यूक्रेन को अमेरिकी चेतावनी के बीच रूस पहुंचे विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर

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वहीं, युद्ध शुरू होने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रूसी समकक्ष व्लादिमिर पुतिन के साथ-साथ यूक्रेन के  राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से कई बार बात कर चुके हैं।

4 अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी ने जेलेंस्की के साथ फोन पर बातचीत की थी। इस दौरान मोदी ने कहा था कि समस्या का कोई भी सैन्य समाधान नहीं हो सकता। भारत किसी भी तरह के शांति के प्रयासों में योगदान देने के लिए तैयार है।

दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुए अब 9 महीने होने जा रहे हैं और दोनों ही पक्षों के बीच भीषण वार और पलटवार जारी है। इस जंग में रूस और यूक्रेन समर्थक पश्चिमी देशों के हथियारों का जखीरा खाली होता जा रहा है। इस बीच रूस की सेना और राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन दोनों ने परमाणु हमले के संकेत दिए हैं।

क्‍यूबा मिसाइल संकट के बाद इस सबसे बड़े खतरे से अमेरिका अब टेंशन में आ गया है और यूक्रेन की सरकार को चेतावनी दी है कि वे रूस के साथ बातचीत के लिए खुद को तैयार करें। अमेरिका ने कहा कि हमारे सहयोगी ‘यूक्रेन की थकावट’ के चपेट में आ सकते हैं।

अब पश्चिमी विशेषज्ञ और मीडिया कह रहा है कि भारत इस जंग को रोकने तथा युद्धरत दोनों ही दोस्‍त देशों के बीच समझौता कराने में अहम भूमिका निभा सकता है। उन्‍होंने यह दलील ऐसे समय पर दी है जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर रूस के दौरे पर पहुंचे हैं।

इसी साल उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में 16 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था, आज का युग युद्ध का नहीं है।

यूक्रेन युद्ध के करीब नौ महीने गुजरने के बाद भी भारत ने अभी तक आधिकारिक तौर पर रूसी आक्रमण की निंदा नहीं की है। भारत का मानना है कि संकट को ‘डायलॉग’ और ‘डिप्लोमेसी’ के जरिए हल किया जाना चाहिए।

अंतर्राष्‍ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ सी राजामोहन का मानना है कि भारत की यूक्रेन नीति की पश्चिमी देशों और मीडिया में पिछले दिनों काफी आलोचना हुई थी लेकिन अब तारीफ होना नई दिल्‍ली के लिए काफी सुखद है। पिछले 9 महीने में भारत ने रूस के यूक्रेन पर हमले की आलोचना नहीं की है। भारत ने हमेशा से ही दोनों पक्षों के बीच बातचीत का समर्थन किया है। वहीं भारत ने रूस के हमले का समर्थन भी नहीं किया है। साथ अपने दोस्‍त को संयुक्‍त राष्‍ट्र के चार्टर को मानने और क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्‍मान करने की नसीहत दी है। भारत के इस रुख के बाद अब पश्चिमी मीडिया का कहना है कि नई दिल्‍ली इस संघर्ष को खत्‍म कराने में अहम भूमिका निभा सकता है।

भारत ने यूक्रेन जंग के जटिल मौकों पर अहम योगदान दिया

अमेरिकी मीडिया का कहना है कि भारत ने पिछले 9 महीने की लड़ाई के कई जटिल मौकों पर अहम योगदान दिया है। इसमें यूक्रेन के साथ अनाज आपूर्ति समझौता और परमाणु बिजली घर जापारिझझिआ पर हमले के खतरे को कम करना शामिल है। क्‍या भारत अब बड़ी राजनयिक भूमिका को निभा सकता है, इस सवाल के जवाब में राजामोहन कहते हैं कि भारत के अमेरिका और रूस के साथ बहुत अच्‍छे संबंध हैं जिससे वह एक रोचक स्थिति में है लेकिन भारत रूस और अमेरिका के बीच संपर्क का एकमात्र जरिया नहीं है। रूस और अमेरिका दोनों ही तीसरे पक्ष पर निर्भर नहीं हैं।

रूस और अमेरिका के रक्षा मंत्री अक्‍सर बातचीत करते रहते हैं। यूक्रेन में अब ठंड बढ़ रही है और अब यह मौका अपनी रणनीति और तैयारियों पर फिर से विचार करने की है। रूस और यूक्रेन दोनों को ही इस जंग में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। रूस को शुरुआत जंग में बड़ी सफलता मिली लेकिन अब यह उनके लिए एक और अफगानिस्‍तान साबित हो रहा है। पश्चिमी हथियारों के दम पर यूक्रेन लगातार हमले कर रहा है और रूस की सेनाएं लगातार नुकसान उठा रही हैं। यूक्रेन की सड़कें रूसी टैंकों का कब्रिस्‍तान बन गई हैं। पुतिन की अभी कोशिश यूक्रेन के शहरों को तबाह करने की है और वह परमाणु धमकी दे रहे हैं जो उनकी कमजोरी को बता रहा है।

यूक्रेन ने रूस से बातचीत के लिए रखी बड़ी शर्त

राजामोहन कहते हैं कि अब पुतिन के पास केवल सम्‍माजनक वापसी का ही विकल्‍प बचा है। इससे वह राजनीतिक रूप से अपनी लाज बचा सकेंगे और यूक्रेन के कुछ इलाकों पर कब्‍जा कर लेंगे। वहीं यूक्रेन के राष्‍ट्रपति जेलेंस्‍की रूसी सेना को क्रीमिया समेत अपनी पूरी जमीन से भगाने पर अड़े हुए हैं। पश्चिमी देशों को उम्‍मीद थी कि रूस प्रतिबंधों की मार से झुक जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यही वजह है कि अमेरिका ने जेलेंस्‍की की सरकार से साफ कह दिया है कि वह रूस के साथ बातचीत करे। उधर, जेलेंस्‍की ने कहा है कि वह तभी रूस से बातचीत करेंगे जब रूसी सेना यूक्रेन के सभी इलाकों से पीछे हट जाएं। साथ जिन लोगों ने अपराध किया है, उनके खिलाफ मुकदमा चले। जेलेंस्‍की ने यह भी कहा कि वह पुतिन के साथ बातचीत नहीं करेंगे।

यूक्रेन में शांति बहाली में भारत निभा सकता है भूमिका

अमेरिका ने अब तक यूक्रेन को करीब 19 अरब डॉलर की सैन्‍य और अन्‍य तरह की मदद दी है। राजामोहन कहते हैं कि युद्ध का इतिहास हमें बताता है कि कूटनीति के लिए जगह तब बनती है जब जंग के मैदान में दोनों ही पक्षों के बीच गतिरोध पैदा हो जाए। पिछले 9 महीने से जारी जंग में यह मौका अब आ गया है। आने वाले समय में दोनों पक्ष एक या दो बड़े हमले करेंगे और फिर बातचीत की टेबल पर आ जाएंगे। उन्‍होंने कहा कि बातचीत का मतलब यह नहीं है कि तत्‍काल समझौता हो जाए। राजामोहन ने कहा कि इस शांति वार्ता में भले ही भारत मुख्‍य भूमिका में नहीं हो लेकिन कई व्‍यवहारिक तरीके हैं जिससे भारतीय कूटनीति शांति प्रयासों में योगदान दे सकती है।

Compiled: up18 News