जीवनशैली ही ऐसी हो गई है, देर से सोते हैं, समय पर खाते नहीं और सुबह उठना भी देर से होता है। नतीजतन शरीर में मौजूद घड़ी की सुइयां हमारे शरीर के चक्र से आगे बढ़ जाती हैं और इसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है।
हमारे शरीर में भी एक घड़ी होती है। हमें कब सोना है और कब खाना है, ये घड़ी ही हमें बताती है।
बायोलॉजिकल क्लॉक यानी कि जैविक घड़ी शरीर की हर कोशिका में सोने से लेकर उठने, खाना पचाने जैसी शारीरिक क्रियाओं को सुचारु रूप से संचालित करती है। हमारा शरीर इसी जैविक घड़ी के अनुरूप कार्य करता है। इससे हमारे शरीर में कार्य करने की क्षमता, हॉर्मोन और तापमान के स्तर में बदलाव होता रहता है।
ये ठीक वैसे ही होता है जैसे हम कोई काम एक निर्धारित समय सीमा के भीतर समाप्त करने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार हमारे शरीर की आंतरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने का काम जैविक घड़ी का होता है। ये पूरे 24 घंटे हमारे शरीर के सोने, जागने और पाचन क्रिया जैसी दैनिक गतिविधियों को समयानुसार नियंत्रित करती है। ये घड़ी हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से कार्य करती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे प्रत्येक 24 घंटे में सुबह से लेकर दोपहर और रात होती है। जैविक घड़ी हमारे सोने का समय, उठने का समय और शौच का समय निर्धारित करती है। यदि इस घड़ी में गड़बड़ी होती है तो इसका हमारे शरीर पर घातक प्रभाव पड़ता है।
नियमित और अनियमित दिनचर्या का प्रभाव भी अलग-अलग होता है, रक्त में तत्वों के स्तर का उतार-चढ़ाव, शारीरिक तापमान, हॉर्मोन की कमी और अधिकता, हृदय गतिविधि, रक्तचाप, उपापचय जैसे कार्य दिनचर्या के बदलाव के कारण प्रभावित होते हैं और ऐसे में जैविक घड़ी जो हमारे शरीर की आंतरिक गतिविधियों को संचालित करती है, का महत्व समझा जा सकता है। यदि आपको लगता है कि आपके शरीर की घड़ी गड़बड़ा गई है तो समय रहते उसे री-सेट कर लें…
सरकेडियन रिदम डिसऑर्डर से घड़ी होती है प्रभावित
इसमें मनुष्य रात में नहीं सोता और दिन में वो नींद में ही रहता है। ऐसा इसलिए होता है कि आजकल ऑफिस में नाइट शिफ्ट का चलन बढ़ा है, लोगों ने देर तक जागने की आदत भी बना ली है, साथ ही बड़ी गाड़ियां चलाने वाले ट्रक ड्राइवर या गार्ड आदि भी रात में जागते हैं। सरकेडियन रिदम आपकी नींद और जागने के समय के अंतर के साथ जुड़ा हुआ है और इसी के कारण यदि नींद का समय बदलता है तो जैविक घड़ी प्रभावित होती है और आपका पूरा दिन इसी के कारण आलस में बीतता है। इसलिए सोने के प्राकृतिक समय से छेड़छाड़ आपकी जैविक घड़ी पर बहुत बुरा असर डालती है।
इसी तरह एक देश से दूसरे देश जाने में टाइम ज़ोन बदलता है। नए टाइम ज़ोन में जाने पर शरीर ख़ुद को उस हिसाब से व्यवस्थित करने के लिए वक़्त लेता है और लोग जेट लैग का अनुभव करते हैं।
घड़ी के बदलाव से शरीर पर पड़ेगा प्रभाव
जैविक घड़ी की हमारे शरीर में सबसे अहम भूमिका होती है और इसके थोड़ा-सा भी गड़बड़ाने पर पूरा शारीरिक प्रबंधन बिगड़ जाता है।
इसका सबसे ज़्यादा असर मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ता है। यह घड़ी हमारे मस्तिष्क से ही निर्धारित होती है और इसके गड़बड़ाने का सबसे ज़्यादा असर याद्दाश्त पर पड़ता है।
