मैं उन सबके लिए आवाज़ उठाऊॅंगी जो शोषित हैं, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष: नासिरा शर्मा

Press Release

● राजकमल के जलसाघर में मोहनदास नैमिशराय और एकता सिंह की किताबों का लोकार्पण

नई दिल्ली. विश्व पुस्तक मेला में बुधवार को राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसाघर में एस. इरफ़ान हबीब द्वारा सम्पादित किताब ‘भारतीय राष्ट्रवाद : एक अनिवार्य पाठ’ पर परिचर्चा के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसके बाद मोहनदास नैमिशराय की किताब ‘क्रांतिकारी ज्योतिराव फुले’ और एकता सिंह की किताब ‘तलाश खुद की’ का लोकार्पण हुआ। वहीं चर्चित उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल की उपन्यासों और वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा की किताबों पर बातचीत हुई। इस दौरान पाठकों ने बहुत रुचि से लेखकों को सुना और उनके साथ संवाद किया।

हमारा इतिहास में धार्मिक समन्वय था राजनीति के लिए इसे डिमाॅलिश नहीं करना चाहिए : एस. इरफ़ान हबीब

जलसाघर में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में एस. इरफ़ान हबीब द्वारा संपादित पुस्तक ‘भारतीय राष्ट्रवाद एक अनिवार्य पाठ’ पर परिचर्चा हुई। इस दौरान धर्मेन्द्र सुशांत ने उनके साथ संवाद किया। बातचीत करते हुए एस. इरफ़ान हबीब ने कहा, “देशभक्ति एक भावना है जो हर समय हर व्यक्ति के लिए जरूरी है बल्कि राष्ट्रवाद एक राजनीतिक अवधारणा है। कई बार हम देशभक्ति और राष्ट्रवाद दोनों को एक ही मानते हैं पर यह दोनों बहुत अलग है। देश की आज़ादी की लड़ाई के समय जो राष्ट्रवाद प्रचलित था वह अभी के राष्ट्रवाद के बिलकुल विपरीत था। उस उपनिवेश विरोधी राष्ट्रवाद में किसी को अलग करने की बात नहीं थी बल्कि उसमें सबको शामिल करने पर जोर दिया जाता था। आज़ादी के बाद हमें वह राष्ट्रवाद विरासत के रूप में मिला और हमने दशकों तक उसी का अनुसरण किया। लेकिन पिछले कुछ सालों से देश में वह राष्ट्रवाद प्रचलन में आया है जिसको हमारी आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों ने नकार दिया था।”

आगे उन्होंने कहा, “जब हमारे नेताओं ने राष्ट्रवाद की बात की तो वह धर्म के आधार पर बना हुआ राष्ट्रवाद नहीं था। धर्म को केंद्र में रखकर विकसित हुआ राष्ट्रवाद हर हाल में विघटनकारी ही होगा। राष्ट्रवाद तभी तक ठीक है जब तक उसमें सभी तरह की धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई अस्मिताओं को शामिल करते हुए आगे बढ़ा जाय। पर मुश्किल यह है कि एक आक्रामक राष्ट्रवाद अक्सर इसका उल्टा ही करता नजर आता है।”

वहीं देश की सांस्कृतिक विविधता पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “भारत में बहुत सी संस्कृतियां, धर्म और भाषाएं हैं जिससे हमारा कल्चर बहुत सम्पन्न है। हमें इतिहास को देखना चाहिए कि हमारे यहां धार्मिक समन्वय की बात होती थी। राजनीति के लिए हमें इसे मिटाना नहीं चाहिए। हमारी ख़ूबसूरती विविधता में है इसलिए हमें इसे बचाकर रखना चाहिए।”

मैं उन सबके लिए आवाज़ उठाऊॅंगी जो शोषित हैं, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष : नासिरा शर्मा

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में नासिरा शर्मा की चार किताबों के संदर्भ में ‘औरतनामा’ विषय पर परिचर्चा हुई। इस सत्र में अशोक तिवारी और हरियश राय बतौर वक्ता मौजूद रहे। सत्र की शुरूआत में अशोक तिवारी ने ‘औरतनामा’ नाम से प्रकाशित नासिरा शर्मा की चार पुस्तक शृंखला का परिचय दिया। इस दौरान उन्होंने बताया कि इस शृंखला की पहली पुस्तक ‘औरत की आवाज़’ में नासिरा शर्मा द्वारा लिए गए 16 देशों की 21 प्रतिनिधि लेखिकाओं के साक्षात्कार संकलित है।

