जानिए: कार्बन डेटिंग क्या है, जिसकी ज्ञानवापी मामले में हिन्‍दू पक्ष ने की है कोर्ट से मांग

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कार्बन डेटिंग के तरीके को ऐसे समझें

कार्बन डेटिंग के तरीके को ऐसे समझा जा सकता है। वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप मौजूद हैं। यह पृ्थ्वी के प्राकृतिक प्रक्रियाओं के हिस्से के रूप में होते हैं। कार्बन के यह तीन रूप हैं- कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14। कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 की आवश्यकता होती है। इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है।

कार्बन 14 कार्बन का रेडियोधर्मी आइसोटोप है इसका अर्धआयुकाल 5730 साल से भी अधिक का है। यह विधि कई कारणों से विवादों में भी रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक रेडियो कार्बन का जितनी तेजी से क्षय होता है उससे 27 से 28 प्रतिशत ज्यादा इसका निर्माण होता है जिससे संतुलन की अवस्था प्राप्त होना मुश्किल होता है।

कब हुई थी इस तकनीक की खोज

कार्बन डेटिंग की तकनीक का इस्तेमाल भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश देशों में किया जाता है। इस तकनीक की खोज1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी ने की थी। इस विधि के जरिए सबसे पहले एक लकड़ी की उम्र का पता लगाया गया था। इस खोज के लिए विलियर्ड लिबी को साल 1960 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

उठते रहे हैं सवाल

पुरानी चीजों की उम्र पता करने के लिए कार्बन डेटिंग का तरीका आजमाया जाता है लेकिन इसकी कुछ सीमाएं हैं। टेराकोटा की मूर्ति की उम्र का अंदाजा इसके जरिए नहीं लगाया जा सकता है। ऐसे में उम्र पता करने के लिए इनकी आकृति, लिखावट, भाषा के जरिए पता की जाती है। इसके लिए खास एक्सपर्ट्स होते हैं। ऐसा मुमकिन है कि अलग-अलग एक्सपर्ट्स के हिसाब से उम्र का हिसाब अलग-अलग भी हो।

-Compiled by Up18news