Agra News: बेटी की सुपुर्दगी के लिए यशोदा मां पहुंची हाईकोर्ट, हाईकोर्ट ने तलब की रिपोर्ट

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23 नवंबर को दस शीर्ष केसों में होगी सुनवाई

15 माह से बाल गृह में निरुद्ध है बालिका

आगरा: 15 माह से बाल गृह में निरुद्ध बालिका की सुपुर्दगी की के लिए पालनहार मां ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई है। जिसका संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने प्रशासन से रिपोर्ट तलब की है। कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि बाल कल्याण समिति द्वारा बाल हित में फैसला नहीं लिया गया है। नोटिस से प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। सोमवार दिनभर बाल कल्याण समिति में अफरातफरी का माहौल रहा। बालिका की फाइल की हर पत्रावली को बारीकी देखकर जबाव तैयार किया जा रहा है। बुधवार को दस शीर्ष केसों में मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई की जाएगी। इस प्रकरण में हाईकोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है।

ये है मामला

नौ साल पहले किन्नर को एक बालिका लावारिस हालत में मिली थी जिसे उसने टेढ़ी बगिया निवासी यशोदा (परिवर्तित नाम) को सौंप दिया था। यशोदा ने उसका इलाज कराया और पालन पोषण किया। सात साल बाद किन्नर की नीयत खराब होने पर वह उसका अपहरण कर ले गया। जिसे पुलिस और चाइल्ड लाइन ने फर्रुखाबाद से मुक्त कराया। बाल कल्याण समिति आगरा ने फिट पर्सन घोषित कर बच्ची को पालन पोषण के लिए दे दिया लेकिन आठ माह बाद बच्ची को दोबारा बाल गृह में निरुद्ध कर दिया गया। बाल कल्याण समिति ने पालनहार की आमदनी स्थाई न होने का कारण बताकर बच्ची को सुपुर्दगी में देने से मना कर दिया।

मां के रूप में पहचानी पालनहार

हाई कोर्ट ने अपने पत्र में कहा है कि बालिका को फर्रुखाबाद से पुलिस और चाइल्ड लाइन ने रेस्क्यू कराया था तब बाल कल्याण समिति फर्रुखाबाद की काउंसलिंग में बालिका ने यशोदा को मां के रूप में पहचाना था तथा उसके साथ जाने की इच्छा जाहिर की थी। जिसके आधार पर बालिका को यशोदा सुपुर्दगी में दिया गया। सात साल तक बालिका यशोदा के पास रही है। इस बीच किसी भी जैविक माता पिता ने बच्ची के लिए दावा नहीं दिया है।

बाल आयोग के पत्र भी रद्दी में फेंके

चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस ने यह मामला बाल आयोग के समक्ष उठाया था जिसका संज्ञान लेकर आयोग की सदस्य डॉक्टर सुचिता चतुर्वेदी ने पत्र जारी कर बालिका को फाॅस्टर केयर में देने को कहा था लेकिन उनके पत्र को रद्दी में फेंक दिया। पालनहार मां अधिकारियों के चक्कर काटती रही। जिला मुख्यालय पर धरना भी दिया था लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा। यहां तक कि बेटी से मिलने पर भी पाबंदी लगा दी। अब बच्ची से मिलने भी नहीं दिया जाता है। जब कहीं से सुनवाई नहीं हुई तो अंत में यशोदा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसे उम्मीद है कि उसे हाईकोर्ट से न्याय जरूर मिलेगा।

बालहित होना चाहिए सर्वोपरि

चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस ने कहा कि बालिका ने अपनी हर काउंसलिंग में यशोदा को अपनी मां बताया है तथा उसके साथ जाने की इच्छा जाहिर की है। उसके सभी दस्तावेजों आधार कार्ड जन्म प्रमाण पत्र तथा स्कूल में माता-पिता के नाम दर्ज हैं। बालिका परिवार में सात साल तक रही है सभी का आपस में भावनात्मक लगाव है। बालहित को सर्वोपरि मानते हुए फैसला लेना चाहिए था।