बजट 2022: हम तो मिडिल क्लास के लोग है साहब, हम मिडिल में ही रहते है, नींद भी अधूरी रहती है और सपने भी…..!

अन्तर्द्वन्द

आज बजट आने के बाद से काका बड़े परेशान दिखाई दे रहे है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का पूरा बजट भाषण सुनने के बाद से काका लम्बी तान कर तीन घंटे सोते रहे। सोकर उठे तो खाता बही लेकर बैठ गए। एक एक पैसे का हिसाब जोड़ रहे थे। बड़े चिंता में थे काका। काका चिंतित रहे ये हमको नही भा रहा था। आखिर रात खाने पर हमने सोते शेर को छेड़ना ही बेहतर समझा। खाना दस्तरखान पर लग चुका था। काका जो हमेशा सबसे पहले दस्तरखान पर बैठते थे। मगर आज काका को दो बार बुलाना पड़ा। बड़े अधूरे मन से काका खाना खा रहे थे।

आखिर हमने काका से पूछ ही लिया। का काका काहे इतना उदास हो। काका बोले “का बताये बचवा, सोचा रहा कि चुनाव है तो वित्त मंत्री हम मिडिल क्लास वालो के लिए कुछ बढ़िया करेगी। मगर हम लोगो को तो कुछ मिला ही नही।” काका का उदास चेहरा देख कर हमको हंसी छूटने वाली थी। मगर शेर को ललकारना बड़ा मुश्किल होता है। हमने थोडा तार्किक विधि का प्रयोग करने की सोची और कहा। अरे काका समझो बात को। हम मिडिल क्लास का क्या कहना है। आप हम मिडिल क्लास वालो की इम्पोर्टेंस समझो काका। हम ऐसे है कि आफत ज़िन्दगी भर हमसे जूझती रहती है। आफत भी पनाह मांग लेती है कि आखिर कितना इसके ऊपर ये, ससुरे को असर नही होता है। हमारी किस्मत में बचपन कहा “तैमुर” जैसा होता है कि कैमरा हमारा पीछा करे। बुढापा आता है तो साथ में बिमारी लाता है। हमारी किस्मत अनूप जलोटा जैसी थोड़ी न होती है।

हम मिडिल क्लास वालो का अपना ही महत्व है। चाहे “बीएमडब्लू” का दाम बढे या फिर “ऑडी” का, चाहे “आई फोन” कोई नया लांच हो। हम तो बड़ी शिद्दत और मशक्कत के बाद एक 10-15 हज़ार का फोन खरीद कर तब तक उसको बनवाते रहते है जब तक बनाने वाला खुद न कह दे कि अब नही बन सकता। इतने में तो फलनवा नया सेट आ जायेगा। हम आधी ज़िंदगी झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को के लिए चिंतित रहते है। हम वो है कि दूध गलती से फट जाता है तो उसकी भी पनीर की सब्जी बना डालते है। रात को सब्जी बच जाती है तो सुबह मिक्स वेज बनाने के काम आती है। रात का चावल थोडा बच जाता है तो तनिक कडुआ तेल में थोडा जीरा का छोका देकर फ़्राईड राईस बना लेते है।

फ्रूटी, कोल्ड ड्रिंक वैसे तो पी लिया जाता है। मगर इसका ख़ास तौर पर उपयोग मेहमान आने पर “भौकाल” जमाने के लिए होता है। कपड़ो की भी तीन प्रकार रखते है। एक घर में पहनने के लिए, दूसरा कही जाना हुआ तो वह पहनकर जाने के लिए, तीसरा कही किसी समारोह में जाने वाला अलग होता है। ये तो छोड़े काका…! डेली, कैजुअल और पार्टी वाले चावल भी हमारे किचन में अलग अलग होते है। हम मिडिल क्लास वाले थोडा महान प्रकृति के होते है काका। महीने की सैलरी अगर 1 के बजाये तीन तारीख को आई तो समझ लो श्रीमती जी के कलेक्शन से उधारी चलती रहेगी। कहा पड़े हो काका इन सब चक्कर में। आप खुद सोचो अब तक के पुरे जीवन में सबसे ज्यादा कौन सा शब्द आपने कहा होगा? वो शब्द होगा “महंगा है।”

गेट-2-गेदर हम मिडिल क्लास वाले तो करते ही नही है। इसकी जगह घर में “कुरआन-ख्वानी” अथवा “सत्यनारायण भगवान” की कथा करवा लेते है। हमारी भूख भी होटल के सामानों का दाम देखकर थोडा कम हो जाती है। महंगें होटलों में हम भी जाते है मगर मेन्यू में फूड-आइटम्स की जगह अपने पाकेट की साइज़ के दाम तलाशते है। जीवन में अपने “वैलेंटाइन” नहीं होता सीधे जिम्मेदारिया हमारी ज़िंदगी का हिस्सा होती है। अमीर लोग शादी के बाद हनीमून पर चले जाते है और हम मिडिल क्लास वाले शादी के बाद टेंट हाउस वाले का हिसाब, बावर्ची का हिसाब, नानबाई का हिसाब करते रहते है और तो और उसमे भी जमकर मोलभाव कर लेते है।

