आत्मा की बीमारी का इलाज करने वाला एक नायाब वैद्य…

Cover Story

बाहर सर्दी थी लेकिन मैं सिर्फ़ बाथ सूट पहनकर एक पवित्र नदी के किनारे कंगारू की खाल पर लेटी थी. वहां पुदीने की पत्तियां सुलग रही थीं.

वूराबुप हज़ारों साल से समारोह की भूमि रही है. यह नदी पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की राजधानी पर्थ से दक्षिण-पूर्व में 360 किलोमीटर दूर छोटे शहर डेनमार्क के पास है.
इसे स्थानीय नूंगार लोगों ने अपना नाम दिया था जो मानते थे कि यह नदी सृष्टि की शुरुआत में वैजाइल नाम के विशाल सांप ने बनाई थी.

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के इस दक्षिणी तटीय इलाक़े में ज़्यादातर लोग अंगूर के बागों, स्वादिष्ट उत्पादों और शानदार समुद्र तटों पर छुट्टी बिताने के लिए आते हैं.
लेकिन मैं वहां एक स्थानीय उपचारक (वैद्य) जोए विलियम्स की मदद से अपने मन को फिर से संतुलित करने के लिए पहुंची थी.

आत्मा का प्रकृति से रिश्ता

ऑस्ट्रेलिया के देसी आदिवासी लोगों की संस्कृति धरती पर सबसे पुरानी जीवित संस्कृति है. क़रीब 60 हज़ार साल से प्रकृति की गहरी समझ ने उनके अस्तित्व को बचाए रखा है.

सभी सजीव और निर्जीव चीज़ों से स्वस्थ संतुलित रिश्ते ने उनके शारीरिक, आध्यात्मिक, मानसिक और भावनात्मक हितों की रक्षा की है.

उनके समुदाय के केंद्र में थे पारंपरिक उपचारक (वैद्य). जब तक आदिवासी संस्कृति जीवित रही उनको सम्मान मिलता रहा. उन पर लोगों का विश्वास रहा, लेकिन आज उनके बारे में बहुत कम जानकारी है.

बचे हुए उपचारकों में से एक हैं विलियम्स. उनको आदिवासी संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी है और कुछ लोग मानते हैं कि उनके पास अलौकिक क्षमता है.
वे जड़ी-बूटियों, धुएं और आत्मा की शुद्धि से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक बीमारियों का इलाज करते हैं.

आत्मा का संतुलन सुधारकर वह अवसाद का इलाज करते हैं. देसी ऑस्ट्रेलियाई इसे “आत्मा की बीमारी” कहते हैं.

30 करोड़ लोग अवसाद के शिकार

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में अवसाद से पीड़ित लोगों की तादाद 30 करोड़ से ज़्यादा थी. 2005 से इसमें 18.4 फ़ीसदी से ज़्यादा की बढ़ोत्तरी हुई थी.

हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई मेडिकल एसोसिएशन ने कुछ प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों के साथ कहा कि जलवायु परिवर्तन एक “स्वास्थ्य आपातकाल” है जो अन्य स्वास्थ्य संबंधी मसलों के साथ मानसिक बीमारियों को बढ़ाएगा.

आधुनिक रहन-सहन मानसिक सेहत और धरती दोनों के लिए ख़तरा है. ख़ुद अवसाद से जूझते हुए मैं यही सोच रही थी कि क्या दुनिया की सबसे पुरानी ज़िंदा संस्कृति के पास इसका हल हो सकता है.

विलियम्स नूंगार आदिवासी समुदाय के हैं. उपचारक का उनका ज्ञान पिछली पीढ़ियों की विरासत है.
विलियम्स और उनकी तरह के दूसरे उपचारकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है धरती के साथ जुड़ाव.

पवित्र धरती से चिकित्सा की शुरुआत

हमने अवसाद के इलाज की शुरुआत स्टर्लिंग रेंज नेशनल पार्क में कोरेंग आदिवासियों की परंपरागत धरती पर एक पवित्र जगह से की, जो वूराबुप के उत्तर में क़रीब 90 मिनट की दूरी पर है. विलियम्स मूल रूप से इसी कोरेंग आदिवासी समुदाय के हैं.

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की दक्षिणी पर्वत श्रृंखला असाधारण सुंदरता से भरी है. यह राज्य की उन चुनिंदा जगहों में से एक है जहां बर्फ़ पड़ती है और बसंत में चटख रंग के फूल खिलते हैं.

