आगरा: जिला अस्पताल में दो महीने से भर्ती बुजुर्ग मरीज को आखिरकार मिल ही गया परिवार..

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आगरा: लगभग 2 महीने से जिला अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग मरीज को उसका परिवार आखिरकार मिल ही गया। जिला अस्पताल प्रशासन की कवायदें और मेहनत रंग ले आई। मरीज के परिजन अपने बुजुर्ग पिता व दादा को लेने के लिए जिला अस्पताल पहुँच गए। हॉस्पिटल की सारी फॉर्मेलिटीज को पूरा करके और हॉस्पिटल प्रशासन का शुक्रिया अदा करके परिजन बुजुर्ग मरीज को अपने साथ ले गए।

दो महीने से थे जिला अस्पताल में

जानकारी के मुताबिक बुजुर्ग मरीज परेश अदक को लगभग दो महीने पहले पुलिस गंभीर अवस्था में जिला अस्पताल छोड़ गई थी। जिला अस्पताल प्रशासन ने उन्हें इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करके इलाज किया और थोड़ा ठीक होने पर उन्हें मेल वार्ड में शिफ्ट करा दिया गया था।

भाषा के चलते हुए समस्या

जानकरी के मुताबिक बुजुर्ग मरीज बंगाली भाषा बोलता था जिससे वार्ड में तैनात स्टाफ समझ नहीं पाता था। उनको एटेंड करने में काफी दिक्कतें होती थी। कभी कभी तो इलाज करने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था और इसी के चलते उनके घर का पता नही लग पा रहा था। वार्ड में तैनात स्टाफ नर्स ने बताया कि डिप्टी सीएमएस सीपी वर्मा ने उनके घर के पास रहने वाले एक बंगाली परिवार से मदद मांगी और मरीज से बात कराई तब जाकर मरीज के घर का पता मिला। उस पते पर सूचना भिजवाई गयी तब जाकर आज उनके परिजन उन्हें लेने आये है।

12 जून को घर से निकले थे परेश अदक

बुजुर्ग मरीज के परिजनों ने बताया कि वह 12 जून को घर से निकल गए थे। अक्सर वह मथुरा वृंदावन के लिए आते हैं लेकिन इस बार और उन्हें कोई सूचना नहीं दी और वह घर से निकल आए। उनकी अचानक से लापता होने पर बंगाल में भी पुलिस को सूचना दी गई और मुकदमा भी दर्ज कराया गया था। आगरा के जिला अस्पताल प्रशासन की मदद के कारण उन्हें उनके दादा वापस मिल गए हैं। इस दौरान सभी हॉस्पिटल प्रशासन को उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया।

नॉनवेज खाने की करते थे मांग

स्टाफ नर्स ने बताया कि बुजुर्ग मरीज लगभग 2 महीने से यहां पर भर्ती थे। उनके ठीक होने के बावजूद उन्हें जिला अस्पताल में रखा गया। इस बीच कभी-कभी वह इरिटेट हो जाते थे। बंगाली होने के कारण उन्हें वेजखाना पसंद नहीं था। जोर-जोर से वह नॉनवेज खाने के लिए चिल्लाते थे लेकिन वह बंगाली लैंग्वेज बोलते थे, इसीलिए लोगों को समझ में नहीं आता था। लेकिन जब वह फिश फिश कहते तो लोग समझ जाते कि वह नॉनवेज की मांग कर रहे हैं। कभी-कभी तो नॉनवेज ना मिलने पर वह दवाई खाना भी छोड़ देते थे जिससे उनकी तबीयत खराब होने का डर बना रहता था।

-एजेंसी