भारत ने चीन की दुखती रग पर रखा हाथ: अरुणाचल प्रदेश में आयोजित किया टॉप बौद्ध नेताओं का राष्ट्रीय सम्मेलन

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हिमालय क्षेत्र में बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने की कोशिश

अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के जेमीथांग इलाके में गोरसाम स्तूप में नालंदा बौद्ध परंपरा के एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन सोमवार को किया गया। यह बेहद दुर्लभ है कि हिमालयी क्षेत्र के बौद्ध नेता इतनी बड़ी संख्या में एक साथ आए हैं। इसे साफ तौर पर चीन को जवाब माना जा रहा है। खास बात ये है कि जिस जेमीथांग गांव में यह सम्मेलन हो रहा है, वह अरुणाचल प्रदेश का भारत-चीन सीमा पर आखिरी गांव है। इस सम्मेलन में 600 बौद्ध प्रतिनिधि शामिल हुए। हिमालय क्षेत्र में बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिहाज से यह बड़ा सम्मेलन माना जा रहा है।
पेमा खांडू ने तिब्बत से जोड़ा संपर्क

इस बौद्ध सम्मेलन में हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, सिक्किम, उत्तरी बंगाल और अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों तुतिंग, मेचुका, ताकसिंग और अनिनी आदि जगहों से 35 बौद्ध प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।

कार्यक्रम में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि बौद्ध संस्कृति ना सिर्फ संरक्षित करने की जरूरत है बल्कि इसका प्रचार करने की भी जरूरत है। पेमा खांडू ने ये भी कहा कि जेमीथांग ही वो जगह है, जहां से दलाई लामा पहली बार भारत में दाखिल हुए। ऐसे में यहां सम्मेलन का आयोजन अहम है। पेमा खांडू ने ये भी कहा कि नालंदा यूनिवर्सिटी के स्कॉलर्स आचार्य संतरक्षिता और नागार्जुन आदि ने ही तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया।

चीन को क्यों माना जा रहा जवाब?

तवांग में बौद्ध सम्मेलन क्यों अहम है, इसका जवाब है तवांग मठ। दरअसल, अरुणाचल के तवांग में तिब्बती बौद्ध धर्म का दूसरा सबसे बड़ा और अहम मठ है। पांचवें दलाई लामा के सम्मान में साल 1680-81 में मेराग लोद्रो ग्यामत्सो ने इस मठ की स्थापना की थी। तवांग मठ और तिब्बत के ल्हासा में स्थित मठ के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। तवांग मठ के चलते ही अरुणाचल के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रहने वाली कुछ जनजातियों का तिब्बत के लोगों से सांस्कृतिक संबंध है। यहां के मोनपा आदिवासी तिब्बती बौद्ध धर्म को ही मानते हैं।

चीन पर आरोप है कि वह तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहा है और वहां चीन के नागरिकों को बसाया जा रहा है। ऐसे में तिब्बत के बाहर तवांग मठ ही है जो चीन के प्रभाव से मुक्त है और चीन को आशंका है कि तिब्बती संस्कृति को खत्म करने की उसकी मंशा तवांग मठ पर कब्जे के बगैर पूरी नहीं हो सकती। साथ ही चीन को डर है कि उसके खिलाफ तिब्बती प्रतिशोध को तवांग मठ से ताकत मिल सकती है। यही वजह है कि चीन तवांग पर कब्जा करना चाहता है।

9 दिसंबर 2022 की रात चीन के सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में घुसने की कोशिश की, जिस पर उनकी भारतीय सैनिकों से झड़प हो गई और चीनी सैनिकों को वापस लौटना पड़ा।

अब तवांग में हिमालयी क्षेत्र के बौद्ध नेताओं का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित होने के गहरे निहितार्थ निकाले जा रहे हैं और इससे चीन को बड़ा झटका लग सकता है।

Compiled: up18 News