क्रियाकलापों को नहीं सुधारा तो एक दिन खत्म हो जाएगा प्राकृतिक खजाना

अन्तर्द्वन्द

आर्थिक उन्नति और विज्ञान की तरक्की का महत्व आम आदमी के लिए यही विकास होता है, परंतु वैश्विक दृष्टिकोण से आर्थिक उन्नति के साथ प्राकृतिक व पर्यावरण संरक्षण आज दो बहुत बड़े मुद्दे खड़े हैं ।

पर्यावरण संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यू एन ई पी )के द्वारा करीब तीन दशक पहले वर्ष 1992 में 26 नवंबर को प्रतिवर्ष पर्यावरण का संतुलन को बनाए रखने एवं लोगों को जागरूक करने के साथ सकारात्मक कदम उठाकर पर्यावरण संरक्षण की बात कही गई |

जब पर्यावरण की बात होती है तो अक्सर हम गफलत में आ जाते हैं कि अभी तो हमने पर्यावरण दिवस ,जल दिवस ,जंगल दिवस ,पशु दिवस ,पक्षी दिवस ,पृथ्वी दिवस ,नदी दिवस ,युद्ध में पर्यावरण बचाव बनाए थे वह भी तो पर्यावरण संरक्षण से संबंधित थे तो आपको यह समझना जरूरी है जब हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं तो यह समस्त बात इसमें निहित हो जाती है| वह तमाम बातें जो पर्यावरण को सीधे तौर पर लाभ पहुंचाती हैं |उनके दिन उनके विषय में हम बात करके लोगों को ना केवल जागरूक करते हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण का वह एक भाग भी होता है ।

पर्यावरण में जैसा अभी आपने देखा ऊपर लिखी समस्त चीजें निहित होती हैं ,उसी प्रकार हम मनुष्यों ने अपने अपने स्वार्थ में उनका ना केवल दोहन किया है बल्कि उनका दुरुपयोग भी किया है| जिसकी परिणीति है बार-बार भूकंप का आना ,चक्रवात का आना ,बाढ़ ,सूखा ,अकाल ,ओर तो ओर कोविड १९ महामारी जैसी स्थिति का बार-बार ना केवल सामना करना पड़ता है बल्कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से रूबरू होना पड़ रहा है| अगर मनुष्य ने अपने क्रियाकलापों को नहीं सुधारा तो एक दिन प्राकृतिक खजाना खत्म हो जाएगा बिल्कुल उसी तरीके से जिस तरीके से रजवाडे का ख़ज़ाना ख़ाली हो जाता है, अगर हम धन का संचय या मितव्यियता से खर्च ना करें तो ।

आज प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण करना जानता है कभी भी वह अपनी कमियों की तरफ नहीं देखता है ,जिसके परिणाम स्वरूप हम लोगों का भविष्य अंधकार में हो जाता है| एक समय था जब मानव किसी के भी द्वारा पेड़ काटने पर अपने को कटवा कर वृक्षों की की रक्षा करता था | क़त्ल खानों में पशुओं के कटने से वह भी बेहोश हो जाता था| बस्तियों को या अपने मकान बनाने से पहले वह प्राकृतिक संरक्षण का ध्यान रखता था| आज इसी बात को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण संरक्षण के साथ संतुलित उपयोग के संबंध में अनेक समझौते किए गए इस तरह के समझौते यूरोप और अमेरिका और अफ्रीका के देशों में सन 1910 के दशक में शुरू हो गए थे |

इसी तरीके के अनेक समझौते जैसे क्यूटो प्रोटोकॉल, मार्टियल प्रोटोकॉल और रियो सम्मेलन बहुराष्ट्रीय समझौतों की श्रेणी में आते हैं| वर्तमान में यूरोपीय देशों जैसे जर्मनी में पर्यावरण मुद्दे के संदर्भ में नए नए मानक अपनाए जा रहे हैं उसी तरह भारत में भी पर्यावरण संरक्षण हेतु तमाम तरह के कमीशन और ग्रीन ट्रिब्यूनल स्थापित करके ना केवल मानक तय किए जा रहे हैं बल्कि दोषी व्यक्तियों को दंड देने का भी प्रावधान किया जा रहा है |आज फिर मनुष्य को अपने पुराने स्वभाव और प्रकृति की तरफ लौटना पड़ेगा |किसी पशु के कटने पर उसके दिल में वैसी ही पीड़ा होनी चाहिए जैसी अपने घर के सदस्य खोने पर होती हैं| मनुष्य को पानी का उसी तरीके से मितव्ययिता से खर्च करना पड़ेगा जैसे वह अपने खून को रोकने के लिए उपाय करता है ।

एक बार फिर प्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल करना पड़ेगा जैसे सूर्य की रोशनी, शुद्ध वातावरण ,जमीन से उगाए गए फल अन्य आदि प्लास्टिक का उपयोग पूर्णता बंद करना पड़ेगा अन्यथा हमारी उपजाऊ जमीन भी धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगी| मेरा सभी सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं और सामाजिक संस्था जो पर्यावरण के हर पहलू पर काम करती हैं अपने अपने तरीके से उन्हें आज पर्यावरण संरक्षण को लेकर अपने सदस्यों के बीच में व समाज के बीच में पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना पड़ेगा |किसी ने सच कहा है आज का संरक्षण कल का सुनहरा भविष्य होता है| अतः हमें प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक पौधा लगाकर प्राकृतिक संरक्षण पर अपना योगदान अवश्य करना चाहिए|

राजीव गुप्ता जनस्नेही
लोक स्वर, आगरा