यहां 1,500 प्रजातियों का घर है, जिनमें से कई प्रजातियों और कहीं नहीं मिलतीं. वनस्पतियों के लिए यह दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है.
इनमें से कई पौधों में औषधीय गुण होते है. विलियम्स ने अपना बचपन परिवार के साथ यहीं बिताया है. वह इस क्षेत्र को अपना “सुपरमार्केट” या “औषधालय” बताते हैं.
विलियम्स ने मुझे दिखाया कि ब्लडरूट (दांत के दर्द की दवा) कैसे निकालते हैं और मर्री के पेड़ की टहनियों से राल कैसे इकट्ठा करते हैं.

यह राल खुले घाव को ठीक करती है और विलियम्स बताते हैं कि उससे पेट दर्द में भी आराम मिलता है.
हम चलते रहे और विलियम्स बताते रहे कि आदिवासियों के लिए यह ज़मीन ज़िंदा है. उसकी सतह पर जगह-जगह सॉन्गलाइन्स बने हुए हैं.

सांस्कृतिक स्मृति कोड

सॉन्गलाइन्स ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के सांस्कृतिक स्मृति कोड होते हैं, जिनमें किसी जगह के बारे में जानकारियां दर्ज होती हैं. उनसे परिवार और पुरखों से मिले ज्ञान का भी पता चलता है.

हम जहां खड़े थे वहां से जुड़ी ख़ास सॉन्गलाइन को गाकर विलियम्स ने उस जगह को मेरे लिए पढ़ा. उन्होंने चोटियों को चैप्टर की तरह बताया. “वहां बुल्ला मीले है, आंखों की पहाड़ी.”

दक्षिणी पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की सबसे ऊंची चोटी को आम तौर पर ब्लफ नॉल के नाम से जाना जाता है. कोरेंग लोग मानते हैं कि मरने के बाद वे वहीं चले जाते हैं.

“हमारे ठीक सामने है टल्यूबलप. उसका चेहरा देखिए, उसकी छाती और पेट देखिए.”
विलियम्स ने हवा में रेखाकृति बनाते हुए कहा, “एक ख़ूबसूरत महिला सो रही है. वह इस श्रृंखला की रक्षक है.

ज़मीन से जुड़े होने का प्रदर्शन

कार में वापस आकर हम विकेलनप की ओर चल दिए. यह एक अर्ध-शुष्क खारी झील है जो कोरेंग लोगों के लिए “शक्ति भूमि” है. यहां वे हज़ारों सालों से मृतकों के अंतिम संस्कार कर रहे हैं.

विकेलनप का अर्थ है कई रंगों की झील. इसके बगल में गेरू रंग के गड्ढे हैं. यहां की मिट्टी पीली और गहरे लाल रंग के अलावा कई रंगों के पिगमेंट बनाती है.
ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी समारोहों के दौरान उस मिट्टी को अपने शरीर पर लगाते हैं और ज़मीन से जुड़े होने का प्रदर्शन करते हैं.

विकेलनप में प्रवेश करते हुए विलियम्स ने क्लैप स्टिक का प्रयोग किया और जिसे वह बचाव गीत कहते हैं.
इससे वह धरती पर अपने क़दमों की सुरक्षा और आशीर्वाद के लिए अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं.
हमने मिट्टी से बना एक बिस्तर देखा जो ऐसा लगता था मानो वहां आसमान से लाल और पीले पेंट का बड़ा डिब्बा गिरा दिया गया हो.

विलियम्स मुझे एक ज्वालामुखीय चट्टान के पास ले गए जिसे वह गेरू मिट्टी को पीसने के लिए प्लेटफॉर्म की तरह इस्तेमाल करते हैं.

उन्होंने खड़े होकर आंखें बंद कीं और अपने परिवार का सॉन्गलाइन गाया. फिर उन्होंने पत्थर पर गेरू मिट्टी को मिलाया और मेरे चेहरे पर फैला दिया.

पानी में उठती तरंगों का निशान

“यह आपका चिह्न है, इस धरती से आपका संबंध. भले ही आप बाद में इसे धो लें लेकिन मुझे पता है कि ये वहां है और ये आपको भी पता होगा.”

अपनी बांह पर निशान देखते हुए मैंने पूछा कि उन्होंने ऐसा निशान क्यों चुना जो पानी में लहर की तरह दिखता है.

“मैंने नहीं चुना. इसे आपने अपने दिमाग़ में चुना.” मेरी उलझन को समझकर विलियम्स ने बताया “मुझे केवल आधे घंटे के लिए आपको सुनना है और फिर मैं आपको जान लेता हूं.”

क्या उपचारक वास्तव में अलौकिक क्षमता रखते हैं? ऐसा लगता है कि यह एक कौशल है जिसे आदिवासी लोगों ने हज़ारों सालों में हासिल किया. उन्होंने सुनने का उन्नत तरीक़ा ढूंढ़ा है.

ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र की एक आदिवासी कार्यकर्ता, शिक्षक और कलाकार मिरियम-रोज़ अंगुनमेर-बाउमन का मानना है कि “डैडिरी ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों का उपहार है जिसके लिए दुनिया प्यासी है.”
डैडिरी का मतलब है अंतर्मन को गहराई से सुनना और शांत रहते हुए जागरूक रहना.

अंगुनमेर-बाउमन के मुताबिक़ डैडिरी एक तरह का माइंडफुलनेस और पारस्परिक समानुभूति है जो हम ज़मीन के साथ और आपस में एक-दूसरे के साथ विकसित कर सकते हैं.
उन्होंने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, “हम इसे बुलाते हैं और वह हमें बुलाती है. यह कुछ ऐसा है जिसे आप चिंतन कह सकते हैं.”

आध्यात्मिक ध्वनियों को सुनने का यह अभ्यास ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों को प्राकृतिक मौसमों और चक्रों के अनुसार चलने का तरीक़ा प्रदान करता है, जिसे आधुनिक दुनिया भूल गई है.

वो कहती हैं, “हम पौधों में लगे फल देखते हैं और तोड़ने से पहले उनके पकने का इंतज़ार करते हैं. जब कोई अपना मरता है तो हम दुख के साथ लंबे समय तक इंतज़ार करते हैं. वह दुख धीरे-धीरे कम होता है.”

आदिवासियों का ज्ञान और उनकी संस्कृति का बड़ा हिस्सा पहले ही नष्ट हो चुका है. अंगुनमेर-बाउमन की तरह कुछ लोग बची हुई संस्कृति को संरक्षित करने में लगे हैं. यह आसान काम नहीं है.

उपनिवेश काल का इतिहास

1788 में जब ब्रिटेन के लोगों को लेकर पहला बेड़ा ऑस्ट्रेलिया पहुंचा था तब यहां की मूल आबादी करीब 7,50,000 थी.

दस साल बाद नई बीमारियों और यूरोप से आए लोगो के साथ हिंसक संघर्ष की वजह से 90 फ़ीसदी लोग मारे गए. आज ऑस्ट्रेलिया की आबादी में वे सिर्फ़ 3.3 फ़ीसदी हैं.

परिवारों को जबरन अलग करने और आदिवासियों को उनकी परंपरागत ज़मीन और परंपराओं से दूर कर देने की वजह से सांस्कृतिक ज्ञान अगली पीढ़ियों तक नहीं पहुंच पाया.

रोम की मानवाधिकार शिक्षाविद् डॉक्टर फ्रांसेस्का पैंजिरोनी ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों के पारंपरिक चिकित्सा सिद्धांतों, प्रथाओं और दवाइयों को व्यापक पहचान दिलाने में लगी हुई हैं.

वह ऑस्ट्रेलिया के पारंपरिक चिकित्सकों के पहले संगठन ANTAC की सीईओ हैं. पैंजिरोनी ने ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय रेगिस्तान क्षेत्र के उपचारकों के साथ मिलकर 2012 में इसका गठन किया था.

वो कहती हैं, “मूल निवासियों के लिए यह संस्कृति से जुड़ने और चिकित्सा तकनीक तक पहुंच के बारे में है जो पश्चिमी चिकित्सा से अलग है.”

“पश्चिमी चिकित्सा शरीर को मशीनी नज़रिये से देखती है जबकि पारंपरिक उपचारक मानते हैं कि सभी में एक आत्मा होती है जो शरीर और भावनाओं से जुड़ी होती है.”

ऑस्ट्रेलिया में पारंपरिक आदिवासी चिकित्सा को वैकल्पिक चिकित्सा की मान्यता नहीं दी गई है. लेकिन दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के मेंटल हेल्थ एक्ट 2009 के ज़रिये नांगकरी उपचारकों को मान्यता दी गई है.

कुछ सरकारी अस्पतालों में ANTAC के उपचारक पश्चिमी डॉक्टरों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करते हैं.

पूरक चिकित्सा

वे ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों को पूरक चिकित्सा देते हैं. पैंजिरोनी का कहना है कि ग़ैर-आदिवासी लोग भी अब इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जो मुख्यधारा के मॉडल से असंतुष्ट हैं और विकल्प की तलाश कर रहे हैं.

“एक महिला ने 6 महीने तक नियमित पांपुनी (मालिश तकनीक) के बाद अपने डॉक्टर की सलाह से अवसाद घटाने वाली दवाइयों का सेवन कम कर दिया. उस महिला और डॉक्टर दोनों ने उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार देखा था.”

फिलहाल ANTAC के पास एक मोबाइल क्लीनिक है जिससे नांगकरी उपचारक ऑस्ट्रेलिया के उन इलाक़ों में जा सकते हैं जहां उनकी सेवाओं की पहुंच नहीं है.

