26 दिसंबर को मनाई जाएगी भगवान दत्तात्रेय जयंती, पूजा-पाठ करने से होते हैं रुके हुए काम पूरे

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पुराणों के अनुसार दत्तात्रेय के तीन सिर व छ: भुजाएँ थीं । ये त्रिदेवों के अंश माने जाते हैं । दत्तात्रेय अपनी बहुज्ञता के कारण पौराणिक इतिहास में विख्यात हैं । इनके जन्म की कथा बड़ी विचित्र है।

दत्तात्रेय जयंती की कहानी

एक बार नारद मुनि भगवान शंकर, विष्णु और ब्रह्माजी से मिलने स्वर्ग लोक गए । परन्तु उनकी भेंट त्रिदेवों में से किसी से न हो सकी । उनकी भेंट त्रिदेवों की पत्नियों पार्वती, लक्ष्मी एव सरस्वती जी से हो गई | नारद जी ने तीनों का घमंड तोड़ने के लिए कहा कि – मैं विश्वभर का भ्रमण करता रहता हूँ । परन्तु अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसुइया के समान पतिव्रत, धर्मवाली, शील एवं सद्गुण सम्पन्न स्त्री मैंने नही देखी | आप तीनों देविया भी धर्म पालन में उनसे पीछे हैं ।

यह सुनकर उनके अहम् को बड़ी ठेस लगी, क्योंकि वे समझती कि हमारे समान पतिव्रता स्त्री संसार में कोई नहीं है । नारदजी के चले जाने के बाद तीनों देवियों ने अपने-अपने देवों से सती अनुसुइया का पतिव्रत धर्म नष्ट करने का आग्रह किया ।

संयोगवश त्रिदेव एक ही समय अत्रि मुनि के आश्रम पर पहुचे । तीनों देवों का एक ही उद्देश्य था, अनुसूइया का पतिव्रत धर्म नष्ट करना । तीनों ने मिलकर योजना बना डाली । तीनों देवों ने ऋषियों का वेष धारण कर अनुसुइया से भिक्षा माँगी । भिक्षा में उन्होंने भोजन करने की इच्छा प्रकट की । अतिथि सत्कार को अपना धर्म समझने वाली अनुसुइया ने कहा – आप स्नान आदि से निवृत्त होकर आइए । तब तक मैं आपके लिए रसोई तैयार करती हूँ ।

तीनों देव स्नान करके आए तो अनुसुइया ने उन्हें आसन ग्रहण करने को कहा । इस पर तीनों देव बोले – हम तभी आसन ग्रहण कर सकते हैं जब तुम प्राकृतिक अवस्था में बिना कपड़ों के हमें भोजन कराओगी । अनुसुइया के तन-बदन में आग लग गई । परन्तु पतिव्रता धर्म के कारण वह त्रिदेवों की चाल समझ गई । अनुसुइया ने अत्रि ऋषि के चरणोदक को त्रिदेवों के ऊपर छिड़क दिया । इससे त्रिदेव छोटे-छोटे बालकों के रूप में बदल गए ।

तब सबको उनकी शर्त के मुताबिक अनुसुइया ने भोजन कराया तथा पालने पर अलग-अलग उन्हें झुलाने लगीं ।

काफी समय बीत जाने पर भी जब त्रिदेव नहीं लौटे, तो त्रिदेवियों को चिन्ता होने लगी । त्रिदेवियाँ त्रिदेवों को खोजती हुईं अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुँचीं और सती अनुसुइया से त्रिदेवों के बारे में जानकारी करने लगीं । अनुसुइया ने पालनों की ओर इंगित करके कहा कि तुम्हारे देव पालनों में आराम कर रहे हैं ।

अपने-अपने देवों को पहचान लो, परंतु तीनो के चेहरे एक से होने के कारण वे न पहचान सकीं । लक्ष्मीजी ने बहुत चालाकी से विष्णुजी को पालने से उठाया तो वे शंकर निकले । इस पर उनको बड़ा उपहास सहना पड़ा । तीनों देवताओ के अनुनय-विनय करने पर अनुसूइया ने कहा की

– इन तीनों ने मेरा दूध पिया है । इसलिए इन्हें किसी न किसी रुप में मेरे पास रहना होगा । इस पर त्रिदेवों के अंश से एक विशिष्ट बालक का जन्म हुआ, जिसके तीन सिर तथा छ: भुजाएँ थीं । बालक बड़ा होकर दत्तात्रेय ऋषि कहलाए । अनुसुइया ने पुनः पति चरणोदक से त्रिदेवों को पूर्ववत् कर दिया ।

– एजेंसी