ईरान के धमाकों की जिम्मेदारी IS ने ली, ईरान को इजरायल और US पर था शक

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ईरान के दक्षिण में केयरमान में हुए इस हमले में 84 लोगों की जान गई है जबकि कई अन्य घायल हैं.

गुरुवार को ईरान की इमर्जेंसी सेवा के प्रमुख ने धमाके में मरने वालों से जुड़े आँकड़ों में बदलाव करते हुए इसे 84 बताया था. इससे पहले धमाकों में मरने वालों की संख्या 95 बताई जा रही थी.

धमाके के बाद ईरान ने कहा था कि इसके पीछे इसराइल और अमेरिका का हाथ हो सकता है.

इस्लामिक स्टेट ने ली ज़िम्मेदारी

चार जनवरी को इस्लामिक स्टेट ने अपने टेलिग्राम चैनल पर एक संदेश पोस्ट किया और धमाकों की ज़िम्मेदारी ली.
बाद में इस चरमपंथी समूह ने अपनी न्यूज़ एजेंसी अमाक में दो लोगों की तस्वीरें साझा कीं जिनके चेहरे ढके हुए थे. समूह ने दावा किया कि ईरान में हुए धमाकों के लिए ये दोनों लोग ही ज़िम्मेदार हैं.

इस रिपोर्ट में कहा गया कि पहले आत्मघाती हमलावर ने अपनी बेल्ट पर लगे विस्फोटक को उस जगह पर डेटोनेट किया, जहाँ बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे. इसके क़रीब 15 मिनट बाद दूसरे आत्मघाती हमलावर ने अपने पास मौजूद विस्फोटक से उड़ा लिया.

इस्लामिक स्टेट का दावा है कि इन दोनों हमलावरों के नाम “ओमर अल-मुवाहिद” और “सैफ़ुल्लाह अल-मुजाहिद” हैं.
ये दोनों ही सामान्य नाम हैं, जिनसे ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि हमलावर ईरानी नागरिक थे या विदेशी.
हाल के सालों में इस्लामिक स्टेट ने ईरान में कई मौक़ों पर आम नागरिकों और सुरक्षाबलों को निशाना बनाया है.

इस्लामिक स्टेट ने ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के जनरल रहे क़ासिम सुलेमानी की हत्या का स्वागत किया था. सुलेमानी के नेतृत्व में सेना ने इराक़ में सालों तक इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ युद्ध किया था.

ईरान ने इसराइल, अमेरिका को ठहराया था ज़िम्मेदार

इससे पहले ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के डिप्टी मोहम्मद जमशीदी ने धमाके के लिए इसराइल और अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराया था.

हालांकि अमेरिका ने कहा था कि इस बात के कोई संकेत नहीं मिले कि इसमें इसराइल किसी तरह से शामिल था. साथ ही उसने इसमें ख़ुद के शामिल होने से जुड़े आरोपों को भी सिरे से ख़ारिज कर दिया है.

मध्य पूर्व पर नज़र रखने वाले कुछ जानकारों का कहना था कि ईरान के भीतर काम करने का इसराइल का ये तरीक़ा नहीं है.

माना जाता है कि देश के बाहर होने वाले हमलों के लिए इसराइल अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद की मदद लेता है.
मोसाद की मदद से किए जाने वाले हमले अक्सर सटीक निशाना लेकर की गई हत्या की कोशिशें होती हैं, जैसे जानेमाने परमाणु वैज्ञानिकों या फिर सेना के अधिकारियों की हत्या.

शोक मना रहे आम नागरिकों के बीच बम धमाका करने के लिए अपनी महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया एजेंसी को काम पर लगाना इसराइल के हित में नहीं होगा.
ईरान के सुप्रीम नेता आयतोल्लाह अली ख़ामेनेई ने कहा है कि हमला करने वालों को “बख्शा नहीं जाएगा.”

बुधवार शाम को जारी एक बयान में आयतोल्लाह अली ख़ामेनेई ने कहा, “क्रूर अपराधियों को पता होना चाहिए कि उनसे अब सख़्ती से निपटा जाएगा और बिना शक़ उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी.”

आईएस के दावे के बाद क्या होगा?

अब जब इस्लामिक स्टेट ने इन धमाकों की ज़िम्मेदारी ले ली है और यहाँ तक कि दो आत्मघाती हमलावरों की तस्वीरें भी साझा कर दी हैं, ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स की तरफ़ से किसी तरह का माफ़ीनामा सामने आएगा, ऐसा नहीं लगता.
अमेरिका और इसराइल से ईरान के नेतृत्व की दुश्मनी कोई दबी-छिपी बात नहीं है. लेबनान, इराक़, ग़ज़ा और यमन जैसे कई मोर्चों पर ये देखने को भी मिलती है.

जनरल क़ासिम सुलेमानी न सिर्फ़ ईरान का सबसे ताक़तवर सैन्य चेहरा थे बल्कि देश के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक थे. वो आयतोल्लाह ख़ामनेई के बाद दूसरे स्थान पर थे, जिन्हें वो सीधे तौर पर रिपोर्ट करते थे.

साल 2020 में अमेरिका ने इराक़ के बगद़ाद हवाई अड्डे के पास ड्रोन से एक हवाई हमला कर क़ासिम सुलेमानी की हत्या की थी.

बुधवार को ईरान के केयरमान में हुए धमाके से कुछ दिन पहले लेबनान के बेरुत के पास हुए एक इसराइली ड्रोन हमले में हमास की राजनीतिक शाखा के डिप्टी प्रमुख सालेह अल-अरुरी की मौत हो गई थी. इस कारण इलाक़े में पहले ही तनाव था.

-एजेंसी