विवाह के दौरान हो रहीं ऊलजुलूल हरकतें बड़ी संख्या में लोगों को अब रास नहीं आ रही हैं। इंदौर के वर पक्ष की कुछ मांगों वाला एक पोस्ट कुछ दिन पहले वायरल हुआ था जिसे देखकर जितना आश्चर्यचकित वधू परिवार हुआ उतना ही उसे पढ़ने वाला होता रहा परंतु इससे सहमति जताने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
पोस्ट कुछ इस प्रकार है। इंदौर में वर की मांगों से आश्चर्यचकित हुआ वधू परिवार। विवाह पूर्व एक लड़के की अनोखी मांगों से कन्या पक्ष हैरान है। लड़के की मांगों की चर्चा पूरे शहर में हो रही है। यह मांगें दहेज को लेकर नहीं, बल्कि विवाह संपन्न कराने के तरीके को लेकर हैं। अब जरा मांगों पर गौर फरमाएं।
पहली मांग- कोई प्री वेडिंग शूट नहीं होगा।
दूसरी मांग- वधू विवाह में लहंगे के बजाय साड़ी पहनेगी।
तीसरी मांग – मैरिज लॉन में ऊलजुलूल अश्लील कानफोड़ू संगीत के बजाय हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत बजेगा।
चौथी मांग- वरमाला के समय केवल वर-वधू ही स्टेज पर रहेंगे।
पांचवीं मांग- वरमाला के समय वर या वधू को उठाकर उचकाने वालों को विवाह से निष्कासित कर दिया जाएगा।
छठी मांग- पंडित जी द्वारा विवाह प्रक्रिया शुरू कर देने के बाद कोई उन्हें रोके-टोकेगा नहीं।
सातवीं मांग- कैमरामैन फेरों आदि के चित्र दूर से लेगा, न कि बार-बार पंडित जी को टोककर। ये देवताओं का आह्वान करके उनके साक्ष्य में किया जा रहा विवाह समारोह है, ना की किसी फिल्म की शूटिंग। वर-वधू द्वारा कैमरामैन के कहने पर उल्टे-सीधे पोज नहीं बनाए जाएंगे।
आठवीं मांग- विवाह समारोह दिन में हो और शाम तक विदाई संपन्न हो, जिससे किसी भी मेहमान को रात 12 से 1 बजे खाना खाने से होने वाली समस्या जैसे अनिद्रा, एसिडिटी आदि से परेशान ना होना पड़े। मेहमानों को अपने घर पहुंचने में मध्य रात्रि तक का समय ना लगे और असुविधा ना हो।
नौवीं मांग- नव विवाहित को सबके सामने किस या आलिंगन के लिए कहने वाले को तुरंत विवाह से निष्कासित कर दिया जाएगा।
कोई भी समझदार व्यक्ति इन मांगों को नकार नहीं सकता। यदि हम अपने बड़े बुजुर्गों से पूछेंगे तो वो बताएंगे कि उनका विवाह ऐसे ही सुंदर तरीके से संपन्न हुआ था। 70-80 के दशक में जब फोटो खींचने का चलन बढ़ा तो विवाह समारोह में कैमरा ने एंट्री कर ली। विवाह की अलबम बनने लगीं, लेकिन 90 के दशक की शुरुआत में वीडियो कैमरा की एंट्री हुई और बड़ा परिवर्तन विवाह समारोह में आ गया। अब फोटो के साथ वीडियो भी अनिवार्य हो चला था।
इंटरनेट की एंट्री
असली परिवर्तन इंटरनेट की एंट्री से शुरू हुआ। हम दुनिया से जुड़ चुके थे और विवाह समारोह चकाचौंध की तरफ बढ़ गए। करीब-करीब एक दशक पहले प्री-वेडिंग शूट की शुरुआत ने तो सबकुछ खुल्लम-खुला कर दिया। जहां पहले वर-वधू के विवाह पूर्व मिलना भी अच्छा नहीं माना जाता था, वहां ओपननेस के नाम पर सबकुछ जायज ठहरा दिया गया। अब तो लाखों-करोड़ रुपए के प्री-वेडिंग शूट्स ही हो रहे हैं, जो एक साधरण मध्यवर्गीय परिवार की पहुंच से दूर हैं, लेकिन चूंकि इसे विवाह का अनिवार्य अंग बना दिया गया है, सो मजबूरी में परिवार सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए जेब पर पड़ने वाले बोझ को दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं।
विवाह संस्कार या फिल्म की शूटिंग?
यह भी बिल्कुल सत्य है कि हमारे विवाह संस्कार न रहकर फिल्म की शूटिंग बन चुके हैं। कुछ दिनों पहले तो एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वर-वधू किसी फूहड़ से बॉलीवुड गाने पर डांस करते हुए फेरे ले रहे हैं। इस कृत्य की जब सोशल मीडिया पर तीव्र आलोचना हुई तो आगे ऐसा करने का किसी का साहस नहीं हुआ। यदि किसी ने इस हरकत को दोहरा भी दिया होगा तो वीडियो पोस्ट करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया होगा। वर की विवाह को फिल्म की शूटिंग न बनाने की मांग सौ प्रतिशत उचित है।
विवाह समारोह में बजने वाले अश्लील गानों से कोई इनकार नहीं कर सकता। कुछ गानें तो ऐसे बजा दिए जाते हैं, जो शायद हम अपने घरों में सुनते तक नहीं होंगे। निश्चित ही गानों की कोई सूची डीजे वाले को वर या वधू पक्ष की ओर से नहीं दी जाती होगी। डीजे वाला क्या बजा दे या विवाह में पहुंचा कोई मेहमान क्या बजवा ले? यह अनिश्चित है। विवाह के दौरान गानों को लेकर भिड़ंत भी आम सी बात हो गई है। वर का यह सुझाव स्वागतयोग्य है कि हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत बजेगा।
विवाह समारोह दिन में संपन्न कराने की मांग भी अच्छी है। यह तो सर्वविदित है कि हमारे यहां दिन में विवाह संपन्न होते थे। दक्षिण भारत में यह परंपरा आज भी है। ऐसा माना जाता है कि मुगलकाल के दौरान कहीं कारणों से उत्तर भारत में विवाह सूर्यास्त के बाद संपन्न होने लगे। निश्चित रूप से यह परिवारों का निजी फैसला है, लेकिन दिन में विवाह एक अच्छा विचार है।
समय के अनुसार परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम पाश्चात्य संस्कृति की अच्छी चीजों को भी अपनाएं, लेकिन अपने संस्कारों को भूले बिना। समाज सुधार के लिए वर के यह सुंदर सुझाव सभी के लिए अनुकरणीय हैं, क्योंकि विवाह एक पवित्र बंधन है। मर्यादाओं में रहकर यदि समाज में अपनी दिखावे वाली प्रतिष्ठा को त्याग कर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करने के बजाय सादगी से विवाह की ठान लें तो सबका भला हो जाएगा।
– एजेंसी
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