हर बार, बाज़ार जाने से पहले जब आप वो कपड़े का थैला ले जाना भूल जाते हैं और फिर सामान खरीदने के बाद दुकानदार से पॉलिथीन की थैली मांगते हैं, तब आप अनजाने में ही सही, लेकिन कहीं न कहीं, किसी बच्चे की बौद्धिक दिव्यांगता में योगदान दे रहे होते हैं। जी हाँ, आपने सही पढ़ा। यह बात सुनने में भले ही चौंकाने वाली लगे, लेकिन पॉलिथीन की थैलियों के हमारे इस्तेमाल, गर्भस्थ बच्चों के विकास, और जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण जैसे व्यापक मुद्दों के बीच गहरा संबंध है।
चलिए समझते हैं इसका विज्ञान
पॉलिथीन थैलियों के निर्माण में कई खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल होता है। इनमें से कुछ प्रमुख रसायन हैं बिस्फेनॉल ए (बीपीए), प्रोपॉक्सी, डिबेंजॉयलमेथेन और डाइआयोडोमेथेन। इसके अलावा, प्लास्टिक उत्पादों, जिनमें पॉलिथीन थैलियां भी शामिल हैं, में फेथलेट प्लास्टिसाइज़र और तमाम ज्वाला मंदक जहरीले रसायन भी होते हैं। ये रसायन भोजन और पानी में मिलकर मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं।
यहाँ सबसे चिंताजनक रसायन है बीपीए। इसे एक हार्मोन अवरोधक के रूप में जाना जाता है। यह अंतःस्रावी या एंडोक्राइन तंत्र के सामान्य कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है। इसके चलते बच्चों के विकास पर गंभीर प्रभाव हो सकते है। इन परिणामों में मानसिक मंदता भी शामिल है।
गर्भवती महिलाएं बीपीए और दूसरे ऐसे रसायनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होती हैं, क्योंकि ये रसायन प्लेसेंटा को पार कर भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। फेथलेट प्लास्टिसाइज़र और ज्वाला मंदक भ्रूण के विकास में देरी का कारण बन सकते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान इन पदार्थों के संपर्क में आने से भ्रूण के विकास और वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
उदाहरण के लिए, डाइ-(2-इथाइलहेक्सिल) फेथलेट (DEHP) के संपर्क में आने से माताओं में कोशिका वृद्धि और प्लेसेंटा का आकार कम हो जाता है, जो संभावित रूप से भ्रूण के विकास और वृद्धि को प्रभावित करता है। इसी तरह, फेथलेट के संपर्क में आने से प्लेसेंटा का आकार और रूप बदल सकता है, जिससे विकास में देरी हो सकती है। इसके अलावा, कुछ ज्वाला मंदक, जैसे पॉलीब्रोमिनेटेड डिफेनिल इथर (पीबीडीई), थायरॉयड और प्लेसेंटा के कार्यों में बाधा डालते हैं, जिससे भ्रूण के विकास में देरी होती है।
क्या है बौद्धिक दिव्यांगता से संबंध?
अब सवाल उठता है कि प्लास्टिक की थैली के प्रयोग और बच्चों में बौद्धिक विकलांगता के बीच क्या संबंध है? सरल शब्दों में कहें तो इन थैलियों के उत्पादन, उपभोग, और निपटान, तीनों ही प्रक्रियाओं में हम हानिकारक रसायनों के संपर्क में आते हैं। गर्भवती महिलाओं पर इसके प्रभाव से बच्चों के विकास में देरी (डेवलपमेंटल डिले)के कारण बौद्धिक दिव्यांगता, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार और सेरेब्रल पाल्सी जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
जुड़े हैं जलवायु परिवर्तन से भी इसके तार
लेकिन बात यहीं नहीं रुकती। प्लास्टिक बैग के उत्पादन और निपटान से भी जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण बढ़ता है। पॉलिथीन थैलियां मुख्य रूप से पेट्रोलियम संसाधनों से प्राप्त इथीलीन या प्रोपलीन-आधारित पॉलिमर से बनाई जाती हैं। इन संसाधनों के निष्कर्षण और प्रसंस्करण से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
इसके अलावा, प्लास्टिक प्रदूषण हमारे पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है। पॉलिथीन थैलियों को सड़ने में सैकड़ों साल लग जाते हैं, जो जलमार्गों को अवरुद्ध करती हैं, वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाती हैं और मिट्टी को दूषित करती हैं। यह न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी दूरगामी परिणाम देता है।
किया क्या जाए?
अगली बार जब आप प्लास्टिक थैली लेने के बारे में सोचें, तो सुविधा से परे इसके व्यापक प्रभावों के बारे में विचार करें। प्लास्टिक की थैलियों पर हमारी निर्भरता को कम करके और स्थायी विकल्पों की वकालत करके, हम न केवल पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों के स्वास्थ्य की भी रक्षा कर सकते हैं। इससे हम सभी के लिए एक उज्जवल और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित होगा।
तो घर में रखे उन पुराने हो चुके कपड़ों में पर्यावरणीय स्थिरता और किसी बच्चे के उज्ज्वल स्वास्थ्य की संभावना देखना शुरू कीजिये और कुछ थैले बनाइये, अपने साथ रखिए, अपनी गाड़ी में रखिए, अपनी जेब में रखिए।
– दीपमाला पाण्डेय
(लेखिका बरेली के एक सरकारी विद्यालय में प्रधानाचार्या हैं और दिव्यांग बच्चों को शिक्षा और समाज की मुख्यधारा में लाने के अपने प्रयासों के चलते माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम में भी शामिल हो चुकी हैं।)
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.