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दो संस्थाओं के बीच छप्पन भोग, भंडारे को भव्य बनाने का कम्पटीशन !
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कल तक साथ थे, अब भगवान को अलग-अलग करेंगे खुश!
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एक संस्था 13 वर्ष से गोवर्धन में कर रही छप्पन भोग महोत्सव
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अलग हुए लोगों ने दूसरी संस्था बना घोषित किया अलग आयोजन
आगरा: कुछ समय पहले तक एक साथ धार्मिक आयोजन कर रहे ताजनगरी के कुछ सर्राफा व अन्य कारोबारियों के रास्ते अलग हो गए हैं। दोनों ही गोवर्धन महाराज को अलग-अलग खुश करेंगे। दोनों गुटों में अपने-अपने महोत्सव को बेहतर बनाने का कंपटीशन है।
बीते 13 साल से सर्राफा कारोबारियों द्वारा मथुरा के गोवर्धन में हर साल परिक्रमा, छप्पन भोग व भंडारे का आयोजन किया जाता है। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस साल यह आयोजन दो बार हो रहा है। नये आयोजनकर्ताओं ने मिलते-जुलते नाम से ही संस्था बना ली है और अपना आयोजन प्रतिवर्ष होने वाले महोत्सव से करीब आठ-दस दिन पहले रख दिया है। पुरानी संस्था की भांति ही आमंत्रण पत्रिका का विमोचन, आमंत्रण यात्रा, गोवर्धन परिक्रमा, छप्पन भोग व भंडारे का आयोजन किया गया है।
आयोजन को लेकर दोनों संस्थाओं में प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। नई संस्था पूरा आयोजन पुरानी संस्था की तर्ज पर करने का प्रयास कर रही है। दूसरी ओर पुरानी संस्था अपने आयोजन को और अधिक भव्य बना कर बड़ी लकीर खींचने के प्रयास में है।
क्यों हुआ अलगाव ?
दोनों संस्थाओं से जुड़े कारोबारियों में अलगाव की वजह कुछ विवादों को लेकर है। सूत्रों की मानें तो पुरानी संस्था से पूर्व में जुड़े कुछ लोगों की कार्यप्रणाली पर कुछ पदाधिकारियों को आपत्ति थीं। हिसाब-किताब को लेकर भी सवाल उठने लगे थे। पूर्व में पद संभाल चुके लोगों के कार्यकाल में हुए भुगतानों पर भी प्रश्नचिन्ह लगे थे। ऐसी स्थिति में कुछ लोगों को किनारे भी किया गया। कहा जा रहा है कि साइड लाइन किये गये कुछ लोगों ने ही कुछ अन्य लोगों को तैयार किया और एक मिलती-जुलती नई संस्था खड़ी कर दी। हालांकि नया गुट पूर्व में किसी भी प्रकार की शिकायतों से इंकार कर रहा है। अब आलम यह है कि दोनों गुट अपने-अपने कार्यक्रम को भव्य बनाने में लगे हैं। आयोजन की आड़ में शक्ति -प्रदर्शन का भी खेल चल रहा है।
पुरानी संस्था ने जिस दिन पहली बार मीडिया के समक्ष जानकारी रखी, नई संस्था ने भी ठीक उसी दिन गोवर्धन में एक छोटा आयोजन कर मीडिया में सुर्खी बटोरने का प्रयास किया। कोई भ्रम न फैले, इसके लिए पुरानी संस्था के लोगों ने पत्रकारों के समक्ष भी अपनी बात स्पष्ट की।
उसके बाद भी नई संस्था के लोगों ने मीडिया में सुर्खियां बटोरना जारी रखा है। यह देख पुरानी संस्था के लोग भी तन-मन-धन से अपने आयोजन को सफल बनाने में लग गए हैं। ऐसे में दोनों धार्मिक आयोजन श्रद्धा का केन्द्र बनने की बजाय मूंछ का सवाल अधिक बनते दिख रहे हैं।
साभार -संजय तिवारी
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