यूक्रेन पर हमले के बावजूद भारत के रूस से तेल ख़रीदने को लेकर अमेरिका ने कहा है कि वो किसी भी देश की विदेश नीति पर टिप्पणी नहीं कर सकता है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने नियमित प्रेस ब्रीफ़िंग में कहा कि कई देशों ने रूस के यूक्रेन पर हमले की आलोचना की है. साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी कई देशों ने रूस के ख़िलाफ़ मतदान भी किया है.
लेकिन उन्होंने माना कि जिन देशों के रूस के साथ दशकों पुराने रिश्ते हैं और इसे भी समझने की ज़रूरत है.
नेड प्राइस ने कहा कि भारत के मामले में भी ऐसा ही है. भारत और रूस के दशकों पुराने रिश्ते हैं. रूस से अलग अपनी विदेश नीति को नई दिशा देना एक दीर्घकालिक प्रस्ताव होगा. ये बिजली के स्विच का बटन दबाने जैसा नहीं है.
प्रेस ब्रीफ़िंग में नेड प्राइस से इस पर सवाल पूछा गया कि भारत तो रूस के साथ सैन्य अभ्यास भी कर रहा है. इस सवाल के जवाब में नेड प्राइस ने कहा कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी कई बार ये संदेश दिया है कि ऐसा नहीं है कि देशों को अमेरिका और अन्य देशों में किसी एक को चुनना है. दुनिया के हर देश अपने फ़ैसले लेंगे और वे फ़ैसले उनके हितों और मूल्यों के आधार पर होंगे.
उन्होंने कहा, हमें ये भी समझना होगा कि दुनिया के कई देशों के बीच दीर्घकालीन रिश्ते हैं, जिनमें सुरक्षा भी शामिल हैं. रूस के संबंध में अगर बात करें तो जिन देशों के साथ रूस का सुरक्षा समझौता है या हथियार ख़रीद समझौता है, वो देश एकाएक रूस से अलग अपनी विदेश नीति नहीं बना सकते. ये कुछ हफ़्तों या महीनों में नहीं हो सकता. हमें इसे दीर्घकालिक चुनौती के रूप में देखते हैं.
नेड प्राइस ने कहा कि रूस ने जिस तरह यूक्रेन पर आक्रमण किया और यूक्रेन के अंदर भी जो कार्रवाई की या अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सिद्धांतों का उल्लंघन किया, वो अन्य देशों के लिए एक सबक होगा. उन्होंने कहा कि इससे अमेरिका को दुनिया के देशों को ये समझाने में मदद मिली कि अमेरिका का क्या रुख़ है और रूस जैसे देशों का क्या रुख़ है.
रूस ने फ़रवरी में यूक्रेन पर हमला किया था लेकिन भारत ने कभी भी खुलकर रूस की आलोचना नहीं की. भारत ने हर मंच पर यही कहा कि दोनों पक्षों को मिलकर इसका हल निकालना चाहिए. यूरोप और अमेरिका के अलावा कई देशों ने रूस पर पाबंदी लगाई. लेकिन भारत ने रूस से तेल लेना जारी रखा. अमेरिका ने भी भारत की आलोचना की थी. लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि वो अपने हित को देखते हुए ही फ़ैसला लेगा.
एक दिन पहले ही यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा ने अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू को दिए इंटरव्यू में कहा था कि रूस की ओर से भारत को मिल रहे कच्चे तेल के हर बैरल में यूक्रेनी ख़ून का एक अच्छा हिस्सा है. अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू से बातचीत में कुलेबा ने कहा कि उन्होंने यूक्रेन से भारतीय छात्रों को निकालने में मदद की थी. इंटरव्यू के दौरान कुलेबा ने कहा, हम कृषि उत्पादों ख़ासकर सनफ़्लावर ऑयल के प्रतिबद्ध सप्लायर्स और ट्रेडर हैं. हमें भारत से मज़बूत और व्यावहारिक सहयोग की उम्मीद थी.
जबकि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी ये बताया था कि यूक्रेन पर हमले के बाद लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल ख़रीदना क्यों जारी रखा है. थाइलैंड में भारतीय समुदाय से बातचीत के दौरान जयशंकर ने कहा था कि भारत में लोगों की आमदनी इतनी नहीं कि वे ऊँचे दामों में पेट्रोल-डीज़ल ख़रीद पाएँ. ऐसे में ये उनका नैतिक दायित्व है कि वे अपने लोगों को सबसे अच्छा सौदा दिलवाएँ.
-एजेंसी