जर्मनी के मारबाख में शेक्सपियर के ‘फर्स्ट फोलियो’ के 400 साल’ नाम से प्रदर्शनी शुरू, सभी नाटकों का है संग्रह

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शेक्सपियर के जीवित रहते उनका कोई भी नाटक प्रकाशित नहीं हुआ. निधन के बाद उनके नाटक दल के दो सदस्यों ने नाटकों की प्रतियां इकट्ठी कीं और उन्हें प्रकाशित करवाया. उसे ही अब ‘फर्स्ट फोलियो’ के नाम से जाना जाता है.

भले ही फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला अपने आधुनिक स्वरूप में 1949 में शुरू हुआ, लेकिन जर्मन शहर के प्रकाशकों का यह कार्यक्रम करीब पिछले पांच सौ वर्षों से आयोजित हो रहा है. मेले के महत्व को दिखाते हुए 1622 में फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले की सूची में एक महत्वपूर्ण घोषणा शामिल की गई थी. वह घोषणा थी, “एक प्रमुख ब्रिटिश नाटककार के नाटकों को पहली बार प्रिंट में प्रकाशित किया जाएगा.” वह नाटककार थे विलियम शेक्सपियर.

शेक्सपियर के जमा किए गए नाटकों, कविताओं और लेखन का पहला आधिकारिक संस्करण ‘मिस्टर विलियम शेक्सपियर की कॉमेडी, हिस्ट्री और ट्रेजडी’ शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ था. इसे फर्स्ट फोलियो के नाम से जाना जाता है.

इस फोलियो के 400 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में, जर्मन लिटरेरी आर्काइव मारबाख, उस पुस्तक को समर्पित एक प्रदर्शनी आयोजित कर रहा है जो साहित्यिक इतिहास बनने की राह पर है.

शेक्सपियर की याद: 1623 में शेक्सपियर का फर्स्ट फोलियो प्रकाशित हुआ

विलियम शेक्सपियर अपने जीवनकाल में ही अपने देश में काफी सफल और लोकप्रिय हो गए थे, लेकिन उनके जीवित रहते उनका कोई नाटक प्रकाशित नहीं हुआ था. उनकी मौत के सात साल बाद उनके नाटक प्रकाशित होने और बंटने शुरू हुए. इसके बाद ही उन्हें पूरी दुनिया में साहित्य के दिग्गज के तौर पर पहचान मिली.

1623 में शेक्सपियर का फर्स्ट फोलियो प्रकाशित हुआ. इससे पहले उनके सिर्फ कुछ नाटक अलग-अलग प्रकाशित हुए थे. प्रकाशित नहीं होने की वजह से, शेक्सपियर के नाटकों और लेखन का बड़ा हिस्सा गायब हो गया. इनमें मैकबेथ, ट्वेल्थ नाइट, और द टैमिंग ऑफ द श्रू जैसे नाटक शामिल हैं.

आज भी इन नाटकों का प्रदर्शन पूरी दुनिया में किया जाता है, जिनकी वजह से विलियम शेक्सपियर अब तक के सबसे सफल लेखकों में से एक बन गए हैं. उन्हें अक्सर इंग्लैंड का राष्ट्रीय कवि भी कहा जाता है. उनके नाम पर 38 नाटक, 154 सॉनेट, दो लंबी कविताएं हैं. हैमलेट, किंग लेयर, ओथेलो, मैकबेथ जैसे नाटक अंग्रेजी साहित्य की नायाब कृतियां हैं, जो आज इतने साल बाद भी पसंद की जाती हैं.

प्यार, मौत और युद्ध पर बेहतर तरीके से बातें रखी

प्रदर्शनी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में, जर्मन लिटरेरी आर्काइव की निदेशक सांड्रा रिष्टर ने फर्स्ट फोलियो को ‘प्रकाशन की बड़ी उपलब्धि’ के तौर पर बताया, जिसने शेक्सपियर को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में मदद की.

रिष्टर का मानना है कि शेक्सपियर का काम आज के इस उथल-पुथल के दौर में भी प्रासंगिक है और काफी महत्वपूर्ण संदेश देता है. उन्होंने डीडब्ल्यू को ईमेल के जरिए बताया, “शेक्सपियर ने ‘टेंपेस्ट’ में लिखा है कि ‘नरक खाली है, सभी शैतान यहीं हैं!’ यही चीजें हमें मौजूदा समय में देखने को मिल रही हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “हम कई रहस्यपूर्ण चुनौतियों से जूझ रहे हैं और हमें उन चुनौतियों से निपटने का तरीका भी नहीं पता. एक बात स्पष्ट है कि राजनीति और समाज को लेकर उनकी अंतर्दृष्टि हमारे समय के हिसाब से भी प्रासंगिक है.”

शेक्सपियर से क्या सीखा जा सकता है?

शेक्सपियर की विरासत पर चर्चा करते हुए यूके की रॉयल शेक्सपियर कंपनी के ग्रेगरी डोरन उम्मीद की किरण के तौर पर ‘मैकबेथ’ नाटक का हवाला देते हैं. इस नाटक का प्रकाशन नहीं हुआ होता, तो शायद इसका भी बड़ा हिस्सा खो जाता. नाटक में, रॉस के किरदार की मदद से दुनिया को ऐसी जगह के तौर पर दिखाया गया है जहां ‘हिंसा की वजह से कुछ लोगों को खुशी मिलती है.’

डोरन ने डीडब्ल्यू को बताया, “इसके बावजूद, रॉस उम्मीद की किरण तलाशने की कोशिश करता है. उसे लगता है कि बुरी चीजें या तो खत्म हो जाएंगी या और बढ़ जाएंगी.”

यह नाटक सत्ता के भूखे तानाशाह को दिखाता है, जो अपने राज्य को युद्ध और हिंसा में उलझाए रखता है. हालांकि, अंत में अपने ही लालच का शिकार हो जाता है और सत्ता से बेदखल कर दिया जाता है. ‘मैकबेथ’ एक ऐसा नाटक है जो निश्चित रूप से आज भी प्रासंगिक है.

साभार : क्रिस्टीने लेनन/ डॉयचे वेले