शिवसेना में चल रहे आपसी घमासान के बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उद्धव ठाकरे गुट को तात्कालिक राहत दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से एकनाथ शिंदे गुट की याचिकाओं पर अभी कोई फैसला नहीं करने को कहा है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई की। उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से जहां वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें दीं तो वहीं शिंदे गुट की तरफ से वकील हरीश साल्वे कोर्ट में पेश हुए।
पीठ ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह तब तक शिंदे खेमे द्वारा दायर याचिकाओं पर त्वरित कार्रवाई न करे। न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, “हम अगली सुनवाई में तय करेंगे कि मामले को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं।” अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 अगस्त की तारीख तय की है।
सुनवाई के दौरान हरीश साल्वे ने अदालत को बताया कि इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि इन लोगों ने पार्टी छोड़ दी है। वहीं कपिल सिब्बल ने अदालत से कहा कि इसे बड़ी बेंच के पास भेजने की आवश्यकता नहीं है। सीजेआई ने कहा कि यह राजनीतिक दल से जुड़ा मामला है, क्या हम उन्हें (चुनाव आयोग को) रोक सकते हैं?
सिब्बल ने कहा कि वे (बागी) सदन के मेंबर ही नहीं हैं, मेरे अनुसार वे अयोग्य हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मान लीजिए कि दो ग्रुप हैं, जो दावा करते हैं कि वही असली हैं। क्या वे खुद के राजनीतिक दल होने का दावा नहीं कर सकते? सिब्बल ने कहा कि उनके पास 50 में से 40 विधायकों का समर्थन है। इसी आधार पर वे राजनीतिक दल होने का दावा कर रहे हैं। अगर उनके साथ के 40 विधायक अयोग्य हैं, तो उनके दावे का आधार क्या है?
सिब्बल की दलील
कपिल सिब्बल ने कहा कि शिंदे खेमे के नेताओं ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन किया है। इस हिसाब से वे 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्य हैं। सिब्बल ने कहा कि शिंदे गुट खुद को मूल शिवसेना बताया है, लेकिन ऐसा कैसे संभव हो सकता है। इसकी इजाजत 10वीं अनुसूची नहीं देती। 10वीं अनुसूची बहुमत के संदर्भ में मान्यता नहीं देती है।
उन्होंने कहा कि देखा जाए तो अगर शिंदे गुट अयोग्य है तो फिर वह चुनाव आयोग के सामने खुद की मान्यता के लिए अपील नहीं कर सकता है। बागी विधायक अगर अयोग्य ठहराए जाते हैं तो फिर उनके द्वारा चुने गये स्पीकर का चुनाव अवैध है, उनका सीएम होना भी अवैध है। बता दें कि यह मामला मूल रूप से ठाकरे ग्रुट द्वारा विश्वास मत के लिए राज्यपाल के आदेशों के खिलाफ चुनौती से उपजा है।
वहीं चुनाव आयोग की तरफ से वरिष्ठ वकील अरविंद दातार पेश हुए। उन्होंने कहा कि विधायकों की अयोग्यता एक मामला अलग है। चुनाव आयोग अपने पास उपलब्ध कराए गए तथ्यों के आधार पर पार्टी के चुनाव चिन्ह पर फैसला लेता है। चुनाव चिन्ह का दावा करते हुए अगर कोई आवेदन चुनाव आयोग के पास आता है, तो उस पर विचार कर फैसला लेना आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है।
-एजेंसी
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