संसद में रामसेतु को लेकर केंद्र सरकार का जवाब, अस्तित्व का अब तक पुख्ता प्रमाण नहीं

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पृथ्वी विज्ञान मामलों के मंत्री जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा है कि भारतीय सैटलाइटों को राम सेतु की उत्पत्ति से संबंधित कोई सबूत नहीं मिले हैं.

राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में गुरुवार को जितेंद्र सिंह ने कहा कि “भारतीय सैटेलाइटों ने भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाले रामसेतु वाले इलाक़े की हाई रिज़ोल्यूशन तस्वीरें ली हैं. हालांकि इन सैटेलाइट तस्वीरों से अब तक सीधे तौर पर रामसेतु की उत्पत्ति और वो कितना पुराना है इससे संबंधित कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं.”

जवाब में ये भी लिखा है कि समंदर के नीचे डूबे शहर द्वारका की तस्वीरें रिमोट सेन्सिंग सैटलाइट के ज़रिए नहीं ली जा सकती क्योंकि ये सतह के नीचे की तस्वीरें नहीं ले सकते.

लेकिन विपक्ष सरकार के इस जवाब पर सवाल उठा रहा है. उसका कहना है कि जब यही बात मनमोहन सिंह सरकार ने कही थी तो बीजेपी ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताया था.

प्रश्न हरियाणा से निर्दलीय सांसद कार्तिकेय शर्मा ने पूछा था.

ये उत्तर उन्होंने हरियाणा से सासंद कार्तिकेय शर्मा के एक सवाल के जबाव में दिया जिसमें उन्होंने पूछा था कि क्या ये सच है कि भारत की प्रााचीन सभ्यताएं केवल मिथक हैं या उनके अस्तित्व को साबित करने के लिए कुछ सबूत मौजूद हैं.

और अगर ऐसा है तो क्या रिमोट सेन्सिंग सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों के ज़रिए रामसेतु और समंदर में डूबे द्वारका शहर के अस्तिस्व को विज्ञान के आधार पर साबित किया जा सकता है?

22 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में प्रश्न काल के दौरान जितेंद्र सिंह ने सासंद कार्तिकेय शर्मा के सवाल का जवाब दिया.

जितेन्द्र सिंह ने क्या कहा?

जितेन्द्र सिंह ने सबसे पहले तो सांसद कार्तिकेय शर्मा को धन्यवाद दिया और कहा कि इस तरह के सवाल सदन में कम ही किए जाते हैं.

उन्होंने कहा, “इतिहास से जुड़ी बातों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. स्पेस एंड टेक्नोलॉजी विभाग इस काम में लगा हुआ है.”

रामसेतु के बारे में उन्होंने कहा, “इस खोज की कई सीमाएं हैं क्योंकि इसका इतिहास 18 हज़ार सालों से अधिक पुराना है. और इतिहास को देखें तो ये पुल 56 किलोमीटर लंबा था. स्पेस तकनीक के ज़रिए हम चूना पत्थर के बने नन्हे द्वीप और कुछ टुकड़े खोज पाए हैं. हालांकि हम पुख्ता तौर पर ये नहीं कह सकते कि ये टुकड़े सेतु का हिस्सा रहे होंगे लेकिन इनमें कुछ तरह की निरंतरता दिखती है.”

उन्होंने कहा, “इससे कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि वहां कैसा ढांचा रहा होगा इस बारे में ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है. लेकिन हां इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संकेत हैं कि वहां कुछ तो था.”

इसके बाद मंत्री ने सरस्वती नदी के बारे में भी ज़िक्र किया.

उन्होंने कहा कि राजस्थान के रेगिस्तान की रेत के नीचे एक बड़ी नदी के सबूत हैं. भारत की कई पौराणिक कथाओं में इसका ज़िक्र एक प्राचीन नदी के तौर पर किया गया है.

विपक्ष ने की प्रतिक्रिया

रामसेतु एक संवेदनशील सियासी मुद्दा है. बीजेपी ने अतीत में भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद खाड़ी में रामसेतु समुद्रम प्रोजेक्ट का भी विरोध किया था. बीजेपी और संघ परिवार का कहना है कि इससे रामसेतु के अवशेष तबाह हो जाएंगे.

जब संसद में कांग्रेस की ओर से कहा गया था रामसेतु के होने के प्रमाण नहीं तो काफ़ी हंगामा हुआ था.

एडम्स ब्रिज के नाम से मशहूर इस इलाक़े को कांग्रेस के काल में छपी डिपार्टमेंट ऑफ़ स्पेस की एक किताब इस पुल की उत्पत्ति को मानव निर्मित बताया गया था.

इमेजज़ इंडिया नाम की अंतरिक्ष विभाग की किताब में लिखा था, “एडम्स ब्रिज एक रहस्य है. पुरातत्त्व के अध्ययनों से पता चला है कि ये करीब 1,75,000 वर्ष पुराना है. लेकिन इसके स्ट्रक्चर को देखकर नहीं लगता कि मानव निर्मित था.

अब जब बीजेपी सरकार ने रामसेतु के अस्तित्व के पुख़्ता सबूत न होने की बात कही है तो कांग्रेस हमलावर हो गई है.

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने इससे जुड़ी एक न्यूज़ ट्वीट कर रहा है कि “सभी भक्त जन कान खोल कर सुन लो और आँखें खोल कर देख लो. मोदी सरकार संसद में कह रही है कि राम सेतु होने का कोई प्रमाण नहीं है.”

जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव ने भी इसे लेकर ट्वीट किया है.

उन्होंने लिखा है, “यही बात मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था तो बीजेपी ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताया था.”

रामसेतु क्या है?

रामायण में लिखा है कि भगवान राम ने लंका में रावण की क़ैद से अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए वानर सेना की मदद से रामसेतु का निर्माण किया था.

इसे लेकर विवाद साल 2005 में उस वक्त उठा जब यूपीए-1 सरकार ने 12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े चैनल वाले सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी. इसके तहत मन्नार की खाड़ी को पाक बे से जोड़ा जाना था लेकिन इसके लिए ‘रामसेतु’ की चट्टानों को तोड़ना पड़ता.

प्रोजेक्ट समर्थकों के मुताबिक़, इससे जहाज़ों के ईंधन और समय में लगभग 36 घंटे की बचत होती क्योंकि अभी जहाज़ों को श्रीलंका की परिक्रमा करके जाना होता है.

हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और कहा कि इस प्रोजेक्ट से ‘रामसेतु’ को नुक़सान पहुंचेगा.

उस वक्त इसके विरोध में मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची जहां केंद्र की कांग्रेस सरकार ने याचिका में कहा कि रामायण में जिन बातों का ज़िक्र है उसके वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं.

रिपोर्टों के मुताबिक भारत सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मदद से कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर कहा कि ये केवल प्राकृतिक तौर पर बना एक फॉर्मेशन है, और इस बात के कोई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं कि इसे भगवान राम ने बनाया था.

साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी.

इसके बाद साल 2021 में मोदी सरकार ने इससे जुड़े सबूत जुटाने के लिए शोध की अनुमति दी. तीन साल के इस शोध का उद्देश्य से पता करना था कि राम सेतु मानव निर्मित है या नहीं और इसके बनने का वक्त क्या रामायण के दौर से मिलता है.

Compiled: up18 News