रायसीना डायलॉग में पश्चिमी एजेंडे से प्रेरित सवाल को आज फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने किया “खामोश”

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वैसे तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर कम बोलते हैं लेकिन जब बोलना शुरू करते हैं तो सामने वाले की बोलती बंद करा देते हैं। आज दिल्ली में हो रही रायसीना डायलॉग में भी एक मौका आया जब जयशंकर ने अपने अंदाज में पश्चिमी एजेंडे से प्रेरित सवाल को “खामोश” कर दिया।

दरअसल, आज रायसीना डायलॉग में रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत के रुख को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर से सवाल हुआ। उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि कोई भी इस संघर्ष को नहीं चाहता है। आखिर में इस संघर्ष के बाद कोई भी विनर नहीं होगा। लेकिन मैं इस बात को कहना चाहूंगा क्योंकि आप दोनों मेरे यूरोपियन मित्र हैं। मैं समझता हूं कि इस समय आपने बाकी चीजों को अलग करके रखा हुआ है लेकिन बाहर भी एक दुनिया है। और मुझे खुशी है कि आप भारत में हैं और यह आपको याद दिलाएगा कि बराबर चिंता के मसले दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी हैं। मैं अफगानिस्तान का जिक्र करूंगा, मैं उन चुनौतियों का जिक्र करूंगा जिसका सामना हम एशिया में कर रहे हैं।

जयशंकर ने आगे कहा कि जब एशिया में नियम-आधारित व्यवस्था को चुनौती दी जा रही थी, तो हमें यूरोप से सलाह मिली- ज्यादा व्यापार करो। कम से कम हम आपको वह सलाह तो नहीं दे रहे हैं… हमें कूटनीति और संवाद पर लौटने का रास्ता खोजना चाहिए.

अफगानिस्तान का ही उदाहरण ले लीजिए। प्लीज, मुझे बताइए कि कौन सा न्यायोचित नियम दुनिया के देशों की तरफ से अपनाया गया।

गौरतलब है कि पिछले दिनों उन्होंने रूस से तेल खरीदने पर उठे सवाल का ऐसा जवाब दिया कि प्रश्न करने वाले पश्चिमी पत्रकार भी सकपका गए। मौका था 2+2 बातचीत का, जयशंकर अमेरिका में थे। यहां उनसे रूसी तेल की खरीद पर सवाल हुआ, जयशंकर ने पश्चिमी मीडिया के जरिए अमेरिका की अगुआई वाले पूरे गुट को दो टूक संदेश दे दिया। उन्होंने साफ कहा कि मैं सुझाव दूंगा कि आप यूरोप पर ध्यान दें। भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है, उतना तेल तो यूरोपीय देश एक दोपहर में खरीद लेते हैं। ऐसे ही, 2019 में एक डिबेट में उन्होंने अंग्रेजों के लूटपाट का जिक्र कर गोरों को खूब सुनाया था। इस वीडियो को भारत में खूब देखा गया और तारीफ भी हुई।

सच तो यह है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बने हालात पर भारत ने जिस तरह अपने हितों को आगे रखा और स्थितियों को संभाला, उससे कई देश और मंझे हुए रणनीतिकार बेचैन हो गए हैं। उन्हें यह रास नहीं आया कि कैसे भारत ने हिंसा का विरोध कर गुटबाजी से दूर रहते हुए अमेरिका और रूस दोनों से संबंधों को बनाए रखा।

-एजेंसियां


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