आगरा: थाने में धरने पर बैठे भाजपा विधायक, कहा – ‘हमारी ही सरकार में नहीं सुन रही पुलिस’

Regional

आगरा: सत्ता से जुड़े भाजपा विधायक पुलिस के अधिकारियों को फोन कर किसी अप्रिय घटना की जानकारी देते हैं। उसके बावजूद शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं होती। ऐसे हालात में आखिर सत्ता से जुड़े विधायक करें तो आखिर क्या करें। विधायक को अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान भी बचाना है और सरकार की साख को भी बचाना है।

इन्हीं हालातों से मजबूर होकर आगरा के छावनी से विधायक डॉक्टर जी एस धर्मेश को थाना सदर में धरने पर बैठना पड़ा। उन्होंने साफ एवं स्पष्ट शब्दों में कहा कि ‘हमारी ही सरकार है और हमारी ही सरकार में संघ के एवं हमारे कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार होता है। उनकी शिकायत को पुलिस अनसुना कर देती है। ऐसे हालातों में उनके पास धरने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।’ यह पूरा मामला संघ पदाधिकारी की पत्नी से अभद्रता करने से जुड़ा हुआ है।

विधायक डॉक्टर जी एस धर्मेश ने सदर थाना इंस्पेक्टर की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि कल मैं खुद संघ के पदाधिकारी के साथ सदर थाने आया था। इंस्पेक्टर से वार्ता हुई, लिखित में तहरीर दी और आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की थी। इंस्पेक्टर ने आश्वासन भी दिया लेकिन कोई उचित कार्रवाई नहीं हुई। इससे पहले उन्होंने खुद फोन पर चौकी इंचार्ज को भी बोला था कि इस मामले में उचित कार्रवाई करें लेकिन नतीजा सिफर रहा।

खुद पंचायत करके निपटा दिया मामला

विधायक डाक्टर जिए धर्मेश ने बताया कि जब इस पूरे मामले में कार्रवाई को लेकर थाना सदर इंस्पेक्टर से वार्ता की गई तो उन्होंने बताया कि आरोपी अपनी पत्नी के साथ आया था। माफी मांग रहा था। इसीलिए अब कोई कार्रवाई नहीं होगी। पुलिस ने बिना पीड़ित को बुलाए खुद पंचायत कर ली और आरोपी को खुली छूट दे दी जबकि कॉलोनी वासी उस आरोपी से बेहद परेशान हैं।

विधायक डॉक्टर जी एस धर्मेश के धरने पर बैठने की सूचना मिलते ही क्षेत्राधिकारी अर्चना सिंह थाना सदर पहुंच गई। क्षेत्राधिकारी अर्चना सिंह ने कई बार विधायक से बैठकर बातचीत करने की बात कही लेकिन वह अडे रहे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आपकी पुलिस हमारी नहीं सुनती तो आम जनता के हालात किस तरह होंगे समझा जा सकता है।

विधायक डॉक्टर जी एस धर्मेश ने आरोप लगाया कि ‘सदर थाने में मामले को लटकाए जाता है जिससे लेन-देन सही से हो सके। अधिकतर मामलों में सुनवाई नहीं होती और लेनदेन के बाद वह मामले निपट जाते हैं। यानी सदर थाने के अंदर रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार भी चरम पर है।