झोला उठाकर चल देने और चौराहे पर आने के वादे के बाद भी, चंदे की जांच और शेल कंपनी वाले काले धन पर चुप्पी!

अन्तर्द्वन्द

दान और चंदा लेकर लोकोपकार करने वाली कोई संस्था अगर यह नहीं बता पाये कि उसके पास पैसे कहां से आए (जो कुछ लाख या करोड़ हो सकते हैं) तो उसके पीछे सीबीआई लगाई जा सकती है जनहित का उसका काम रोका जा सकता है और उन लोगों को परेशान किया जा सकता है जो जनहित के काम करते हैं। ये लोग ना सरकारी वेतन पाते हैं और ना सरकारी पैसे का घपला करते हैं अगर चंदा ज्यादा लेते हैं या नियमानुसार नहीं लेते हैं और निजी तौर पर खर्च करें तो भी वह देश के काम ही आएगा। इनके पीछे सीबीआई लगाना – जबकि सीबीआई की स्थापना उच्च पदों पर भ्रष्टाचार रोकने के लिए की गई थी।

यह बहुत बड़ी या नुकसानदेह गड़बड़ी नहीं है और ना ऐसी गड़बड़ी करने की छूट है। इस तरह की गड़बड़ी के लिए राजस्व और टैक्स विभाग के कई लोग हैं पर वे या तो बहुत प्रभावी नहीं हैं या सरकारी निर्देश नहीं मानते हैं या जिसे सरकार चाहती है उसे नहीं फंसाते हैं या तुरंत परिणाम नहीं देते हैं। इसलिए सरकार इन मामलों में भी सीबीआई लगा देती है जबकि ये लोग अगर ठीक काम नहीं करते हैं तो कार्रवाई इनके खिलाफ भी होनी चाहिए। संभव है होती भी हो पर पारदर्शिता तो नहीं ही है। खास कर पीएम केयर्स बनने के बाद यह पता करना मुश्किल है कि कौन सा पैसा चंदा है और कौन सा काम कराने के लिए या उसके बदले।

नरेन्द्र मोदी ने 2014 के पहले जिस भ्रष्टाचार की बात की थी और जिसे दूर किया जाना था वह यह कि बड़े लोग मंत्री और उच्च स्तर के सरकारी बाबू नियम बदकर या बड़ी खरीद में किसी का पक्ष लेकर, मदद करके लाखों रुपये की रिश्वत लेते हैं और यह पैसा विदेश में लिया जाता है और वहीं जैसे स्विस बैंक में जमा हो जाता है। सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती है या कर पाती है। नरेन्द्र मोदी का दावा था कि वे 100 दिन में यह पैसा विदेश से देश में ले आएंगे और यह इतना पैसा है कि देश में आ गया तो हर परिवार को या व्यक्ति को 15 लाख रुपए मिलेंगे।

नोटबंदी से भी काला धन खत्म होना था और 50 दिनों में सपनों का भारत बनना था नहीं तो किसी भी चौराहे पर आना था और ठसक ये कि मेरा क्या है सब आपके लिए है। नहीं ठीक हुआ तो झोला उठाकर चल दूंगा। मोटा-मोटी यही मामला था और यही सब प्रचार या दावा किया गया था। अब खबर है कि सरकार की नाक के नीचे, शेल कंपनियों के खिलाफ कथित अभियान के बावजूद, एक सेठ की कंपनी में 20,000 करोड़ रुपए का निवेश विदेश से आया है। अव्वल तो यह मामला शांत हो जाता पर राहुल गांधी ने इसे मुद्दा बना दिया और सरकार ने घबरकार उनकी सदस्यता खत्म करवा दी।

अब स्थिति यह है कि सेठ के पास आए 20,000 करोड़ किसके हैं पता नहीं। जो व्यवस्था, दावा और स्थितियां हैं उसमें आम आदमी पार्टी के 100 करोड़ भी उसमें हो सकते हैं। कुछ सौ या हजार लोगों की भ्रष्टाचार की कमाई तो हो ही सकती हैं। जांच से ही मामला साफ होगा पर सरकार सेठ की जांच नहीं करवा रही है और आम आदमी पार्टी के खिलाफ बहुप्रचारित जांच में सेठ का पैसा पार्टी का भी हो सकता है इस पर विचार ही नहीं है। यहां तक तो ठीक था। कांग्रेस भी शायद ऐसे ही करती होगी या चुनाव लड़ने की यही मजबूरी होगी। लेकिन दिलचस्प यह है कि ऑक्सफैम के चंदे की जांच सीबीआई से कराई जा रही है।