पैंज़िरोनी चाहती हैं जिस तरह दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के अस्पतालों में उनके प्रोग्राम चल रहे हैं वैसा पूरे देश में हो.
“हमारा लक्ष्य है पारंपरिक चिकित्सा को वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में मान्यता दिलाना और मेडिकेयर (ऑस्ट्रेलिया का यूनिवर्सल हेल्थ केयर सिस्टम) के ज़रिये सबके लिए उपचारकों की सेवाएं मुहैया कराना.”

कूराबुप में विलियम्स मेरे इलाज के अंतिम चरण की तैयारी कर रहे थे. परिवेश की शुद्धि और बुरी आत्माओं से रक्षा के लिए उन्होंने पहले धुआं किया.

हम सब कंपन से बने हैं”

उन्होंने मेरी नाभि पर एक छोटा सा पत्थर रखा और मुझसे कंपन या आत्मा को अंदर समेटने को कहा.
विलियम्स कहते हैं, “हम सब कंपन से बने हैं. जन्म के समय यह नाभिनाल से जुड़ा होता है. यह हमारे होने का सार है.”

पानी की तरंगों से उपचार के दौरान उन्होंने बताया कि पत्थर को नदी में रख देने पर मैं अपनी आत्मा की आवाज़ अच्छे से सुन पाऊंगी.
“ज़्यादा कंपन का मतलब है बेचैनी. कम कंपनी का अर्थ है अवसाद. मैं आपके कंपन को पीठ के रास्ते निकालकर इसे संतुलित करूंगा.”

मुझे पता था कि पानी ठंडा होगा, फिर भी नदी में घुसते समय मुझे करंट लगा. विलियम्स ने सहारा देकर मुझे पानी में पीठ के बल लिटा दिया.

मैंने शरीर को ढीला छोड़कर पत्थर के साथ अपने “कंपन” को सुनने की कोशिश की. वह पत्थर मेरी पीठ से लगा हुआ था. लेकिन मेरा थरथराता हुआ शरीर साथ नहीं दे रहा था.
बर्फीला पानी मेर तकलीफ़ बढ़ा रहा था और मैं कोई समर्थन महसूस नहीं कर रही थी.
एक डर मुझ पर हावी हो गया कि मैं डूब सकती हूं. लेकिन तभी मैंने एक शक्ति महसूस की जो मुझे नीचे से ऊपर खींच रही थी.
मुझे अहसास हुआ कि सिर्फ़ विलियम्स मुझे सहारा नहीं दे रहे थे, बल्कि नदी भी सहारा दे रही थी.

प्रकृति को सुनने की कोशिश

विलियम्स जैसा कह रहे थे मैं वैसा ही कर रही थी. मैंने सिर को नीचे खींच लिया और सूरज के किरणों की गर्मी पर ध्यान केंद्रित करने लगी.

मुझे अंगुनमेर-बाउमन की लिखी एक बात याद आ गई. “नदी में हम जल्दबाज़ी नहीं कर सकते. हमें नदी की धारा के साथ बहना होता है और उसके रास्तों को समझना पड़ता है.”

कुछ ही क्षण बाद मेरे कानों में तेज़ आवाज़ आने लगी जैसे दूर कहीं पावर बोट की मोटर चल रही हो. मुझे यकीन नहीं हो रहा था.

यह आवाज़ तेज़ होती जा रही थी और मेरे भीतर गूंज रही थी. जैसा कि विलियम्स ने मुझे बताया था कि यह मेरी बेचेनी थी. मैंने सांस ली और फिर लेट गई.
मेरे अपने अनुभव से अवसाद से निकलना ठंडी नदी से निकलने की तरह ही रहा. रंग और ध्वनियां अब पहले से अधिक स्पष्ट महसूस होने लगीं.

मानसिक बीमारी का भले ही कोई जादुई इलाज न हो, फिर भी ऐसा लगता है कि हमारे शारीरिक और भावनात्मक अस्तित्व के लिए जागरुकता बढ़ाने और धरती के साथ संबंध विकसित करने के बारे में हमें सिखाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों के पास बहुत कुछ है, यदि हमारे पास उनको सुनने के लिए समय हो तो.

अंगुनमेर-बाउमन ने मुझसे कहा था, “आपको यह पूछने की ज़रूरत है कि आप कौन हैं, आप यहां क्यों हैं और आपको कहां जाना है.”

“हमें पता है कि हम आदिवासी लोग कौन हैं. यह हमारी भाषा में, सपने में और देश में है. हमें इंतज़ार है कि सभी लोग इसे सुनें जो हम सुनते हैं ताकि हम एक-दूसरे से जुड़ सकें.”

-BBC