464 वर्ष प्राचीन है गोवर्द्धन का मुड़िया पूनों मेला, करोड़ों भक्त लगाते हैं परिक्रमा

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ब्रज में होली, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, यमद्वितीया आदि कुछ पर्वों पर देश-विदेश के लाखों भक्त जन आते हैं किंतु गुरु पूर्णिमा के लोक पर्व मुड़िया पूनो’ पर गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा लगाने वाले नर-नारियों की संख्या करोड़ों तक पहुंच जाती है किंतु आश्चर्य यह है कि इन करोड़ों भक्तों के मन में गिरिराज गोवर्धन के प्रति आस्था और भक्ति की भावनाएँ तो होती हैं किंतु एक प्रतिशत को भी परिक्रमा के इतिहास की जानकारी नहीं होती है।

मुड़िया पूनों के इतिहास की स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं चैतन्य महाप्रभु और सनातन गोस्वामी से। सनातन गोस्वामी पश्चिमी बंगाल के शासक हुसैन शाह के दरबार में मंत्री थे। चैतन्य महाप्रभु से प्रभावित होकर उन्होंने मंत्री पद त्याग दिया और वृंदावन आ गये। यहाँ चैतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त कर वह गोवर्धन में मानसी गंगा के तट पर स्थित चक्रेश्वर मंदिर के निकट कुटी बनाकर रहने लगे। वह वृद्धावस्था में भी प्रतिदिन गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे।

सनातन गोस्वामी का अब से 464 वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा संवत 1615 को निधन हो जाने पर उनके शिष्यों ने परंपरानुसार सिर मुड़वा कर सनातन गोस्वामी की अर्थी के साथ गाते – बजाते कीर्तन करते हुए परिक्रमा लगाई।

सनातन गोस्वामी के निर्वाण की तिथि शिष्यों के लिए पुण्य तिथि बन गई और शिष्यों के अतिरिक्त भक्तजन भी पुण्यतिथि पर परिक्रमा लगाने लगे। परिक्रमा लगाने वाले भक्तों को चमत्कारी लाभ प्राप्त होने पर प्रतिवर्ष परिक्रमा लगाने वाले भक्त नर-नारियों की संख्या बढ़ती गई जो अब करोड़ों तक पहुंच गई है।ये करोड़ों भक्त नर-नारी आस्था-भक्ति के साथ परिक्रमा लगाते हैं किंतु वे चैतन्य महाप्रभु तथा सनातन गोस्वामी की कथा से परिचित नहीं है।

संस्कृति एवं पर्यटन विभाग यदि परिचय – पुस्तिका के माध्यम से प्रतिवर्ष इस इतिहास को पहुँचा पाता तो आने वाली पीढ़ियाँ चैतन्य महाप्रभु और सनातन गोस्वामी के परिचित होकर ‘मुड़िया पूनों’ के इतिहास से परिचित हो पातीं जो आज की पीढ़ी को भी ज्ञात नहीं है। आज तो ‘मुड़िया पूनों’ एक मेला बनकर रह गया है।

– पद्म श्री मोहन स्वरूप भाटिया