मोदी सरकार में भ्रष्टाचार ….CAG की रिपोर्ट में भी लीपापोती करने की कोशिश

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सबसे बड़ा संवैधानिक अधिकारी लेकिन वसूली के अधिकार नहीं

बहुत से लोग कहते हैं कि मोदी सरकार में भ्रष्टाचार नहीं हुआ, उन लोगो से एक बात पूछना चाहता हूं क्या आपने पिछ्ले 7-8 सालों में मोदी सरकार के कामकाज के बारे में कैग की रिपोर्ट की कोई भी ख़बर पढ़ी ? ‘भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी है. वह ऐसा व्यक्ति है जो देखता है कि संसद द्वारा अनुमन्य खर्चों की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित मदों पर ही धन खर्च किया जाए.’ ये डॉ. भीम राव अम्बेडकर का कथन हैं.

CAG के माध्यम से ही संसद की अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों की जो सार्वजनिक धन खर्च करते हैं, उनकी जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है और यह जानकारी प्रतिवर्ष जनता के सामने रखना जरूरी होता है. 2015 से पहले हर साल संसद में कैग की रिपोर्ट पर हंगामा होता था, घोटाला हुआ या नहीं हुआ बात दीगर है लेकिन 2जी नीलामी, कोयला ब्लॉक नीलामी, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला और 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे अनेक प्रकरण उस वक्त कैग रिपोर्ट के द्वारा ही हमारी जानकारी में आए थे.

आज कैग की क्या हालत है कभी आपने जानने की कोशिश की ? क्या मीडिया ने कभी आपको कैग की रिपोर्ट के लिए अवेयर किया ? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मोदी सरकार में कैग का किस तरह से गला घोंटा गया है. इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर आरटीआई आवेदन के जवाब में दी गई जानकारी से पता चला कि केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों से संबंधित सीएजी रिपोर्ट 2015 में 55 से घटकर 2020 में केवल 14 रह गई. यानी, मोदी जी के रहते संसद में यूपीए सरकार से लगभग 75% कम रिपोर्ट CAG की पेश हुई है, और जो पेश हुई है उनमें भी लीपापोती करने की कोशिश साफ़ नजर आती है.

भ्रष्टाचार का ताजा उदाहरण आपके सामने है. केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी द्वारा कुछ ही दिन पहले 25 जुलाई को सदन में दिए गए एक लिखित उत्तर में बताया गया कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है. भारत में कोयले का उत्पादन 31% बढ़ा है, तो फिर आप ही बताइए कि एनटीपीसी पर और देश के विभिन्न राज्यो पर, विदेशों से बेहद महंगे कोयले के आयात का दबाव क्यों बनाया जा रहा है ?

देश की कोल इंडिया लिमिटेड मात्र तीन हजार रुपये प्रति टन की दर से कोयला राज्यों को दे रही है जबकि अडाणी से कोयला खरीदने के लिये जो टेंडर डाले गए उसमें अडानी ने 30 से 40 हजार रुपये प्रति टन की दर से कोयला आयात के रेट दिए हैं. और अभी खबरें आ रही है कि दस गुना रेट पर कोयला आयात करने के टेंडर पास भी हो गए हैं. इस तरह से जबरन 10 गुना महंगा विदेशी कोयला खरीदेंगे तो देश के करोड़ों उपभोक्ताओं को महंगी बिजली ही खरीदना पड़ेगी.

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि वे बिजली मंत्रालय को राज्यों और उसकी बिजली उत्पादन कंपनियों को कोयले के आयात के लिए अपने ‘जबरदस्ती दिए गए निर्देश’ को वापस लेने के लिए कहें, जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं है. फेडेरेशन ने कहा कि 25 जुलाई को संसद में कोयला मंत्रालय के जवाब को देखते हुए महंगा विदेशी कोयला आयात जरूरी ही नहीं है.

