आगरा छावनी परिषद ने हाईकोर्ट के आदेश को उड़ाया हवा में, झूठा हलफनामा देने का आरोप

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आगरा का छावनी परिषद पूरी तरह से तानाशाह हो गया है। हाई कोर्ट के आदेश को भी छावनी परिषद नहीं मानता है। ऐसा लगता है कि हाईकोर्ट से ऊपर आगरा का छावनी परिषद हो गया है। इसीलिए तो हाई कोर्ट से मृतक आश्रित को नौकरी देने के लिए आए आदेश की छावनी परिषद ने अवहेलना कर दी। आलम यह है कि मृतक आश्रित की नौकरी पाने के लिए कई लोग अपना जीवन तो युवा अपनी आधी जवानी गंवा चुके हैं।

ऐसा ही मामला एक परिवार से जुड़ा सामने आया है। इस पीड़ित परिवार का बेटा अपने पिता की मृतक आश्रित की नौकरी पाने के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहा है। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के चक्कर काटते-काटते 28 साल की उम्र अब 48 साल तक हो चली है लेकिन छावनी परिषद के एक अधिकारी के कानों पर जू नहीं रह गई। पीड़ित ने कानून का सहारा दिया। हाई कोर्ट ने भी मृतक आश्रित परिवार के पक्ष में और नौकरी देने के आदेश किये लेकिन छावनी परिषद के अधिकारियों ने उस आदेश की भी अवहेलना कर दी। उस आदेश को लेकर परिषद ने अपना एक ऐसा पक्ष रखा जिसे जानकर आप भी दंग रह जाएंगे।

ताजा मामला सदर क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। नारायण सिंह छावनी परिषद में माली थे। काम करते करते उनकी मृत्यु हो गई और मृत्यु के बाद उनकी पत्नी अपने बेटे को मृतक आश्रित में नौकरी दिलाने के लिए अधिकारियों के चक्कर काटती रही लेकिन छावनी परिषद के अधिकारियों ने उनकी एक नहीं सुनी। अपने बेटे को पिता की नौकरी करता देखने की आस में नारायण देवी की पत्नी भी चल बसी। आलम यह था कि परिवार पर कहर टूट गया। पति की जो पेंशन मिलती थी पत्नी के गुजर जाने के बाद वह भी बंद हो गई। नारायण सिंह के बेटे दिलीप को नौकरी मिल सके इसके लिए उनकी पत्नी ने फिर से प्रयास शुरू किए लेकिन अधिकारियों ने कोई सुनवाई नहीं की। दिलीप की पत्नी ने कानूनी लड़ाई शुरू की। कई सालों तक हाई कोर्ट में केस चला और हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया और परिषद को निर्देश दिए कि उन्हें नौकरी दी जाए लेकिन इस हाईकोर्ट के आदेश को भी छावनी परिषद ने नहीं माना

दिलीप की पत्नी बताती है कि छावनी परिषद मृतक आश्रित में नौकरी देना नहीं चाहता, इसलिए तो उसने हाईकोर्ट में एक झूठा हलफनामा कर कर दिया कि मृतक आश्रित परिवार से हमारा समझौता हो गया है। हमने उन्हें नौकरी दे दी है। इस पर कोर्ट की कार्रवाई भी रुक गई लेकिन नौकरी के लिए चक्कर काट रहे परिवार को जब पता चला कि छावनी परिषद की ओर से झूठा हलफनामा दायर किया गया है तो उन्होंने कानूनी प्रक्रिया को फिर आगे बढ़ाया। कंटेंप ऑफ कोर्ट का मुकदमा फिर दर्ज कराया।

परिवार की आर्थिक स्थिति हुई खराब

दिलीप की पत्नी बताती है कि अब तो आर्थिक स्थिति भी दिन प्रतिदिन खराब होती चली जा रही है। पति मजदूरी करते हैं लेकिन समय बीतने के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी खराब होता चला जा रहा है। उनकी उम्र भी अब 48 से 50 के आसपास हो चुकी है लेकिन छावनी परिषद उनकी यह पीड़ा भी दिखाई नही देती है। पीड़ित परिवार कहता है कभी कभी तो ऐसा लगता है कि छावनी परिषद की इस तानाशाही के चलते अब उन्हें कोई आत्मघाती कदम उठा लेना चाहिए।

Compiled: up18 News