‘कम्युनिटी बाथ’ का भी लोगों की हैप्पीनेस से है कनेक्‍शन, हमारे पूर्वज भी जानते थे खुशी का यह राज लेकिन…

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इधर, दुनिया भर के लोग डेनमार्क की इस खुशी का राज ढूंढने में जुट गए। डेनमार्क न तो दुनिया का सबसे अमीर देश है और न ही यहां की आबोहवा इंसानों के लिए ज्यादा अच्छी है। सर्दियों में यहां का तापमान माइनस 30 डिग्री तक चला जाता है। महीनों धूप के दर्शन नहीं होते। चारों ओर बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है। हरी घास का तिनका भी नजर नहीं आता। खाने के लिए फ्रोजन मीट और सूप के अलावा कुछ नहीं मिलता। सफर भी स्नोमोबिल (बर्फ पर चलने वाली कार) के सहारे ही किया जा सकता है। फिर भी डैनिश लोगों की खुशी में कोई कमी नहीं आती।

डैनिश लोगों की इस बेशुमार खुशी का राज ढूंढते-ढूंढते कई लोग दुख में डूबते चले गए। तभी एक रोचक डेटा सामने आया, जिससे पता चला कि सिर्फ 50 लाख की आबादी वाले डेममार्क में 30 लाख सॉना बाथ यानी ‘भाप के स्नानागार’ हैं। जहां डैनिश लोग सामूहिक रूप से नहाते हैं। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक 95% डैनिश लोग हफ्ते में कम से कम एक बार सॉना बाथ जरूर लेते हैं।

सामूहिक स्नानागार में यार-दोस्तों और फैमिली के साथ नहाना डैनिश लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है।

जहां-जहां कम्युनिटी बाथ का कल्चर वहां ज्यादा खुशियां

हो सकता है कि आपके मन में यह सवाल कौंध रहा हो कि 50 लाख लोगों में 30 लाख सॉना बाथ और डैनिश लोगों की खुशियों का आपस में क्या रिश्ता है? तो आप एक दूसरे आंकड़े पर भी गौर करें। हैप्पीनेस इंडेक्स में दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा खुश देश आइसलैंड है। हैरत की बात ये है कि यहां भी पब्लिक पूल और ‘कम्युनिटी बाथ’ का कल्चर है। यहां आबादी के मुकाबले स्विमिंग पूल की संख्या भी दुनिया भर में सबसे ज्यादा है।

दूसरी ओर एशिया में भूटान को सबसे खुश देश समझा जाता है। भूटानी लोग अपनी खुशी को लेकर इतने संजीदा होते हैं कि यहां विकास का पैमाना सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की जगह ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ है।

भूटानी चिकित्सा पद्धति में गर्म सोते में स्नान का विशेष महत्व है। लकड़ी के बने टब में गर्म पत्थर और औषधीय गुणों वाली पत्तियों के साथ नहाने का चलन सैकड़ों साल पुराना है।

हमारे पूर्वज भी जानते थे खुशी का यह राज

भारत में लोग नहाने और खुशियों का संबंध हजारों साल पहले समझ गए थे। सिंधु घाटी सभ्यता में मिले सामूहिक स्नानागार के बाद गंगा स्नान, यमुना स्नान, गंगा सागर, माघ मेले का स्नान, संक्रांति का स्नान जैसी चीजें चलन में रही हैं। कुंभ के मेले में लाखों लोग एक साथ संगम तट पर डुबकी लगाते हैं। कहा गया कि फलां नदी या ताल में नहाने से पाप धुल जाते हैं। यह सब लोगों को कम्युनिटी बेदिंग में लाने का जरिया था। लेकिन धीरे-धीरे लोग पूर्वजों की इस परंपरा को भूल गए।

शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए किया जाने वाले स्नान कर्मकांड बनकर रह गए। कई लोग तो नदी किनारे जाकर खुद पर जल छिड़क लेते हैं और मानते हैं कि उनके पाप धुल गए। इससे पाप धुलें न धुलें, लेकिन वो एक शानदार स्नान से मिलने वाली खुशी से वंचित जरूर रह जाते हैं।

आपने स्टीम बाथ और कम्युनिटी बाथिंग के फायदे जान लिए हैं। अब जरा अपने देश की उन जगहों की भी सैर कर लिए जहां पानी नेचुरली गर्म रहता है। लोग धार्मिक मान्यताओं के चलते इन कुंड में नहाने दूर-दूर से आते हैं। लेकिन प्राकृतिक रूप से गर्म हुए इन कुंड के पानी में सोडियम, गंधक और सल्फर जैसे मिनरल्स पाए जाते हैं, जो फिजिकल और मेंटल हेल्थ के लिए काफी फायदेमंद हैं। ऐसे में अगर कभी इन जगहों पर जाएं तो एक शानदार डुबकी लगाना न भूलें।

Compiled: up18 News