इतनी बड़ी लूट खुले आम चल रही है लेकिन न कोई कुछ समझने को तैयार हैं, न कुछ करने को. कैग जैसी संस्था को किनारे लगा दिया गया है तो भ्रष्टाचार की रिपोर्ट देगा ही कौन. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जानें वाला मीडिया तो पहले ही बिक चुका है !

नमामि गंगे परियोजना

इतने सालों में आज पहली बार ये पता चला है कि गंगा के प्रदूषण को साफ़ करने वाला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी अडानी की कंपनी चला रही हैं, और मोदी सरकार ने उससे ऐसा समझौता किया है कि किसी समय प्लांट में क्षमता से अधिक गंदा पानी आया तो शोधित करने की जवाबदेही अडानी की कंपनी नहीं होगी.

यह जानकारी कल देश की जनता को इलाहाबाद हाईकोर्ट के माध्यम से मिल पाई जब एक जनहित याचिका पर सुनवाई हो रही थी. नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक ने कोर्ट को यह जानकारी दी कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तो अडानी जी चला रहे हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने जब सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के कांट्रेक्ट की शर्तो का खुलासा हुआ तो जजों ने अपना माथा पीट लिया क्योंकि अदानी से किए कांट्रेक्ट में यह प्रावधान किया गया है कि किसी समय प्लांट में क्षमता से अधिक गंदा पानी आया तो शोधित करने की जवाबदेही उसकी नहीं होगी.

इलाहबाद हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे करार से तो गंगा साफ होने से रही. कोर्ट ने कहा ऐसी योजना बन रही है जिससे दूसरों को लाभ पहुंचाया जा सके और जवाबदेही किसी की न हो. ऐसा करार कर लिया गया है कि कंपनी बिना ट्रीटमेंट किए पैसे ले रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति एम. के. गुप्ता तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा कि ‘जब आपने कांट्रेक्ट ही ऐसा किया है है तो ट्रीटमेंट करने की जरूरत ही क्या है ?’

हाईकोर्ट ने योगी सरकार के कामकाज पर उंगली उठाते हुए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि बोर्ड साइलेंट इस्पेक्टेटर बना हुआ है, इसकी जरूरत ही क्या है, इसे बंद कर दिया जाना चाहिए. ऐक्शन लेने में क्या डर है ? कानून में बोर्ड को अभियोग चलाने तक का अधिकार है ? आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि नमामि गंगे’ परियोजना की डेडलाइन 2020 थी, लेकिन 2022 में अब तक इसके 10 फ़ीसदी प्रोजेक्ट भी ठीक से पूरे नहीं हुए हैं.

ऐसा नहीं है कि कोर्ट के सामने पहली बार यह मामला आया है. 2019 में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पूर्ण पीठ ने केंद्र सरकार से नमामि गंगे प्रॉजेक्ट कार्य के प्रगति की जानकारी मांगी थी. कोर्ट ने पूछा कि जितने भी एसटीपी स्थापित किए गए हैं, वे ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं ? उनकी क्या स्थिति है और गंगा में नाले का गंदा पानी सीधे कैसे जा रहा है ? उन्हें रोकने का इंतजाम क्यों नहीं किया गया है और गंगा में न्यूनतम जल प्रवाह रखने की क्या योजना है ? लेकिन उस वक्त आम चुनाव होने थे लिहाजा सुनवाई टलती गई और 2022 आ गया.

2016 में नमामी गंगे परियोजना का बजट 20,000 करोड रुपए का बनाया गया था. साफ़ दिख रहा है कि 20 हजार करोड़ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं. मीडिया पिछ्ले कई दिनों से पश्चिम बंगाल में हुए 20 करोड के भ्रष्टाचार की खबरें सुबह शाम जनता को परोस रहा है लेकिन 20 हजार करोड़ के भ्रष्टाचार पर कोई बात नहीं हो रही ?

-गिरीश मालवीय (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)