लताजी की आत्मा को तो खुदा ने खुद हमारे लिए बनाया था: आबिदा परवीन

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लताजी हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनके चाहने वाले उन्हें आज भी उसी शिद्दत से याद कर रहे हैं जैसे वो यहीं कहीं हमारे आसपास हों। सरहद पार उनकी आवाज ही नहीं, शख्सियत का जादू भी बोल रहा है। आबिदा परवीन के नाम से कौन वाकिफ नहीं है। इस पाकिस्तानी सूफी सिंगर ने लता दीदी को अपने अंदाज में याद किया।

आबिदा ने कहा, मैं तो उनके कदमों में गिर पड़ी थी। उन्हें देखने के बाद मेरी आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। उस आत्मा को तो खुदा ने खुद हमारे लिए बनाया था। खुदा का यह तोहफा दीदी ने दुनिया में तकसीम (बांट) कर दिया।

पाकिस्तान में भी गम

पाकिस्तान की कई मशहूर हस्तियों ने लता दीदी को याद किया। फिर चाहे वो सियासतदान हो, बिजनेसमैन हों या फिर फिल्मों से जुड़े लोग हों। हर पाकिस्तानी के लिए लता दीदी उतनी ही अहम थीं, जितनी हिंदुस्तानियों के लिए। यह शब्द पाकिस्तान के मशहूर एक्टर हुमायूं सईद ने कहे। आतिफ असलम और माहिरा खान जैसी सेलिब्रिटीज ने भी लताजी को दिल से याद किया।

जब आबिदा परवीन ने उन्हें याद किया तो बरबस आंखें छलक उठीं। बहुत रुंधे गले से वो अपने जज्बात जाहिर कर पाईं। आबिदा परवीन सूफी गायकी का वो नाम हैं, जिन्हें पूरी दुनिया जानती और मानती है। उनकी गायकी का अंदाज ही निराला है।

आबिदा ने क्या कहा

रिपब्लिक इंडिया को दिए इंटरव्यू में आबिदा बमुश्किल ही बात कर पाईं। उनकी आंखें छलक रहीं थीं। उन्‍होंने कहा कि लताजी की आत्मा को तो खुदा ने खुद सिलेक्ट किया था। उनके गीत और उनकी आवाज जैसी दूसरी कोई हो ही नहीं सकती। उनकी आवाज खुदा का तोहफा था, उन्होंने उसे पूरी दुनिया के साथ शेयर किया। क्या नहीं था उनके पास। इसके बावजूद इतनी सादगी और इतना अपनापन, वो खुद को कुछ नहीं मानतीं थीं।

उनकी महानता का बस एक उदाहरण

आबिदा कहती हैं- एक बार किसी ने लता दीदी से पूछा, क्या आपको अपने गीत पसंद हैं?
दीदी ने जवाब दिया- अगर मुझे एक और जीवन मिले तो मैं इन्हीं गीतों को फिर गाना चाहूंगी ताकि उनमें जो कमियां रह गई हैं, उन्हें दूर कर सकूं। उनके जैसे महान लोग कभी अपने काम से संतुष्ट नहीं होते। उनका हर गीत जैसे एक स्कूल का सबक है, हम जैसे लोग उनसे सीखते हैं।

दीदी से वो मुलाकात…

आबिदा एक बार रिकॉर्डिंग के सिलसिले में भारत आईं थीं। मुंबई में जिस स्टूडियो में उनकी रिकॉर्डिंग चल रही थी, वहीं दीदी भी आईं थीं। अचानक किसी ने आबिदा परवीन को बताया कि लता जी इसी स्टूडियो में मौजूद हैं। फिर क्या था। आबिदा कहती हैं- मैंने अपनी रिकॉर्डिंग ही छोड़ दी। भागी-भागी लताजी के पास पहुंची और बेसाख्ता उनके कदमों में गिर पड़ी। मेरी आंखों से आंसू बरस रहे थे, मैंने खुद को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन आंखों की मनमानी नहीं थमी। दीदी ने उठाकर मुझे गले से लगा लिया। वो तो आत्माओं को जीत लेने वाली शख्सियत थीं। इस दुनिया और इसके बाहर भी उनके चाहने वाले होंगे।

-एजेंसियां