जैविक घड़ी या फिर दिनचर्या में बदलाव का असर हमारी पाचन क्रिया पर पड़ता है। खाना ठीक से न पचने के कारण दिक़्क़तें होती हैं और मोटापा बढ़ता है।
कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं जैसे टाइप-2 डायबिटीज़, दिल की बीमारी, आंखों की रोशनी पर प्रभाव। लंबे वक़्त तक जैविक घड़ी में मनमाना बदलाव शरीर में हॉर्मोन के स्राव को असंतुलित कर देता है। यह असंतुलन अगर लंबे वक़्त तक बना रहे तो जींस में बदलाव की संभावना बनी रहती है और इसी बदलाव के कारण कैंसर जैसी घातक बीमारियां पैदा होती हैं।
इसके बदलाव से अवसाद, मधुमेह, अनिद्रा, तंत्रिका संबंधी विकार जैसे अल्ज़ाइमर रोग, पार्किंसंस रोग से व्यक्ति ग्रस्त हो सकता है जिससे उसकी पूरी आंतरिक कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
महिलाओं के मासिक चक्र पर भी असर पड़ता है।
जैविक घड़ी से तालमेल बनाए रखें…
सही समय पर जागें
जैविक घड़ी से तालमेल बिठाने की शुरुआत भी सुबह उठने की आदत बनाकर करें। सुबह समय पर उठें जिससे एक बेहतर दिनचर्या बनेगी और शरीर भी उस समय को अपनाने लगेगा।
जिस समय हमारी आंखें खुलती हैं शरीर की आंतरिक गतिविधियां वहीं से सक्रिय होती हैं और इसी के साथ ही मस्तिष्क से कई तरह के हॉर्मोन के स्राव का संकेत भी शुरू हो जाता है।
सुबह जल्दी उठने की कोशिश करें, सूर्य की रोशनी को अपने शरीर और चेहरे पर कुछ देर पड़ने दें।
सुबह सूर्य की रोशनी के साथ उठने पर दिमाग़ में ताज़गी का संचार होता है, जिससे पूरी दिनचर्या को जैविक घड़ी के सामंजस्य में रखना आसान होता है।
समय से सोएं भी
सोने का समय निर्धारित करें क्योंकि सही समय पर सोने से ही आप सही समय पर उठ पाएंगे और फिर अगले दिन सूर्योदय के साथ बेहतर दिनचर्या की शुरुआत कर सकेंगे।
अमूमन लोग सप्ताहांत पर देर रात तक जागते हैं, पार्टी करते हैं और सुबह देर तक सोते रहते हैं, जिससे शरीर का संतुलन बिगड़ता है। शरीर का तालमेल जैविक घड़ी से बिठाने के लिए देर तक सोने से बचें क्योंकि देर तक सोने से अगले दिन की पूरी योजना गड़बड़ा जाती है।
यदि एक दिन भी इसे बिगाड़ते हैं तो इसका असर अगले दिन पर पड़ेगा। सोने का सही समय रात के लगभग 9 बजे के आसपास का होता है, तभी आप अगले दिन सही समय पर उठ पाएंगे।
शरीर को समझें
शाम 7 बजे के बाद कसरत न करें क्योंकि इस समय जैविक घड़ी के हिसाब से मनुष्य का मस्तिष्क शरीर को कम सक्रिय रखता है, और दिमाग़ में स्फूर्ति कम होने से शरीर से तालमेल नहीं बैठ पाता और इसी कारण शरीर का जैविक घड़ी से समन्वय नहीं बैठता।
रात में मद्यपान से बचें। यदि दिनचर्या बहुत व्यस्त रहती है तो दोपहर में थोड़ी देर नींद या झपकी लेने की कोशिश करें, जिससे शरीर ऊर्जावान बना रहेगा।
यदि नाइट शिफ्ट कर रहे हैं तो फिर कम से कम 3 महीने का अंतर करके करें क्योंकि रात को जागने से पूरी जैविक घड़ी संतुलन खो देती है और पाचन संबंधी, आंख संबंधी तमाम बीमारियों से शरीर जल्द ग्रस्त हो जाता है।
सोने के 1-2 घंटे पहले टीवी, मोबाइल आदि स्क्रीन बंद कर दें। सोने के 3 घंटे पहले कुछ भी नहीं खाएं, इससे पाचन सही रहेगा और शरीर का चक्र भी संतुलित रहेगा।
-एजेंसी
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