आगरा। रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। इसलिए उसके पुतले का दहन किया जाता है लेकिन आगरा में एक ऐसी भी समाज है जो रावण को पूजता है। इस समाज के लोगों ने समाज से अपील की है कि वह दशानन के आदर्शों को आत्मसात कर अपने मन के अंदर छिपे अंधकार और लोभ, लालच रूपी रावण को मारें। प्रकांड पंडित और परम शिव भक्त का दहन ना करें। इसके लिए उन्होंने मंचन भी किया और शिव स्तुति भी की।
लंकापति दशानन महाराज पूजा समिति और सारस्वत समाज द्वारा विजयदशमी पर्व के अवसर पर शिव तांडव स्त्रोत का पाठ किया गया। समिति के पदाधिकारी ने बताया कि भगवान विष्णु की हर लीला पूर्व विदित होती थी। लोगों में संदेश देने के लिए राम लीला का इस धरा पर मंचन हुआ। जब भगवान राम ने सारस्वत ब्राह्मण रावण को महाज्ञानी बताते हुए लक्ष्मण को उन्हें गुरु बना कर ज्ञान लेने के लिए भेजा और महप्रतापी रावण ने माता सीता को इतने दिन लंका में रखने के बाद भी कभी उनके चरणों से ऊपर नजर नहीं उठाई। उन्होंने सीता माता का हरण अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए भाई का धर्म निभाने के लिए किया था।
उन्होंने बताया कि रावण ऐसे महान ज्ञानी थे जिन्होंने खुद का नाम तो अमर किया ही साथ ही अपने एक लाख पुत्रों और सवा लाख नातियों को साक्षात विष्णु भगवान विष्णु, शेषनाग और रुद्रावतार बजरंगबली समेत तमाम देवों और राम की सेना बनी संत आत्माओं के हाथों बैकुंठ सागर पार करवा दिया। ऐसे महाप्रतापी की पूजा होनी चाहिए और उनके जीवन से सीख लेनी चाहिए। पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने और एक महान ब्राह्मण का अपमान करने से बचने के लिए रावण दहन का बहिष्कार करना चाहिए।
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