मत कीजिए नंगे होने का विरोध, क्योकि नंगे हो जाना ही मॉर्डन होने की पहचान है…….

अन्तर्द्वन्द

नंगे होने का विरोध मत कीजिए आपको पिछड़ा हुआ मान लिया जाएगा …….आपको हमको रणवीर के नंगेपन पर गर्व करना होगा नही तो अल्ट्रा लिबरल होता समाज आपकी कुपमंडुकता की दुहाई देता नही थकेगा…..

नंगे हो जाना ही मॉर्डन होने की पहचान है, नेता तो हो ही गए थे अब अभिनेता भी हो गए….आप भूल रहे हैं इनकी अर्धांगनी दीपिका जी 2015 में फैशन मैगजीन वॉग के लिए माय बॉडी माई चॉइस वाले वीडियो बनवा चुकी हैं फिल्मफेयर मैगजीन की संपादक रही शोभा डे ने उनके इस वीडियो पर कहा था कि कि जिस तरह की मांग इस वीडियो में लड़कियां कर रही हैं, अगर कोई पुरुष ऐसा करे तो क्या उसे स्वीकार कर लिया जाएगा ? क्या उसकी सरेआम पिटाई नही हो जाएगी ?

2022 में इसका जवाब मिल गया है कि नही होगी !….

सब एक पैटर्न के रूप में हो रहा है आप खुद ही देखिए एक से एक भ्रष्टाचार के आरोप लगे होंगे लेकिन मोदी सरकार के मंत्री साफ़ बच निकले लेकिन जैसे ही mee too में विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर का नाम आया उन्हे इस्तीफा देना पड़ा……गोया कि mee too में नाम आना सबसे बडा जुर्म है और उस वक्त mee too कहा से आया था ये भी आप जानते होंगे !……

पिछली बार जब मलाला का एक बयान उछला था तब मैंने एक पोस्ट में चित्रकार प्रभु जोशी जी के कुछ साल पुराने आलेख का एक हिस्सा डाला था उन्होंने लिखा था

बौद्धिक स्तर पर कमजोर और बावला भारतीय समाज मूर्ख बनने के लिए हमेशा तैयार रहता है। राजनीति तो बनाती ही है, भूमंडलीकरण भी बना रहा है। फ्रेडरिक जेमेसन ने तो कहा ही था, जब तक भूमंडलीकरण को लोग समझेंगे तब तक वह अपना काम निबटा चुकेगा। वह आधुनिकता के अंधत्व से इतना भर दिया जाता है कि उसको असली निहितार्थ कभी समझ में नही आते।

”मेरा शरीर मेरा” का स्लोगन पोर्न व्यवसाय के कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकीलों ने दिया था। उसे हमारे साहित्यिक बिरादरी में राजेन्द्र यादव जी ने उठा लिया और लेखिकाओं की एक बिरादरी ने अपना आप्त वाक्य बना लिया। इस तर्क के खिलाफ, मुकदमा लड़ने वाले वकील ने ज़िरह में कहा था, “अगर व्यक्ति का शरीर केवल उसका है तो किसी को आत्महया करने से रोकना, उसकी स्वतंत्रता का अपहरण है। अलबत्ता, जो संस्थाएं, आत्महत्या से बचाने के लिए आगे आती है वे दरअसल, व्यक्ति की स्वतंत्रता के विरूद्ध काम करती है। उनके खिलाफ मुकदमा दायर करना चाहिए।

बाज़ारवाद की कोख से जन्मे इस फेमिनिज़्म का रिश्ता, वुमन-लिब से नहीं है। ये तो रौंच-कल्चर का हिस्सा है, जिसमे पोर्न-इंडस्ट्री की पूंजी लगी हुई है। याद रखिये कि किसी भी देश और समाज का पोरनिफिकेशन परिधान में ही उलटफेर कर के किया जाता है। स्त्री इसके केंद्र में है।

आलेख कुछ साल पुराना है अब पोर्नफिकेशन के केन्द्र में पुरुष को लाया जा रहा है

-गिरीश मालवीय जी की फेसबुक पोस्ट से साभार