जानिए! क्या है SCO संगठन औऱ इसे बनाने की क्यों पड़ी जरूरत?

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1991 में सोवियत यूनियन कई हिस्सों में टूट गया। इसके बाद रूस के पड़ोसी देशों के बीच बाउंड्री तय नहीं होने की वजह से सीमा विवाद शुरू हो गया। ये विवाद जंग का रूप न ले, इसके लिए रूस को एक संगठन बनाने की जरूरत महसूस हुई।

रूस को यह भी डर था कि चीन अपनी सीमा से लगे सोवियत यूनियन के सदस्य रहे छोटे-छोटे देशों की जमीनों पर कब्जा न कर ले। ऐसे में रूस ने 1996 में चीन और पूर्व सोवियत देशों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया। इसका ऐलान चीन के शंघाई शहर में हुआ, इसलिए संगठन का नाम- शंघाई फाइव रखा गया। शुरुआत में इस संगठन के 5 सदस्य देशों में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान शामिल थे।

जब इन देशों के बीच सीमा विवाद सुलझ गए तो इसे एक अंतरराष्ट्रीय संगठन का रूप दिया गया। 2001 में इन पांच देशों के साथ एक और देश उज्बेकिस्तान ने जुड़ने का ऐलान किया, जिसके बाद इसे शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी SCO नाम दिया गया।

SCO का मुख्य उद्धेश्य और काम ?

SCO देशों ने जब सीमा विवाद को सुलझा लिया तो इसका उद्देश्य बदल गए। अब इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को तीन तरह के ईविल यानी शैतानों से बचाना था।

अलगाववाद
आतंकवाद
धार्मिक कट्टरपंथ

रूस को लगता था कि उसके आसपास के देशों में कट्टरपंथी सोच न बढ़े। अफगानिस्तान, सऊदी अरब और ईरान के करीब होने की वजह से ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान में आतंकी संगठन पनपने भी लगे थे, जैसे- IMU यानी इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान में HUT। ऐसे में SCO के जरिए रूस और चीन ने इन तीन तरह के शैतानों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी।

इसके अलावा सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और संबंधों को मजबूत करना भी इस संगठन का मुख्य काम है। सदस्य देशों के बीच ये संगठन राजनीति, व्यापार, इकोनॉमी, साइंस, टेक्नोलॉजी, एनर्जी, पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का काम कर रहा है।

भारत SCO में कब और क्यों शामिल हुआ?

SCO बनने के बाद भारत को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया था। हालांकि, उस समय भारत ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था।

इस बीच चीन ने पाकिस्तान को इस संगठन का सदस्य बनाने की मुहिम शुरू कर दी। इससे रूस को संगठन में चीन के बढ़ते दबदबे का डर लगने लगा। तब जाकर रूस ने भारत को भी इस संगठन में शामिल होने की सलाह दी।

इसके बाद 2017 में भारत इस संगठन का स्थायी सदस्य बना। भारत के इस संगठन में शामिल होने की 5 और वजहें भी हैं।

भारत का ट्रेड SCO के सदस्य देशों के साथ बढ़ता जा रहा था, ऐसे में इस संगठन से संबंध बेहतर करने के लिए।
सेंट्रल एशिया में अगर भारत को पहुंच बढ़ानी है तो शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन अहम है। इसकी वजह ये है कि इस संगठन में सेंट्रल एशिया के सारे देश एक साथ बैठते हैं।
अफगानिस्तान पर अपना पक्ष रखने के लिए भारत के पास कोई दूसरा संगठन नहीं है। अगर भारत को अफगानिस्तान में अपनी भूमिका तय करनी है तो उसे इन सभी देशों के सहयोग की जरूरत है।

आतंकवाद और ड्रग्स की समस्या को खत्म करने के लिए भारत को SCO के देशों के सहयोग की जरूरत है।

सेंट्रल एशिया के देशों को भी इस संगठन में भारत की जरूरत थी। वो छोटे-छोटे देश नहीं चाहते थे जिससे केवल चीन और रूस ही संगठन में दबदबा बनाए रखें। इसके लिए वो भारत को बैलेंसिंग पावर के तौर पर चाह रहे थे।

गोवा में होने वाली SCO बैठक में शामिल होने से पाकिस्तान को क्या फायदा होगा?

