अगर नेताजी और अखिलेश चाहते तो आजम खान जेल से बाहर होते: शिवपाल सिंह यादव

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव आज सीतापुर पहुंचे और यहां उन्‍होंने जेल में आजम खान से मुलाकात की।

आजम खान से मुलाकात के बाद बयान देकर शिवपाल राजनीतिक सरगर्मी पैदा कर दी है। शिवपाल ने पहली बार भतीजे अखिलेश के साथ ही साथ बड़े भाई मुलायम सिंह यादव पर भी निशाना साधते हुए कहा कि अगर नेताजी और अखिलेश चाहते तो आजम खान जेल से बाहर होते। शिवपाल ने कहा कि मुलायम ने भी लोकसभा में इस मामले को नहीं उठाया। वे चाहते तो धरना दे सकते थे। अब शिवपाल-आजम की इस मुलाकात के कई सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं।

वैसे इससे पहले भी शिवपाल सिंह यादव आजम खान से मिलने सीतापुर जेल जा चुके हैं। उनकी गिरफ्तारी को लेकर शिवपाल हमेशा से ही मुद्दा उठाते रहे हैं। शुक्रवार की मुलाकात के बाद शिवपाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी को आजम खान के लिए आंदोलन करना चाहिए था। वह विधानसभा में सबसे सीनियर लीडर हैं, लोकसभा और राज्य सभा में भी रह चुके हैं। सपा को आजम खान की बात सुननी चाहिए थी लेकिन सपा संघर्ष करती नहीं दिखाई दी।

शिवपाल ने अखिलेश का नाम लिए बिना निशाना साधते हुए कहा कि नेता जी (मुलायम सिंह यादव) के साथ आजम खान के लिए धरने पर ही बैठ जाते तो प्रधानमंत्री जरूर सुनते। पीएम नेताजी का सम्मान करते हैं। शिवपाल ने कहा कि बहुत छोटे-छोटे मुकद्दमे हैं।

क्या आजम खान सपा छोड़ रहे हैं, आप के साथ हैं? शिवपाल ने इस सवाल के जवाब में बस इतना कहा कि मैं आजम भाई के साथ हूं और आजम भाई मेरे साथ हैं। भाजपा में जाने के सवाल पर शिवपाल ने कहा कि उचित समय आने पर अपना फैसला बताएंगे, सारी बातें समय के साथ सामने आ जाएंगी।

बता दें शिवपाल यादव के भी समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं। उनके भाजपा में जाने को लेकर तमाम खबरें चल रही हैं। इस बीच अखिलेश यादव का बयान आया कि जो भाजपा से जुड़ेगा समाजवादी पार्टी में उसके लिए जगह नहीं है।

इस पर शिवपाल बिफर गए, उन्होंने पलटवार करते हुए साफ कह दिया कि अखिलेश उन्हें निष्कासित क्यों नहीं कर देते। वह कोई सहयोगी दल से नहीं है, सपा से चुनाव लड़े थे। 111 विधायकों में से एक हैं।

समझिए सियासत

दरअसल, अखिलेश यादव इस समय दो मोर्चों पर जूझ रहे हैं। पहला मोर्चा शिवपाल का है तो दूसरा आजम खान कैंप और मुस्लिम नेताओं में बढ़ती नाराजगी का। पहले मोर्चे पर तो अखिलेश मजबूती से डटे हैं। उन्होंने शिवपाल के मुद्दे पर अभी तक अपनी शर्त पर सबकुछ किया है। शिवपाल समाजवादी पार्टी से विधायक जरूर हैं लेकिन उनका वो रुतबा अब नहीं है, जो कभी हुआ करता था।

यूपी चुनाव में भी अखिलेश ने शिवपाल को जोड़ा जरूर लेकिन उनकी टीम को पूरी तरह किनारे ही कर दिया। साफ दिखा कि सियासी मजबूरी को लेकर दोनों करीब आए लेकिन रिश्तों में जमी बर्फ अभी पिघली नहीं है। अब तो चुनाव परिणाम आने के बाद दोनों तरफ से बयानबाजी और तल्ख होती दिख रही है।

दूसरे मोर्चे यानी आजम खान और मुस्लिम नेताओं की नाराजगी के मुद्दे की बात करें तो यहां अखिलेश थोड़ा संघर्ष करते दिख रहे हैं। आजम खान की टीम की तरफ से सीधे-सीधे अखिलेश पर सवाल उठाए गए कि आजम खान को नेता विरोधी दल नहीं बनाया गया। सपा ने आजम खान के लिए कुछ नहीं किया। वहीं

शफीकुर्रहमान बर्क भी अखिलेश से नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। सुलतानपुर से सहारनपुर तक कई मुस्लिम नेता अखिलेश पर बेरुखी का आरोप लगाकर इस्तीफा दे चुके हैं। हालांकि जवाब में अखिलेश ये जरूर कहते हैं कि दो महीने पहले इन नेताओं ने कुछ नहीं बोला था। यही लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह में अखिलेश का इफ्तार पार्टी में जाना भी ‘डैमेज कंट्रोल’ की तरह देखा गया।

-एजेंसियां