आगरा। वेलेंटाइन वीक के दौरान आरबीएस कॉलेज से सत्र 1993- 94 में हिंदी स्नातकोत्तर करने वाले 32 साल पुराने मित्र जब पुष्पांजलि गार्डेनिया में मिले तो सभी सभी दोस्तों के चेहरे खिल गए। दिल से दिल मिल गए। यादें ताज़ा हो गईं।
हँसी-ठहाकों संग प्रवीन अग्रवाल द्वारा सजाई गई गीत- संगीत की महफ़िल में नृत्य, कविता, भजनों व लोक गीतों ने समाँ बांध दिया। तंबोला संग पवन गोलस की चॉकलेट्स और सुरेंद्र सिंह के उपहारों ने चार चाँद लगा दिए।
‘यारा तेरी यारी को मैंने तो खुदा माना, याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना’ और ‘क्या हुआ तेरा वादा, वो कसम वो इरादा’ जैसे फिल्मी नगमों पर सभी स्वर में स्वर मिलाकर झूमते, गाते, थिरकते रहे।
काऊ दिन उठ गयौ मेरौ हाथ..
गुरुवर व मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित आरबीएस कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डॉ. सुषमा सिंह के इस लोकगीत में जब शोभा सरकार ने स्वर मिलाया तो सब लोटपोट हो गए- “बेलन मारूंगी, बलम तोय चिमटा मारूंगी। काऊ दिन उठ गयौ मेरौ हाथ, बलम तोय ऐसौ मारुंगी। डंडा मारूंगी, फुकनी मारुंगी, थप्पड़ मारूंगी। जो तेरी सासू बोल पड़ी, वाके लहंगा ऐ फाड़ुंगी..”
शोभा सरकार के ‘सैंया मिले लड़कइयाँ, मैं का करूँ..’ और ‘अब उठो सिया! सिंगार करो! शिवधनुष राम ने तोड़ा है..’ जैसे लोक गीतों ने भी सबको मगन कर दिया। अल्पना शर्मा के घूमर नृत्य ने सबको मंत्र मुग्ध कर दिया।
आदमी मुसाफ़िर है..
‘आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है, आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है..’ और ‘जीने के लिए सोचा ही नहीं, दर्द सँभालने होंगे’ गीतों में चंद्रमणि जग्गी का सारा दर्द उतर आया तो वहीं ‘न जाने क्यों होता है ये ज़िंदगी के साथ, अचानक ये मन किसी के जाने के बाद, करे उसकी याद’ गीत गाकर निहारिका शर्मा ने सबको बीती यादों के गलियारे में छोड़ दिया। वहीं अल्पना शर्मा ने ‘लंबी जुदाई.. चार दिनाँ दा..’ गाकर सबको भावुक कर दिया। ‘मेरे ख्वाबों की तस्वीर है तू, बेखबर मेरी तकदीर है तू, तू हाँ कर या ना कर, तू है मेरी किरण’ गीत गाकर प्रवीन अग्रवाल ने भी अपना दिल का हाल खोल कर रख दिया।
कार्यक्रम का संयोजन पवन गोलस और संचालन कुमार ललित ने किया। सुषमा कुंडौलिया, अर्चना वर्मा, सुरेंद्र सिंह व पूर्णा बिटिया ने सबका उत्साह बढ़ाया।
चलो इक सफ़र पर चलते हैं..
समारोह में बही काव्य-धारा ने सबको भाव-विभोर कर दिया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह की ये पंक्तियाँ दिल छू गईं- ” तुम्हारी हँसी के फूल महका देते हैं मेरी हँसी की चाँदनी। तुम्हारी पेशानी की लकीरें उभर आती हैं मेरे दिल के कागज पर..”
उप्र हिंदी संस्थान से सम्मानित कवि कुमार ललित का यह गीत सीधे दिल में उतर गया- ” प्रिय! तुम्हारे दर्शनों को हम तरसते रह गए। तुम कहाँ जाने, कहाँ जाने बरसते रह गए..”
अल्पना शर्मा की ज़िंदगी के इस दर्शन ने सबका दिल चुरा लिया- ” चलो एक सफ़र पर चलते हैं। यूँ ही साथ में अपने निकलते हैं। मंज़िल नहीं करते तय कि कहाँ है जाना। बस अपने लिए जिएँ कुछ पल, ख़ुद को है पाना..”।
शोभा सरकार ने भी सबकी वाह वाही लूटी- ” वह पहली नज़र तुम्हारी क्या बात कर गई। आँखों में शरारत, होठों की हँसी कमाल कर गई..।