दूसरी किताब ‘औरत की दुनिया’ में नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए स्तम्भों का संकलन है। जो समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। तीसरी पुस्तक ‘मैं अपने ख़्वाबों की ताबीर चाहती हूॅं’ में विभिन्न पत्रकारों द्वारा नासिरा शर्मा से लिए गए साक्षात्कार संकलित है। वहीं चौथी किताब ‘मैंने सपना देखा’ में नासिरा शर्मा द्वारा लिखे गए ऐसे लेख हैं जो समाज, साहित्य और सियासत में औरत की उपस्थिति और स्थिति की तलाश करते हैं।

परिचर्चा के दौरान नासिरा शर्मा ने कहा “आज़ादी के बाद जो नियोजन हुआ उससे औरतों को ज़्यादा अवसर मिले जिससे औरत और पुरुष के बीच बैलेंस आया है। कुछ मामलों में स्त्री आगे भी बढ़ गई है लेकिन औरत सिक्योर नहीं है। कोई औरत जब किसी ओहदे पर होती है तो उस कुर्सी की तो इज़्ज़त होती है पर औरत की इज़्ज़त नहीं होती है।”

बातचीत के क्रम में हरियश राय ने कहा “औरत काफ़ी आगे बढ़ गई गई हैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गई है लेकिन ख़ुश नहीं है या ख़ुश रहने नहीं दिया जाता है। आज मैं जब अपने वकील साथियों से बात करता हूॅं तो वे बताते हैं आजकल संबंध विच्छेद भी ज्यादा बढ़ रहे हैं।” इस विषय में नासिरा शर्मा ने कहा “आज की नई नस्ल के मन में एक खौफ-सा आ गया है कि उनका रिश्ता नहीं चल पाएगा। दूसरी बात यह भी है कि हम ऑफिस में बॉस की हज़ारों बातें सुन लेंगे लेकिन अपने जीवनसाथी की एक बात भी नहीं सुन सकते।”

इसी क्रम में उन्होंने कहा कि “औरत के आगे बढ़ जाने से लड़के से लेकर मर्द तक सबके मन में एक कुंठा है। इस कुंठा को शांत करने के लिए वो औरत के साथ जिस्मानी हिंसा करने लगे हैं इस पर भी बात होनी चाहिए।” आगे उन्होंने कहा कि “औरतें बहुत एक्सप्लॉइट हुई है, लेकिन जैसे-जैसे मैंने औरत को देखा तो पाया कुछ औरतों के मन में कहीं न कहीं पुरुषों से ज़्यादा हिंसा करने की होड़ है इसलिए पुरुष भी शोषित हो रहे हैं।” नासिरा शर्मा ने कहा “मैं उसी के लिए आवाज़ उठाऊॅंगी जो ज़्यादा शोषित हैं चाहे वह स्त्री हो चाहे पुरुष।”

मोहनदास नैमिशराय की किताब ‘क्रांतिकारी ज्योतिराव फुले’ का लोकार्पण

अगले सत्र मोहनदास नैमिशराय की किताब ‘क्रांतिकारी ज्योतिराव फुले’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र के दौरान डॉ. रूपचन्द्र गौतम, रवींद्र और दिनेश उपस्थित रहे। वहीं कार्यक्रम का संचालन सुदेश कुमार ने किया। परिचर्चा के दौरान डॉ. रूपचन्द्र गौतम ने कहा “दलित साहित्य कमरे के वातावरण में बैठकर नहीं लिखा जा सकता। यह किताब एक यायावरी ढंग से लिखा गया ऐतिहासिक उपन्यास है।” दिनेश ने कहा “मोहनदास नैमिशराय देश के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं और वहाॅं की घटनाओं को अपनी पुस्तक दिखाते हैं, यह पुस्तक इसी तरह का तथ्यात्मक तथा ऐतिहासिक उपन्यास है।”

रवींद्र ने कहा कि वर्चस्ववादी समाज ने जो इतिहास लिखा है, उससे बाकी समाज का एक बड़ा हिस्सा अछूता है। इस ऐतिहासिक उपन्यास के माध्यम से वह हिस्सा सामने आता है।” वहीं उपन्यासकार मोहनदास नैमिशराय ने कहा कि “यह एक सुखद बात है ग़ैर बहुजन समाज के लोग भी बहुजन समाज का इतिहास सामने ला रहे हैं।”

