यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि सनातन धर्म में पूजा-पाठ का बहुत महत्व है। यही वजह है कि भारत में मंदिरों की भूमिका शरीर में सांस की तरह रही है। सच तो यह है मंदिर केवल उपासना और पूजा-अर्चना के स्थल ही नहीं हैं, बल्कि उन्होंने हिंदू धर्म के अस्तित्व को जीवित रखने में बड़ी भूमिका निभाई है। भारत में 10 लाख से भी ज्यादा मंदिर हैं। यहां हर मंदिर की अपनी महिमा है, जिसके चलते लोगों का इन मंदिरों पर विश्वास बना हुआ है।
बिल्कुल ऐसा ही एक मंदिर गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कवी कंबोई गांव में मौजूद है, जिसकी जादुई लीला देख हर कोई हैरान है। दरअसल, यह मंदिर कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव का स्तंभेश्वर महादेव मंदिर है जोकि 150 साल पुराना बताया जाता है। यह मंदिर अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा हुआ है, जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
मंदिर का इतिहास क्या है?
शिवपुराण के अनुसार तारकासुर नाम के राक्षस ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए खूब तपस्या की थी। ऐसे में भगवान तारकासुर की तपस्या से खुश हुए और उन्होंने उसे बदले में मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा। ऐसे में तारकासुर ने भगवान से वरदान मांगा कि उसे शिव पुत्र के अलावा कोई और नहीं मार सकता, लेकिन इस दौरान उनके पुत्र की आयु 6 दिन से अधिक नहीं होनी चाहिए।
महादेव ने तारकासुर को यह वरदान दे दिया। वरदान मिलने के बाद राक्षस ने लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। ऐसे में देवताओं ने भगवान शिव से उसका वध करने की प्रार्थना की, जिसके बाद श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के कार्तिकेय ने जन्म लिया और राक्षस का वध किया। हालांकि, जब महादेव को इस बात की खबर मिली तो उन्हें बेहद दुख पहुंचा।
ऐसे हुई मंदिर की स्थापना
कार्तिकेय को जब अपनी गलती का अहसास हुआ तो भगवान विष्णु ने उन्हें प्रायश्चित करने का एक मौका दिया। भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि जहां उन्होंने असुर का वध किया है, है, वहां वो शिवलिंग की स्थापना करें। भगवान विष्णु के कहने पर कार्तिकेय ने बिल्कुल ऐसा ही किया, जिसके बाद से इस मंदिर को स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।
क्यों समुद्र की गोद में समा जाता है मंदिर
बहुत कम लोग जानते होंगे कि यह मंदिर सुबह शाम दो बार समुद्र की गोद में समा जाता है। हालांकि, इसके पीछे का कारण पूरी तरह प्राकृतिक है लेकिन इसके बाद भी लोग इसे किसी अजूबे से कम नहीं मानते।
दरअसल, यह मंदिर समुद्र के बीच में स्थित है। ऐसे में जब दिन के समय समुद्र का स्तर बढ़ जाता है, तो मंदिर पूरी तरह पानी में डूब जाता है। लेकिन जब पानी का स्तर कम होता है, तो मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है। लोगों का मानना है कि समुद्र के पानी से शिवजी का जलाभिषेक होता है। यही देखने के लिए लोग यहां सुबह से रात तक रूकते हैं।
हर कष्ट होंगे दूर
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि और अमावस्या पर विशाल मेला लगता है। प्रदोष-ग्यारस और पूनम जैसे दिनों पर यहां रातभर पूर्जा अर्चना होती है। आसपास के गांव के अलावा दूर-दूर से श्रद्धालु भगवान शिव को देखने के लिए आते हैं।
खैर, इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण भोलेनाथ के इस मंदिर की बहुत मान्यता है। कहते हैं इनके दर्शन मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। बता दें कि इस मंदिर का उल्लेख शिव महापुराण में रुद्र संहिता भाग 2 के अध्याय 11 और पृष्ठ संख्या 358 में मिलता है।
मंदिर तक कैसे पहुंचें
यह मंदिर गुजरात के शहर बड़ोदरा से कुल 85 किमी की दूरी पर स्थित है। आप चाहें तो बस-ट्रेन या फ्लाइट से वड़ोदरा जा सकते हैं। यहां से मंदिर तक पहुंचने लिए आपको कई साधन मिल जाएंगे। अगर आप आप चाहें तो पोरबंदर-द्वारका और दिवे जैसे शहरों तक ट्रेन से भी जा सकते हैं। मंदिर के पास पार्किंग की सुविधा है। इसलिए अगर आप चाहें तो अपने निजी वाहन से भी यहां पहुंच सकते हैं।
-एजेंसी
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