देवी शारदा के पवित्र धाम ‘मैहर’ में आज भी करते हैं मां की पूजा और आरती महान योद्धा आल्हा

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कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्‍वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। मां शारदा माई के भक्त आल्हा आज भी करते हैं मां की पूजा और आरती।

आल्हाखण्ड ग्रंथ में गाया जाता है कि इन दोनों भाइयों का युद्ध दिल्ली के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज चौहान से हुआ था। पृथ्‍वीराज चौहान को युद्ध में हारना पड़ा था लेकिन इसके पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास ले लिया था। कहते हैं कि इस युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया था। गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह आखरी लड़ाई थी।

मान्यता है कि मां के परम भक्त आल्हा को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था, लिहाजा पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है। मंदिर परिसर में ही तमाम ऐतिहासिक महत्व के अवशेष अभी भी आल्हा व पृथ्वीराज चौहान की जंग की गवाही देते हैं।

मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर और देवी शारदा के एक पवित्र धाम ‘मैहर’ में आज भी आता है। हर कोई कहता है कि मैहर देवी की पहली पूजा आल्हा ही करते हैं।

मैहर देवी…मां शारदा के सबसे पवित्र धामों में से एक है। हर दिन हजारों लोग इस मंदिर में आते हैं और हर शख्स अपनी आंखों से आल्हा की मौजूदगी को देखने का दावा करता है। हर तरह सिर्फ यही दावा था कि आल्हा हवा के झोंके की तरह आते हैं। इस मंदिर में अपना सबूत छोड़ जाते हैं। बेशक विज्ञान किसी शख्स के 900 साल बाद भी जिंदा होने बात को नहीं मानता, लेकिन लोगों की इतनी बड़ी आस्था के सामने विज्ञान के तर्कों को आजमाना भी जायज नहीं।

यहां से आगे बढ़ने पर आल्हा देव का मंदिर है। इस मंदिर में आल्हा की खड़ाऊ रखी हुई, जिसे देखकर ही आल्हा की विशालकाय कद-काठी का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मंदिर के पास में ही एक ताबाल भी है।

तालाब के पास बाकायदा एक सरकारी बोर्ड लगा है, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि आल्हा अमर हैं और इसी तालाब में स्नान के बाद आल्हा मैहर देवी के मंदिर की पहली पूजा करते हैं। इस तालाब में कमल के फूल खिलते हैं और अक्सर वही कमल के फूल देवी के चरणों में पाए जाते हैं।

इतिहास की कहानियां बताती हैं कि आल्दा-उदल पांच भाई थे, लेकिन यहां आकर पता चला कि इन मान्यताओं का रिश्ता महाभारत काल से है। माना जाता है कि आल्हा और उनके पांचों भाई, द्वापर युग के पांडवों का ही पुर्नजन्म हैं। लोग कहते हैं कि आल्हा ही महाभारत काल के युधिष्ठिर हैं।

लोग मानते हैं कि आल्हा को मां शारदा ने ही अमर होने का वरदान दिया था और तब से अबतक आल्हा रोज आते हैं और देवी के चरणों में सिर झुकाते हैं।
12वीं शताब्दी का वह अखाड़ा भी है, जहां आल्हा उदल कुश्ती लड़ा करते थे। लोग मानते हैं कि कुश्ती परंपरा आल्हा-उदल ने ही शुरू की थी।

– एजेंसी