भगवानदास मोरवाल के उपन्यासों पर ‘मोक्षवन’ पर बातचीत

अगले सत्र में भगवानदास मोरवाल के उपन्यास ‘मोक्षवन’ पर पवन साव ने उपन्यासकार से बातचीत की। परिचर्चा के दौरान भगवानदास मोरवाल ने कहा “मैं फ़ील्ड वर्क और डॉक्यूमेंटेशन दोनों तरह के शोध करता हूॅं। इस रचना के दौरान मैंने वृंदावन के मंदिरों, घाटों और भजनाश्रमों को बहुत नज़दीक से देखा और वहाॅं की विधवा औरतों की कहानी को दर्शाने का प्रयास किया है।”

उन्होंने बताया कि “ऐसी रचना करने के पीछे मेरा यह दिखाने का उद्देश्य भी था कि किस तरह पूॅंजीवादी समाज में धार्मिक स्थानों का बाज़ारीकरण हो रहा है। वृंदावन जैसे स्थान पर श्रद्धालु कम बल्कि लोग पिकनिक के लिए ज़्यादा जाते हैं। ज़्यादातर लोग प्रेम मंदिर और इस्कॉन तक ही जाते हैं, पुरानी मंदिर जहाॅं हरिदास जी की समाधि है वहाॅं जाने वालों की संख्या कम है।” इसी क्रम में उपन्यास के नामकरण पर उन्होंने कहा “इसमें मुक्ति की कामना में भटकती हुई उन विधवाओं की त्रासद कथा है जो वहाँ मुक्ति या मोक्ष की कामना में आती है और अपना सारा जीवन उसी सफ़ेद लिबास में बिता देती हैं।”

एकता सिंह की किताब ‘तलाश ख़ुद की’ का लोकार्पण

कार्यक्रम के अगले सत्र में एकता सिंह की पुस्तक ‘तलाश ख़ुद की’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में ओम निश्चल और सुजाता शिवेन बतौर वक्ता मौजूद रहे। यह पुस्तक भागते-दौड़ते जीवन की उधेड़बुन में रौशनी देखने का एक प्रयास है। कार्यक्रम के दौरान एकता सिंह ने कहा “जीवन एक ख़ूबसूरत उपहार है, इसे समझने का प्रयास करें और भरपूर जिऍं। कभी-कभी कुछ लोग जीवन से हताश होकर सुसाइड के लेवल तक पहुॅंच जाते हैं जो कभी सॉल्यूशन नहीं हो सकता। हम फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी आदि विषयों को अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा दे देते हैं, कुछ क्षण हमें ख़ुद को जानने के लिए भी देना चाहिए। इस किताब के माध्यम से मैंने ख़ुद को तलाशने की ही कोशिश की है।”

जलसाघर में कल होंगे ये कार्यक्रम

जलसाघर में कल दिनांक 15 फरवरी (गुरुवार) को दोपहर 12 बजे से कार्यक्रम शुरू होगा। कार्यक्रम के पहले सत्र में विपिन गर्ग द्वारा संपादित किताब ‘चलो टुक मीर को सुनने’ पर विपिन गर्ग से मेहर आलम बातचीत करेंगे। दूसरे सत्र में सुरेंद्र प्रताप की पुस्तक ‘मोर्चेबंदी’ का लोकार्पण होगा। इसके बाद ‘कहानियाॅं दूसरी दुनिया की’ किताब पर बातचीत होगी जिसमें ममता कालिया, हरीश त्रिवेदी और विभूति नारायण राय की विशिष्ट उपस्थिति रहेगी। अगले सत्र में राहुल श्रीवास्तव की किताब ‘पुई’ का लोकार्पण होगा जिसमें ममता कालिया और सैयद मुहम्मद इरफ़ान की विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहेंगे।

इसके बाद डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय की पुस्तक ‘जयशंकर प्रसाद : महानता के आयाम’ पर अजित कुमार पुरी उनसे बातचीत करेंगे। कार्यक्रम के अंतिम सत्र में यतीश कुमार की पुस्तक ‘बोरसी भर आँच : अतीत का सैरबीन’ का लोकार्पण होगा। इस सत्र में अनिल यादव, इरफ़ान खान, सैयद मुहम्मद इरफ़ान और स्मिता गोयल बतौर वक्ता मौजूद रहेंगे।