हम माध्यम वर्गीय लोगो को शादी के बाद ही पर्सनल कमरा और बेड मिलता है। वरना दो भइये एक ही कमरे में सो लेते है। कंजूसी करना पड़ता है। कोल्ड क्रीम का खर्च कौन करे? उसकी बचत करते हुवे सर पर तेल लगाने के बाद वही हाथ चेहरा और बदन पर रगड़ के काम चला लेते है। गीज़र तो थोडा चला कर बंद कर देते है और फिर तब तक नहाते है जब तक उसका गर्म पानी ठंडा न आने लगे। घर में एक या दो कमरों में एसी लगी होने पर पूरा परिवार उसी कमरों में दिन भर काम चला लेता है। उस पर भी बढ़ता बिजली का बिल देख कर दिल धक्क से हो जाता है और कमरा जैसे ही ठंडा हुआ एसी बंद कर देते है। मिडिल क्लास होना काका कोई आसान बात नही है। ये एक आर्ट है, एक कला है, जो सबको नही आती है।

शार्ट कट समझो काका, सरकार अल्पमत की हो या बहुमत की। हम मिडिल क्लास वालो को सभी थोडा थोडा हिला दिया करते है। वैसे ही जैसे मन्दिर में आने वाला हर बन्दा घंटे को थोडा सा हिला कर आता है और हिला कर ही जाता है। फिर भी हमारी हिम्मत देखे काका कि हम पैसा बचाने की कोशिश करते है। कुछ बच पाए या न बच पाए, खर्च का खर्रा लम्बा होता रहता है। काका हमारे सपने भी हमारे तरह ही होते है। पानी की टंकी भर गई तो बंद करते हुवे देखते है। चूल्हे पर चावल जल रहा है अथवा दूध खौल के बह रहा है। बच्चो के स्कूल की फीस देने गए है। तनख्वाह इस बार थोडा कम आई है तो बजट में से थोडा ड्राई फ्रूट्स और मक्खन कम कर रहे है। साल का आखिर आ गया है, इनकम टैक्स भरने के लिए जुगाड़ लगा रहे है।

काका बड़ी संजीदगी से हमारी बात सुन रहे थे। आखिर में बोले सही कहे बेटा। शादी के बाद तुम्हारी काकी को नैनीताल लेकर जाने का वायदा किया था। रिटायर्ड हो गए मगर ससुरा बजट शार्ट पड़ता जा रहा है ले नही जा पा रहे है। हमने भी काका का दिल रखने को कह दिया। अरे काका, काहे परेशान होते हो। कोरोना काल खत्म होने दो हम आप दोनों का टिकट करवा कर भेजते है नैनीताल। वहा हमारा एक मित्र रहता है उससे कहकर होटल भी जुगाड़ करवा देंगे। अब समझते हो काका आप भी कि हम मिडिल क्लास लोगो का काम तो जुगाड़ से ही आधे से ज्यादा चल जाता है।

हमारे आश्वासन को सुनकर काका के चेहरे पर कुछ बहाली आई। बुढापा में उन्हें भी लग रहा है कि अब नैनीताल घूम लेते है। इधर हार्ड बचन तो बोल दिया मगर अब दिमाग में एक बात टहल रही है कि फ़ालतू की बकैती में 20 हज़ार की शिंडी लग गई। मगर अब क्या करे, काका भी तो हमारे लिए कितना करते है। चलो इस महीने थोडा खुद के लिए नया लैपटॉप लेने की सोचा था, अभी पुराने से ही काम चला लेंगे। नया बाद में ले लेंगे। आपको हमारी बाते देखी सुनी सी लग रही होंगी। नहीं साहब देखी सुनी नही खुद के साथ गुजरी हुई होंगी। हम मिडिल क्लास लोग है। सर ढकते है तो पाँव खुल जाता है और पाँव ढकते है तो सर। बस ज़िन्दगी इसी में गुज़र जाती है। असल में हम मिडिल क्लास कोई क्लास ही नही बल्कि एक खानवादे की तरह होते है। न नींद पूरी होती है और न सपने पुरे होते है। इसी शिकायत में जिंदगी चलती रहती है। वो कहते है न कि उम्र-ए-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन, दो आरजू में कट गये दो इंतज़ार में। अल्लाह हाफ़िज़ मियाँ, राम राम, दुआ सलाम फिर मिलेगे…..!

-शीतल सिंह “माया”-