देश के मुख्य न्यायधीश CJI जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ निजी चैनल के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि “पिछले 70 सालों में हमने अगिनत संस्कृति विकसित की है। इसमें से एक है अविश्वास की संस्कृति है, जो हमारे अधिकारियों को निर्णय नहीं लेने देती है। इसका एक कारण यह है कि न्यायालय के पास मामलों का बैकलॉग है। अविश्वास की संस्कृति है जो हमारे अधिकारियों को निर्णय नहीं लेने के लिए मजबूर करती है।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। अक्सर नीति और वैधता के दायरे में क्या अंतर है। इसके बारे में अंतर करना बहुत आसान नहीं है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि किसी भी मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश के द्वारा कही गई हर बात अंतिम नहीं होती है.
अदालतों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं: CJI
CJI ने कहा कि “न्यायपालिका की ढांचागत जरूरतों को पूरा करने की जरूरत है। हमारे देश की कुछ अदालतों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं है, जो न्यायपालिका के सामने कठोर वास्तविकता है।” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हमने ई-कोर्ट सर्विस को कॉमन सर्विस सेंटर्स के साथ मर्ज करने की कोशिश की है ताकि जो सर्विस हम नागरिकों को प्रदान करते हैं वह भारत के हर ग्राम पंचायत तक पहुंच सकें।”
कानून उत्पीड़न का साधन न बने
CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि करुणा और सहानुभूति की भावना अनसुनी व अनदेखी आवाज सुनने की क्षमता प्रणाली को बनाए रखती है। यह भावना सुनिश्चित करने की कुंजी है कि कानून उत्पीड़न का एक साधन न बने। इसे उन सभी लोगों को देखना चाहिए जो कानून को संभालते हैं, न कि केवल न्यायाधीशों को।
कानूनी पेशे में महिलाओं की पहुंच बढ़ाने की जरूरत
CJI ने कहा कि पूरे भारत में कानूनी पेशे की संरचना सामंती है। हमें अब कानूनी पेशे में महिलाओं के लिए पहुंच बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान जब हमने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए केसों की सुनवाई शुरू की है तो कई महिला वकील सामने आई हैं। लाइव स्ट्रीमिंग ने महिला वकीलों को इस पेशे में आने की अनुमति दी है।
-एजेंसी
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