पर्वतारोहण के लिए मुफीद है द्रौपदी का डांडा-2, जहां द्रौपदा का भी होता है पूजन

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तो आइये जानते हैं इसके बारे में- 

महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव उत्तराखंड आ गए थे। वो द्रौपदी का डांडा नाम के पर्वत पर पहुंचे और यहीं से वो स्वर्ग गए। इस जगह से पूरा हिमालय क्षेत्र दिखता है, ऐसे में इसका नाम ‘द्रौपदी का डांडा’ रख दिया गया। इसी वजह से स्थानीय लोग आज भी इस पर्वत को पूज्यनीय मानते हैं। इसके अलावा यहां पर खेड़ा ताल स्थित है, जिसे नाग देवता का ताल कहा जाता है। हर साल सावन में इसकी विधि-विधान से पूजा होती है।

उत्तराखंड के डांडा-कांठ्यों में पांडव आज भी हैं, लोकविश्वास में। जागरों, पांडव नृत्यों में (देवगान) में नृत्य करते हुए। द्रौपदा भी नाचती हैं। पूजी जाती हैं। उन्हीं के नाम पर द्रौपदा का डांडा है। डांडा यानी चोटी। द्रौपदी की चोटी।

उत्तरकाशी से करीब 70 किलोमीटर दूर साढ़े 18 हजार फीट ऊंची। धवल। चांदी सी चमकती हुई। अपने पास बुलाती हुई। मान्यता है कि पांडवों के साथ स्वर्गारोहण कर रहीं द्रौपदा ने उत्तरकाशी के इसी पहाड़ पर अपना शरीर त्यागा था। वह यहां पूजी जाती हैं। जान हथेली पर रखकर इन हिमशिखरों पर चढ़ने वाले भटवाड़ी, भुक्की गांव से होकर ही शीश झुकाते हुए द्रौपदा के डांडा पर बढ़ते हैं।

उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) के अडवांस्ड कोर्स के 41 ट्रेनीज का ग्रुप यहीं से आगे बढ़ा था। माहिर पर्वतारोही सविता कंसवाल इस ग्रुप में बतौर इंस्ट्रक्टर शामिल थीं।

माउंटेनियरिंग के लिए क्‍यों प्रसिद्ध है द्रौपदी का डांडा 

द्रौपदी का डांडा (Draupadi ka Danda) यानी द्रौपदी पीक गढ़वाल इलाके में आने वाले हिमालयों (Garhwal Himalaya) में बने गंगोत्री रेंज (Gangotri Range) में स्थित है. यहीं से डोकरियानी ग्लेशियर (Dokriani Glacier) की शुरुआत होती है. यानी द्रौपदी पीक के उत्तरी सिरे की तरफ से.  द्रौपदी पीक पर अक्सर लोग, पर्यटक और माउंटेनियर यानी पर्वतारोही ट्रैकिंग के लिए जाते हैं. या फिर वहां पर पर्वतारोहण की ट्रेनिंग लेते हैं. द्रौपदी पीक की ऊंचाई 5771 मीटर यानी 18,934 फीट है. गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में जो प्रमुख ऊंचाई वाली चोटियां हैं, उनमें आती हैं- नंदा देवी, कामेत, सुनंदा देवी, अबी गामिन, माना पीक और मुकुट पर्बत.

हिंदुओं का पवित्र धार्मिक स्थल और भागीरथी की उत्पत्ति का स्थान गंगोत्री इस द्रौपदी पीक से करीब 22 किलोमीटर दूर स्थित है.

द्रौपदी का डांडा पहाड़ पर ट्रैकिंग करने के लिए आपको डोकरियानी ग्लेशियर और बर्फ से लदे रास्तों पर चलना होता है. अगर बारिश हुई है या ताजा बर्फ गिरी है तो आपके लिए खतरा बढ़ जाता है.

नेहरू माउंटेनरिंग इंस्टीट्यूट अपने ट्रेनी ट्रैकर्स और पर्वतारोहियों के अलग-अलग ग्लेशियर और पर्वतों पर चढ़ने की ट्रेनिंग कराता है.  पर्वतारोहियों का कैंप ऊंची-ऊंची चोटियों के बीच बेहद ऊंचाई पर मौजूद ग्लेशियर के ऊपर बनाया जाता है. यहां चारों तरफ से ग्लेशियर के खिसकने और एवलांच आने की आशंका बनी रहती है.

द्रौपदी का डांडा को डीकेडी (Mt DKD) के नाम से भी जाना जाता है और ये जगह पृथ्वी का प्राकृतिक स्वर्ग कही जाती है। इसी वजह से निम ने इसको अपने प्रशिक्षण स्थल के रूप में चुना।

-एजेंसी