“साहित्यकारों की एक बड़ी पीढ़ी को मार्क्सवादी आलोचकों ने नई पीढ़ी से अलग कर दिया। हम उनके योगदान का स्मरण करने उनके द्वार जा रहे हैं” उक्त विचार हैं हिन्दुतानी अकादमी, प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह के। वह आगरा कॉलेज के हिंदी विभाग एवं हिन्दुतानी अकादमी, प्रयागराज के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी का विषय था “बाबू गुलाब राय की रचनाओं का संसार”।
उन्होंने आगे कहा कि विस्मृत साहित्यकारों को हिंदी साहित्य में उचित स्थान दिलाने के लिए हिंदुस्तानी एकेडमी ने कमर कस ली है। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में एक दौर ऐसा था जब साहित्यकार कम और आलोचक अधिक थे। यही कारण हैं कि बाबू गुलाबराय को इतना सम्मान नहीं मिल पाया, जिसके वह हकदार थे। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि सौ साल पुरानी हिंदुस्तानी पत्रिका का अगला अंक बाबू गुलाबराय विशेषांक के रूप में छापा जाएगा। उन्होंने बाबू गुलाबराय के साहित्य का मूल्यांकन एवं पुनर्पाठ का आग्रह उपस्थित शिधार्थियों से किया।
बीज वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो उमापति दीक्षित ने कहा कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बाद भी उन पर शोध कार्य नहीं हुआ। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें हैं। विनम्रता उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। उन्होंने अपनी साहित्यिक विफलताओं को कभी भी छुपाया नहीं।
विशिष्ट अतिथि डॉ वेदप्रकाश शर्मा अमिताभ ने बाबू गुलाबराय के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि उनका सबसे बड़ा योगदान भारतीयता एवं पाश्चात्य का मिलन कराना था। वह साहित्य विभाजन में नहीं वरन समन्वयन में विशवास रखते थे। उन्होंने प्राचीन व् नवीन का समन्वय करते हुए मध्य मार्ग का अनुसरण किया।
चीन से पधारे हिंदी भाषा विद्वान प्रो विवेकमणी त्रिपाठी ने कहा कि चीन 17 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। इसके लिए चीन सरकार विश्वविद्यालयों में भारतीय विशेषज्ञों की नियुक्ति कर रही है। संगोष्ठी संयोजक डॉ सुनीता रानी घोष ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। उद्घाटन कार्यक्रम का संचालन डॉ शेफाली चतुर्वेदी ने किया।
संगोष्ठी के द्वितीय तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता प्रो प्रदीप श्रीधर एवं अध्यक्ष प्रो कमलेश नागर ने कहा कि बाबू गुलाबराय ने समान रूप से विचारो के आधार पर साहित्य की कलम चलाई है, यही उनकी विशेषता है। डॉ अनुपम श्रीवास्तव एवं डॉ रामस्नेही लाल शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो कमलेश नागर ने की। आभार सह संयोजिका डॉ ममता सिंह ने तथा स्वागत डॉ वीके सिंह ने किया।
समापन समारोह में मुख्य वक्ता डॉ उमेश द्विवेदी तथा विशिष्ट अतिथि डॉ संध्या द्विवेदी एवं डॉ रंजना पांडे ने अपने-अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि बाबु गुलाबराय ने निबंध, आलोचना, हास्य व्यंग्य, दर्शन, मनोवैज्ञानिक आदि विधाओं में लेखन कार्य किया। ठलुआ क्लब, अक्ल बड़ी या भैंस, चोरी एक कला, मेरी असफलताएं आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
सत्र का संचालन डॉ सुनीता द्विवेदी ने किया। आभार डॉ संध्या यादव ने किया। स्वागताध्यक्ष एवं प्राचार्य डॉ अनुराग शुक्ल ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इससे पूर्व मुख्य अतिथि डॉ उदय प्रताप सिंह एवं प्राचार्य डॉ अनुराग शुक्ल ने माँ सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर संगोष्ठी का विधिवत शुभारम्भ किया।
आयोजन समिति के सदस्यगण डॉ चंद्रशेखर शर्मा, डॉ वंदना, डॉ भूपाल सिंह एवं डॉ मधु श्रीवास्तव ने विभिन्न व्यवस्थाएं संभालीं। इस अवसर पर डॉ रेखा पतसारिया, डॉ दीपा रावत, डॉ आरके श्रीवास्तव, डॉ रचना सिंह, डॉ सुजाता यादव, डॉ केपी तिवारी, डॉ अमित अग्रवाल, डॉ आनंद पांडे, डॉ अनुराधा गौड़, डॉ शरद उपाध्याय, डॉ अंशु चौहान आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
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