शरीर का हर अंग होता है पीएच लेवल से प्रभावित, गड़बड़ाने पर क़ई बीमारियों का खतरा

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‘पावर ऑफ हाइड्रोजन’ या pH हाइड्रोजन की क्षमता को बताता है। इसकी अवधारणा सबसे पहले 1909 में सामने आयी जब कार्ल्सबर्ग लेबोरेट्री के रसायनशास्त्री सॉरेन पेडर लॉरिट्ज़ सॉरेनसेन ने इसे प्रस्तुत किया।

हाइड्रोजन आयन के गतिविधि गुणांक को प्रयोगात्मक रूप से मापा नहीं जा सकता इसलिए सैद्धांतिक रूप से इसकी गणना की जाती है।

पीएच किसी विलयन की अम्लता या क्षारकता का एक माप है यानी किसी सोल्यूशन में कितना एसिड है और कितना बेस, ये जानने के लिए पीएच स्केल काम में लिया जाता है।

रक्त का पीएच संतुलन कितना ज़रूरी होता है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि रक्त के पीएच मान में 0.2 मान तक परिवर्तन होने की स्थिति में मृत्यु तक हो जाती है। आपका शरीर एसिडिक है या नहीं, ये जानने के लिए सबसे बेहतरीन तरीका होता है यूरिन टेस्ट करना। हमारे शरीर के संतुलन को जानने में किडनी हमारी मदद कर सकती है।

जब कभी रक्त का pH असंतुलित होकर एसिडिक हो जाता है यानी pH मान 7.4 से बहुत नीचे गिर जाता है तो शरीर में कई तरह के असंतुलन होने शुरू हो जाते हैं जैसे-

हड्डियों से कैल्शियम जैसा एल्कलाइन खनिज कम होने लगता है जिसके कारण खनिजों का अवशोषण कम होने लगता है और बोन डेंसिटी जैसी समस्याएं होना शुरू हो जाती है।

भोज्य पदार्थों के ज़्यादा एसिडिक हो जाने के कारण आंतें इसे पचा नहीं पाती, जिसके कारण पैंक्रियास, गॉल ब्लैडर और लीवर भी प्रभावित होते हैं और शरीर में कमजोर पाचन, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता, थकान और हार्मोन असंतुलन जैसी समस्याएं होना शुरू हो जाती है।
इन्सुलिन का लेवल भी बढ़ जाता है।

क्‍या होता है पीएच

अलग-अगल अवयव, कोशिकायें और अंगों का पीएच स्तर अलग-अलग होता है। यह उनके शारीरिक भूमिका के आधार पर तय होता है।

पीएच किसी पदार्थ में अम्लीयता, क्षारीयता और रासायनिक स्तर का माप होता है। अच्छी सेहत के लिए हमारा शरीर पीएच को नियंत्रित करने का काम करती है।

पीएच स्तर यदि असामान्य हो जाए, तो आपकी सेहत को कई समस्यायें हो सकती हैं। शरीर के अंगों और एंजाइम्स को सही प्रकार से काम करने के लिए पीएच स्तर सही होना बहुत जरूरी है। इसके स्तर में कमी या अधिकता होना एंजाइम्स और मेटाबॉलिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है।

ऑस्‍टीयोपोरोसिस का खतरा

पीएच स्तर में आवश्यकता से अधिक कमी आने से ऑस्टीयोपोरोसिस, कैंसर, दिल की बीमारियां और अर्थराइटिस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। वहीं अगर इसका स्तर आवश्यकता से अधिक हो जाए तो, व्यक्ति को थकान, मांसपेशियों में अकड़न और ऊर्जा के स्तर में गिरावट जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

व्‍यायाम का असर

व्यायाम, आहार और कुछ खास दवाओं के सेवन से शरीर में पीएच स्तर में बदलाव ला सकती है। व्यायाम के दौरान ग्लूकोज शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए कार्बनडाईऑक्साइड और प्रोटोन को रक्त में छोड़ता है। इससे रक्त में पीएच स्तर कम हो जाता है और वह अधिक अम्लीय हो जाता है।

आहार का असर

अधिक मात्रा में अम्लीय अथवा क्षारीय भोजन का सेवन करने से भी रक्त में पीएच स्तर बदल सकता है। मीट, पनीर, फलियां, अधिकतर अनाज, ब्लूबैरी और आलूबुखारा जैसी चीजें अम्लीय होती हैं। अधिकतर फल, सब्जियां और जूस आदि भी शरीर पर क्षारीय प्रभाव पड़ता है।

शरीर करता है एडजस्‍ट

वाशिंगटन यूनिवर्सिटी का कहना है कि हमारा शरीर पीएच स्तर को घटाने-बढ़ाने के लिए उलटा व्यायाम शुरू कर देता है। वह किडनी और फेफड़ों को रक्त से केमिकल हटाने के काम में लगा देता है। इससे पीएच स्तर में नाटकीय बदलाव नहीं आता। जिससे जरूरी एंजाइम्स पर बुरा असर नहीं पड़ता।

– एजेंसी