आगरा: दुर्लभ प्रजाति के भालू को मिला दुनिया भर का समर्थन, 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा World Sloth Bear Day

Press Release

आगरा: स्लॉथ भालू मुख्य रूप से भारत में पाई जाने वाली एक अनोखी भालू की प्रजाति है। इस प्रजाति के कुछ भालु नेपाल में और एक उप-प्रजाति श्रीलंका में पाई जाती है, जिस कारण भारत इस प्रजाति के भालुओं का मुख्य गढ़ बन जाता है। अपने शावकों की रक्षा के लिए जंगली बाघ को रोकने में पर्याप्त आक्रामक इन स्लॉथ भालुओं पर दुनिया में सबसे कम रिसर्च हुआ है।

वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस इंडिया पिछले 25 से अधिक वर्षों से स्लॉथ भालुओं के संरक्षण में शामिल है, जिन्होंने आई.यू.सी.एन को प्रस्ताव दिया कि भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अद्वितीय भालू प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 12 अक्टूबर को “वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे” घोषित किया जाए। स्लॉथ बेयर आई.यू.सी.एन रेड लिस्ट में ‘वल्नरेबल’ के रूप में सूचीबद्ध है।

आई.यू.सी.एन – एस.एस.सी स्लॉथ बेयर एक्सपर्ट टीम ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 12 अक्टूबर को दुनिया भर में वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे मनाए जाने की घोषणा की।

वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे इस प्रजाति को समझने और दुनिया भर के संगठनों, संस्थानों, बचाव केंद्रों और चिड़ियाघरों के लिए स्लॉथ भालू और उनके आवास के संरक्षण को बढ़ावा देने और जन जागरूकता बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगा।

पहले वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे का उद्घाटन, वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस और आई.यू.सी.एन-एस.एस.सी स्लॉथ भालू विशेषज्ञ टीम 12 अक्टूबर 2022 को उत्तर प्रदेश के आगरा भालू संरक्षण केंद्र में करेंगे।

यह इस भालू की प्रजाति का दुनिया का सबसे बड़ा संरक्षण और पुनर्वास केंद्र है, जिसकी स्थापना 1999 में उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस द्वारा की गई थी।

स्लॉथ भालू दुनिया भर में पाई जाने वाली आठ भालू की प्रजातियों में से एक है। उन्हें लंबे, झबरा गहरे भूरे या काले बाल, छाती पर सफेद ‘वि’ की आकृति और चार इंच लंबे नाखून से पहचाना जा सकता है, जिनका उपयोग वह टीले से दीमक और चींटियों को बाहर निकालने के लिए करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में वे तटीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट और हिमालय बेस तक फैले हुए हैं।

आज, भारत पूरे विश्व की 90% स्लॉथ भालुओं की आबादी का घर है। कई रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन दशकों में मुख्य रूप से घटते जंगल, अवैध शिकार और मानव-भालू संघर्ष में वृद्धि के कारण उनकी आबादी में 40 से 50% की गिरावट आई है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में इस प्रजाति को अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जो इन्हें बाघ, गैंडे और हाथियों के समान सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि, यह प्रजाति लंबे समय से जीवित रहने के लिए एक कठिन लड़ाई लड़ रही है और तत्काल संरक्षण और सुरक्षा उपायों की हकदार है।

इन भालुओं को पहले, भारत में ‘डांसिंग बेयर’ प्रथा के तहत मनोरंजन के लिए पकड़ा जाता था। वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस पिछले 25 से अधिक वर्षों से स्लॉथ भालुओं के संरक्षण में सबसे आगे रहा है।

वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस ने 628 से अधिक नाच दिखाने वाले भालुओं को बचाया और उनका पुनर्वास किया है, जिससे यह 400 साल पुरानी अवैध और क्रूर परंपरा का अंत हुआ, इसी के साथ-साथ भालुओं को नचाने वाले कलंदर समुदाय के सदस्यों को वैकल्पिक आजीविका भी प्रदान की गई, महिलाओं को सशक्त बनाया गया और बच्चों को इसे आगे बढाने से रोकने के लिए शिक्षित किया गया।

स्लॉथ भालू को आई.यू.सी.एन रेड लिस्ट में ‘वल्नरेबल’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। उनका संरक्षण केवल इस तथ्य से बाधित है कि इन भालुओं के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। भारत के जंगलों में केवल 6,000 से 11,000 स्लॉथ भालू ही बचे हैं।

वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, “यह दिन दुनिया भर में लोगों के लिए इस कम-ज्ञात प्रजाति के बारे में जानने और स्लॉथ भालू के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लोग भारत में इन भालुओं के प्राकर्तिक आवास और उनकी सुरक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही संस्था और संगठनों के बारे में सीखकर उनके संरक्षण में मदद कर सकते है। हम वन विभाग और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के आभारी हैं, जिन्होंने दशकों से हमारे काम का निरंतर समर्थन किया है। ”

निशीथ धारिया और टी. शार्प, आई.यू.सी.एन स्लॉथ बियर विशेषज्ञ टीम के सह-अध्यक्ष ने कहा, “कई मायनों में, स्लॉथ भालू सभी भालू प्रजातियों में सबसे अद्वितीय हैं, माँ अपने बच्चों को 6-9 महीने तक अपनी पीठ पर लेकर घूमती है, उनका 50% आहार दीमक और चींटियों के रूप में होता है और वे एक बाघ का पछाड़ने तक की क्षमता रखते हैं।

दुर्भाग्य से, नष्ट होते जंगलों के साथ-साथ अवैध शिकार के कारण इनकी संख्या कम होती जा रही हैं। वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे वास्तव में इस प्रजाति की सुरक्षा को बढ़ावा देने में एक सहायक पहल साबित होगा l ”

वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव गीता शेषमणि ने कहा, “स्लॉथ भालू लगभग 2 मिलियन वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप में बसे हुए हैं। उन पर दुनिया में सबसे कम रिसर्च की गई हैं और इस अनोखी भालू प्रजाति के बारे में जानने के लिए अभी बहुत सारे रहस्य हैं। हमें उम्मीद है कि हर साल 12 अक्टूबर दुनिया भर में भालू के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के दिन के रूप में मनाया जाएगा