि वह बांसवाड़ा, डूंगरपुर व संतरामपुर रियासत में प्रवेश नहीं करेंगे।

समाज सुधार में सक्रिय रहे गोविंद गुर

गोविंद गुरु जेल से छूटने के बाद भी समाज सुधार में सक्रिय रहे। उन्होंने भील सेवा मंडल दाहोद के मीराखेड़ी आश्रम में रहकर आदिवासियों की सेवा करते रहे। 30 अक्टूबर 1931 के दिन ही पंचमहल जिले के लिमड़ी के कगबोई नामक गांव में गोविंद गुरु का स्वर्गवास हो गया था।

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। पंजाब प्रांत सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन आता था। राजस्थान की देशी रियासतें एजेंट टु गवर्नर जरनल के अधीन थीं। एजेंट टु गवर्नर जनरल ब्रिटिश शासन के अधीन था। यहां पर अंग्रेजी हुकूमत का सीधा हस्तक्षेप नहीं था। ऐसे में इसको सीधा अंग्रेजों से संघर्ष नहीं बताकर रियासतों और रजवाड़ों से संघर्ष बताया गया था। इस कारण राजस्थान का नरसंहार इतिहास में दर्ज नहीं हो सका।

Compiled: up18news