जानिए! क्या था देश का बंटवारा करने वाला डिकी बर्ड प्लान और कौन थे इसके अहम किरदार?

अन्तर्द्वन्द

3 जून 1947, वो तारीख जब ऐतिहासिक घोषणा की गई. इसी दिन भारत और पाकिस्तान को अलग-अलग करने का ऐलान किया गया. वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के उस फैसले ने लाखों लोगों को अपने देश में ही शारणार्थी बना दिया. इस ऐलान के बाद करीब सवा करोड़ लोग विस्थापित हुए. दंगों में लाखों की मौत हुई. जब 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हुआ तो इसी के साथ देश के दो हिस्से हो गए. ठीक एक दिन पहले पाकिस्तान को नया मुल्क घोषित किया गया.

इसके पीछे था वो ‘डिकी बर्ड प्लान’ जिसे मई 1947 में माउंटबेटन लेकर आए थे. इसे प्लान बाल्कन के नाम ही जाना गया. जानिए क्या था प्लान और इसके अहम किरदार.

क्या था डिकी बर्ड प्लान?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत में आजादी की मांग बढ़ने लगी. धर्म के नाम पर देश को बांटने की बात शुरू हुई. सांप्रदायिक दंगे होने लगे. हालात बिगड़ने लगे. ब्रिटिश सरकार ने इसे रोकने की जिम्मेदारी तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को दी. इसके समाधान के तौर पर माउंटबेटन डिकी बर्ड प्लान लेकर आए. इस प्लान को प्लान बाल्कन के नाम से भी जाना गया.

इस प्लान के तहत माउंटबेटन ने प्रस्ताव दिया कि देश के सभी प्रांतों को स्वतंत्र उत्तराधिकारी राज्य बनाया जाए. फिर उन्हें यह चुनने का अधिकार दिया जाए कि वो संविधान सभा का हिस्सा बनें या नहीं. प्रस्ताव में कहा गया कि भारत को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटकर देश बनाया जाएगा. 18 जुलाई 1947 के दिन ब्रिटिश पार्लियामेंट ने इस योजना पर अंतिम मुहर लगा दी.

ये थे ज‍िम्मेदार 

माउंटबेटन: माउंटबेटन ने अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इस पूरी योजना को अंतिम रूप दिया और 15-16 अप्रैल 1947 को ब्रिटिश पार्लियामेंट में पेश किया. खास बात थी कि माउंटबेटन ने बदलाव की इतनी बड़ी योजना बनाने के बाद भी सभी दिग्गज भारतीय नेताओं से इस बारे में विस्तृत चर्चा तक नहीं की.

जनरल सर हेस्टिंग्स इस्माय: सर हेस्टिंग्स ने समिति की मदद से यह पूरा प्लान तैयार किया था. 15-16 अप्रैल 1947 को उन्होंने दिल्ली के प्रांतीय गवर्नरों के सामने इस योजना को पेश किया. यही वजह रही है कि इसे इस्माय योजना के नाम से भी जाना गया. इसके जरिए प्रांतों को अपनी मर्जी से संविधान सभा में पेश होने के लिए कहा.

सर जॉर्ज ऐबल: इस योजना को जिस कमेटी ने बनाया था उसमें माउंटबेटन और जनरल सर हेस्टिंग्स इस्माय के बाद सर जॉर्ज ऐबल भी शामिल थे. योजना को कैसे अंजाम दिया जाना और उसमें कौन सी बातों को शामिल किया जाना है, यह तय करने में जॉर्ज ने अहम भूमिका निभाई.

जवाहर लाल नेहरू: माउंटबेटन ने अपनी उस योजना के बारे में भारतीय नेताओं को बस औपचारिक तौर पर जानकारी दी और लंदन रवाना हो गए. बाद में वो जब शिमला पहुंचे और जवाहर लाल नेहरू से मिले तो उन्होंने उनके सामने पूरी योजना को रखा. इसे सुनते ही जवाहर लाल नेहरू ने अस्वीकार कर दिया. नेहरू का कहना था कि इस योजना के लागू होने के बाद देश कई टुकड़ों में बंटेगा. अराजकता बढ़ेगी. लार्ड माउंटबेटन ने इसकी जानकारी इंग्लैंड भेज दी.

-एजेंसी