‘मन की बात’ में PM मोदी ने, इमरजेंसी को बताया इतिहास का काला दौर

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उन्होंने कहा, “भारत लोकतंत्र की जननी है. मदर ऑफ डेमोक्रेसी है. हम अपने लोकतांत्रिक आदर्शों को सर्वोपरि मानते हैं. अपने संविधान को सर्वोपरि मानते हैं इसलिए हम 25 जून को कभी भुला नहीं सकते. ये वही दिन है जब हमारे देश पर इमरजेंसी थोपी गई थी. ये भारत के इतिहास का काला दौर था. लाखों लोगों ने पूरी ताकत से इमरजेंसी का विरोध किया था.”

“लोकतंत्र के समर्थकों पर उस दौरान इतना अत्याचार किया गया, इतनी यातनाएं दी गईं, कि आज भी मन सिहर उठता है. इन अत्याचारों पर पुलिस और प्रशासन द्वारा दी गई सजाओं पर बहुत सारी पुस्तकें लिखी गई हैं. मुझे भी संघर्ष में गुजरात धाम से एक किताब लिखने का उस वक्त मौका मिला था.”

“कुछ दिन पहले ही इमरजेंसी पर लिखी एक और किताब मेरे सामने आई, जिसका शीर्षक है टॉर्चर ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर इन इंडिया. इमरजेंसी के दौरान छपी इस पुस्तक में वर्णन किया गया है कि कैसे उस समय की सरकार लोकतंत्र के रखवालों से क्रूरतम व्यवहार कर रही थी. इस किताब में ढेर सारी केस स्टडी हैं. बहुत सारे चित्र हैं.”

“मैं चाहूंगा कि आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो देश की आजादी को खतरे में डालने वाले ऐसे अपराधों का भी जरूर अवलोकन करें. इससे आज की युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के मायने और उसकी अहमियत समझने में और ज्यादा आसानी होगी.”

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत में इमरजेंसी लगाई गई थी.

तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की थी.

जब इंदिरा गांधी ने दिया भारत को शॉक ट्रीटमेंट

25 जून 1975 की सुबह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के फ़ोन की घंटी बजी. उस समय वह दिल्ली में ही बंग भवन के अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे.

दूसरे छोर पर इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन थे जो उन्हें प्रधानमंत्री निवास पर तलब कर रहे थे. जब राय 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे तो इंदिरा गांधी अपनी स्टडी में बड़ी मेज़ के सामने बैठी हुई थीं जिस पर ख़ुफ़िया रिपोर्टों का ढेर लगा हुआ था.

अगले दो घंटों तक वो देश की स्थिति पर बात करते रहे. इंदिरा का कहना था कि पूरे देश में अव्यवस्था फैल रही है. गुजरात और बिहार की विधानसभाएं भंग की जा चुकी हैं. इस तरह तो विपक्ष की मांगों का कोई अंत ही नहीं होगा. हमें कड़े फ़ैसले लेने की ज़रूरत है.

बाद में एक इंटरव्यू में भी इंदिरा ने स्वीकार किया किया कि भारत को एक ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की ज़रूरत थी.

Compiled: up18 News