संस्थाओं पर आयकर विभाग की नकेल, दान में मिली राशि का भी देना होगा पूरा हिसाब

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दस वर्ष के रिकार्ड रखने होंगे, विभाग मांग सकेगा उसके पहले का भी ब्योरा

आयकर विभाग एक अक्टूबर से प्रमुख बदलाव करने जा रहा है। अब संस्थाओं, अस्पतालों, स्कूल व कालेजों को अब पूरा हिसाब देना होगा। उन्हें दान में मिली धनराशि का पूरा हिसाब भी रखना होगा। सभी ट्रस्टों के लिए दस वर्ष तक के लेन-देन का ब्योरा रखना अनिवार्य किया जा रहा है। संस्थाओं को कारपोरेट कंपनियों की तरह लेन-देन का पूरा हिसाब रखना होगा। ट्रस्टों को आयकर से छूट हासिल है, लेकिन पैमाने के अनुसार रिकार्ड नहीं रखने वाले ट्रस्टों की छूट समाप्त की जा सकती है। ऐसे में ट्रस्टों को उच्च कर दर और छूट समाप्त होने का सामना करना पड़ेगा.

एक अक्टूबर से आयकर का नया नियम 17एए लागू होगा। आयकर विभाग किसी भी बीते वर्ष के आय-व्यय का लेखा-जोखा मांगेगा तो उपलब्ध कराना होगा। किसी मामले में आयकर विभाग धारा 147 में नोटिस देता है, तो ऐसे मामले में रिकार्ड रखने की 10 वर्ष तक की सीमा नहीं रहेगी। जब तक प्रकरण समाप्त नहीं हो जाता है, तब तक पूरा रिकार्ड रखना होगा। नये नियम से संस्थाओं के लिए वित्तीय रिकार्ड का रखरखाव आसान नहीं हाेगा। एकाउंटिंग खर्च बढ़ जाएगा।

प्रमुख बदलाव

-हर ट्रस्ट, शैक्षिक संस्थान, अस्पताल, विश्वविद्यालय को अपनी कैश बुक, लेजर, जनरल के साथ प्रत्येक दिन के हर भुगतान की रसीद रखनी होगी।

-किसी से कोई दान मिला है, तो उसके हिसाब के साथ दानदाता का पेन और आधार नंबर की जानकारी भी रखनी होगी।

-ट्रस्ट को उधार लेन-देन का रिकार्ड भी मेंटेन करना होगा।

-ऐसे ट्रस्ट या धार्मिक-परमार्थिक संस्थान अपने सुधार, मरम्मत के बिल के रिकार्ड भी मेंटेन करेंगे।

-अस्पताल और स्कूल, कालेज अब तक बिना लाभ-हानि के संचालित होने का दावा करने के साथ फीस वृद्धि भी करते रहे हैं। अब आय छुपाना और घाटा छुपाना आसान नहीं होगा।

-धार्मिक और सामाजिक संस्थानों के साथ अस्पताल और स्कूल-कालेज भी पंजीकृत होते हैं। अब तक इनके खाते रखने का नियम स्पष्ट नहीं था।

-एजेंसी