फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस साल महाशिवरात्रि 8 मार्च को है। इस पर्व के आने का भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस अवसर पर भगवान शिव की कई रूपों में पूजा-अर्चना की जाती है। शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप बेहद भव्य है। धार्मिक मान्यता है कि महादेव ने यह रूप ब्रह्मा जी के सामने धारण किया था। साधक भगवान शिव और शक्ति को प्रसन्न करने के लिए भोलेनाथ के अर्धनारीश्वर स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर का स्वरूप धारण किया था।
अर्धनारीश्वर स्वरूप का अर्थ यह है कि आधा पुरुष और आधी स्त्री। महादेव का अर्धनारीश्वर स्वरूप पुरुष और स्त्री की समानता को दर्शाता है। अर्धनारीश्वर स्वरूप के आधे हिस्से में पुरुष और आधे हिस्से में स्त्री का वास होता है। अर्धनारीश्वर स्वरूप से यह संकेत मिलते हैं कि पुरुष और स्त्री दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। यह दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
इस वजह से धारण किया अर्धनारीश्वर रूप
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई। जब उन्होंने सृष्टि का निर्माण शुरू किया तो उनको इस बात की जानकारी प्राप्त हुई कि उनके द्वारा की गई सभी रचनाएं जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी। हर बार उनको नए सिरे से सृजन करना होगा। ऐसे में ब्रह्मा जी के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई। इस बारे में काफी देर तक सोच-विचार करने के बाद ब्रह्मा जी महादेव के पास गए।
ब्रह्मा जी के द्वारा अनुरोध करने पर देवों के देव महादेव ने पुरुष और स्त्री की उत्पति के लिए अर्धनारीश्वर रूप धारण किया। इसके बाद अर्धनारीश्वर रूप में भोलेनाथ ने ब्रह्मा जी को दर्शन दिए। ऐसे में ब्रह्मा जी को आधे हिस्से में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति और आधे हिस्से में शिव नजर आए। अर्धनारीश्वर रूप के दर्शन के द्वारा महादेव ने ब्रह्मा जी को प्रजननशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा दी।
ये है मान्यता
धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा करने से साधक को शुभ फल की प्राप्त होती है और शिव और पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
-एजेंसी
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