बिलावल भुट्टो जरदारी के गोवा में होने वाले SCO की बैठक में शामिल होने से पाकिस्तान को 4 तरह से फायदा हो सकता है।

भारत की इकोनॉमी अभी अच्छी है। वहीं, पाकिस्तान की इकोनॉमी पूरी तरह से तबाह हो गई है। ऐसे में पाकिस्तान इस बैठक में शामिल होकर भारत और दूसरे सदस्य देशों के साथ एक बार फिर से ट्रेड बहाल करना चाहेगा।

जब भारत और दूसरे देश आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तानी को घेरने की कोशिश करेंगे तो संभव है कि बिलावल पाकिस्तान का बचाव करेंगे। अगर पाकिस्तान की ओर से कोई इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले रहा होता तो इससे वह इस मामले में पूरी तरह से घिर सकता था।

पाकिस्तान चाहता है कि इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए पड़ोसी देशों के साथ उसकी कनेक्टिविटी सही रहे। बैठक में उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान के बीच शुरू होने वाले रेलवे नेटवर्क प्रोजेक्ट में तेजी लाने की मांग बिलावल कर सकते हैं।

SCO में रूस और चीन की अहम भूमिका है और पाकिस्तान अभी किसी भी तरह से इन दो देशों को नाराज नहीं करना चाहता है। हाल में रूस ने भारत की तरह ही पाकिस्तान को भी सस्ता तेल देना शुरू किया है। ऐसे में इस बैठक में शामिल होकर पाकिस्तान SCO के प्रति अपनी वफादारी साबित करके रूस को खुश कर सकता है।

क्या SCO से भारत को कुछ खास हासिल हुआ है?

दो मौकों पर SCO की वजह से भारत ने चीन को झुकने के लिए मजबूर किया है।

1. भारतीय अधिकारियों ने सितंबर 2022 में समरकंद में होने वाले SCO सम्मेलन के पहले चीन को साफ कर दिया था कि प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में तभी हिस्सा लेंगे, जब वह LAC पर तैनात अपनी सेनाओं को पहले की स्थिति में वापस बुला लेगा।

इस मैसेज का असर भी हुआ और SCO बैठक से ठीक एक हफ्ते पहले 8 सितंबर को चीन ने अपनी सेना को LAC में पूर्वी लद्दाख के हॉट-स्प्रिंग्स-गोर्गा इलाके, जिसे पेट्रोलिंग पॉइंट 15 भी कहा जाता है, से हटाना शुरू कर दिया।

दरअसल, 2022 में चीन की अगुवाई में होने वाले BRICS सम्मेलन में PM मोदी ने हिस्सा नहीं लिया था। जबकि कुछ दिनों बाद वह अमेरिकी अगुआई वाले QUAD देशों की बैठक में हिस्सा लेने टोक्यो चले गए थे। लिहाजा चीन नहीं चाहता था कि SCO सम्मेलन में मोदी की गैर मौजूदगी से इस संगठन के आपसी मनमुटाव का संदेश दुनिया में जाए। BRICS ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका का एक संगठन है।

2. 2017 में भी भारत ने चीन को कह दिया था कि अगर डोकलाम में चीनी सेनाएं अपनी पहले की स्थिति में नहीं लौटेंगी तो प्रधानमंत्री मोदी BRICS समझौते के लिए चीन के शियामेन नहीं जाएंगे। चीन ने भारत की बात मानी और मोदी ने BRICS समझौते के लिए शियामेन की फ्लाइट पकड़ ली।

Compiled: up18 News