आगरा: कभी-कभी जिंदगी में देखा है कि यदि हमने किसी व्यक्ति से संपर्क किया है यदि वह हमारे अनुकूल नहीं है तो जीवन बिना किसी कारण परेशानी में प्रवेश कर जाता है। जब सारे अनुकूल वातावरण जब हमें प्राप्त होते हैं तो इसके पीछे हमारे पूर्व के जन्मों के कर्मों का फल होते हैं। इस आशय के उद्गार जैन मुनि डॉ. मणिभद्र ने मंगलवार को महावीर भवन जैन स्थानक में श्रावकों के समक्ष व्यक्त दिये।
जैन मुनि ने कहा कि आज कहीं न कहीं इस बात से यह कारण बन जाता है कि हमारे जीवन में समृद्धि है लेकिन संतान नहीं है। संतान है तो संतान में कहीं न कहीं कोई कमी है, जिसकी जिंदगी भर हमें वह कमी पूरी करनी पड़ती है। हम सब की यही इच्छा होती है कि यदि हमने संतान को पैदा किया है तो बुढ़ापे में वह लाठी के रूप में काम आये यहीं हमारा भाव होता है। इसलिये सेवा करनी पड़ती है।
आज हमारे पास अकूत संपदा है सब कुछ है लेकिन हमारे जीवन में संयम न हो तो उसके अभाव में झूठ बोलना पड़ता है। संसार का सबसे बड़ा सुख क्या है ? क्या आप बता सकते हैं ? मैं उस व्यक्ति को उस सुख को देना चाहता हूं तो उसका भी यह भाव होना चाहिये कि उसे कितना सुख चाहिये। इसके अलावा कुछ नहीं.
उन्होने कहा कि दुनियां में जब इंसान जन्म लेता है तो वह रोते हुए जन्म लेता है। रोते हुए जन्म लेना हमारी मजबूरी है। परंतु हमारा जीवन लाचारी या रोते हुए बीतेगा कोई इसके बारे में नहीं जानता है। लेकिन आप तो जानते हैं कि मैंने जीवन में क्या कर्म किया जो यह स्थिति हो रही है । हम अपनी बीती हुई जिंदगी में तो झांक कर देख लें।तो हमे सब ज्ञान हो जाए परंतु यही समझने का तो समय नहीं है हमारे पास। और अब तो आपके हाथ में मोबाइल है । इस कारण आप इतने व्यस्त हैं कि मोबाइल में, व्हाट्सएप पर कितने मैसेज गए आए देखते हैं और मैसेज नहीं आया तो उसे बार बार खोलकर देखते हैं। क्या हम एक घण्टा बिना मोबाइल के रह सकते हैं। यदि हां तो ऐसा जीवन बना लो। जिससे आप अपने कर्मों का लेखा जोखा का ध्यान कर सकें। लेकिन आज हमने अपने को इतना व्यस्त बना लिया है कि अपने लिए भी समय नहीं है। हम इतने व्यस्त हो गए है कि एक पति-पत्नी एक कमरे में एक बिस्तर पर लेटे हैं लेकिन दोनों मोबाइल में इतने व्यस्त हैं एक दूसरे से बात नहीं कर रहे। एक ही परिवार है एक साथ बैठे हुए हैं लेकिन हम किसी से बात नहीं कर रहे हैं।
इससे पूर्व जैन मुनि डॉ. मणिभद्र ने श्रावकों को भगवान भक्ति का भजन राजेश सुनाया, भगवान तेरी अराधना, बस एक तेरा ध्यान हो। होठों पर तेरा नाम हो, भगवान तेरी अराधना। इस भजन पर सभी श्रावकों ने जैन मुनि डॉ. मणिभद्र के साथ गुनगुनाया। इससे पूर्व जैन मुनि पुनीत ने भी अपने भाव पूर्ण उदगार व्यक्त किए। आज की धर्म सभा में मेरठ, पंजाब से धर्म प्रेमी आए थे।उपवास और आयंबिल की लड़ी की तपस्या निरंतर चल रही है।
-up18news
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